डॉ. लोकनाथ
पी. डी. एफ., डॉ. एस. राधाकृष्णन, महामना मदनमोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
संचार क्रांति के इस युग में सूचना तंत्र के हर क्षण बदलते, विकसित होते आविष्कारों के बीच समाज में रहते हुए हम मायावी संसार को देख रहे हैं। उपभोक्तावाद के कारण गतिशील दुनिया में मानवीय संवेदनशीलता कम हो रही है और अपसंस्कृति को बढ़ावा मिल रहा है। ऐसे में भारत की सांस्कृतिक विरासत को मजबूत और अक्षुण्य बनाने में सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को सुनिश्चित करने की जरूरत है।
सोशल मीडिया विश्व के विभिन्न कोनों में बैठे उन लोगों के साथ संवाद है जिनके पास इंटरनेट की सुविधा है। यदि तकनीकी रूप से सोशल मीडिया को परिभाषित किया जाय तो “सोशल मीडिया वेब पर आधारित एक ऐसा माध्यम है, जिसमें वेब तकनीकों का प्रयोग करके एक कम्यूनिटी बनाने और यूजर द्वारा निर्मित घटकों का आदान प्रदान किया जाता है।1” इस प्रकार सोशल मीडिया संचार का वह संवादात्मक स्वरूप है, जिसमें इंटरनेट का उपयोग करते हुए हम सोशल नेटवर्क के अनेक प्लेटफार्म जैसे- फेसबुक (Facebook), यूट्यूब (YouTube), ट्विटर (Twitter), लिंक्डइन (LinkedIn), माईस्पेस (MySpace), क्योरा (Quora), टम्बलर (Tumbler), पिन्टरेस्ट (Pinterest), इन्स्टाग्राम (Instagram), रेडिट (Reddit) और ब्लॉग्स (Blogs) इत्यादि का उपयोग करते हुए पारस्परिक संवाद स्थापित करते हैं। इस प्रकार यह संवाद बहु-संचार माध्यम का रूप धारण कर लेता है जिसमें पाठक, दर्शक, श्रोता अपनी टिप्पणी साझा कर सकते हैं। विभिन्न क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्तियों के फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग आदि पर व्यक्त किए गए विचार व संदेश मुख्यधारा के मीडिया के लिए समाचार बन जाते हैं। वही मुख्यधारा के मीडिया में प्रकाशित-प्रसारित समाचार और वक्तव्य सोशल मीडिया में बहस-चर्चा का केन्द्र बन जाते है। जब कोई संवेदनशील सूचना इंटरनेट पर सार्वजनिक हो जाती है, तो मुख्यधारा के मीडिया को भी उसे उठाना पड़ता है, क्योंकि वह लंबे वक्त तक उसे नज़रअंदाज नहीं कर सकते। उदाहरण के तौर पर ‘वर्डप्रेस’ एक ब्लॉगिंग साइट है, जहां यूजर्स सरल टेंपलेट के जरिए अपनी वेबसाइट बना सकते हैं। क्योरा एक प्रश्न-उत्तर की साइट है जिस पर उच्चकोटि की बहस होती है। ऑनलाइन बुकमार्क साइट पिन्टरेस्ट महिलाओं के बीच खासी लोकप्रिय है। इंस्टाग्राम एक सोशल नेटवर्क एप्लिकेशन है जो किसी भी व्यक्ति को अपने फोटो को अपलोड या एडिट करने का अवसर प्रदान करता है। इन प्लेटफार्मों से संदेश त्वरित गति से लोगों तक पहुंच जाता है।
इंटरनेट लाइव स्टेट्स के अनुसार (5 अप्रैल, 2016) “विश्व में 3 अरब 34 करोड़ से अधिक इण्टरनेट यूजर हैं। 01 अरब से अधिक वेबसाइट तथा फेसबुक पर 01 अरब 63 करोड़ से अधिक यूजर सक्रिय हैं। इसी प्रकार ट्विटर पर 30 करोड़ 48 लाख से अधिक एवं गूगल प्लस पर 43 करोड़ 67 लाख से अधिक एवं पिंटररेस्ट पर 11 करोड़ 29 लाख से ज्यादा यूजर सक्रिय हैं।2” सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं की दीवानगी इसी से समझी जा सकती है कि “औसतन प्रतिमाह वे फेसबुक पर 405 मिनट, पिंटररेस्ट पर 89 मिनट, ट्विटर पर 21 मिनट, लिंक्डइन पर 17 मिनट व गूगल प्लस पर 3 मिनट व्यय करते है। भारत में फेसबुक व गूगल प्लस, ब्राजील में गूगल प्लस, फ्रांस में ‘स्काई राक’, द. कोरिया में ‘साय वल्र्ड’, चीन में ‘क्यू क्यू’ तो रूस में ‘वेकोनेटाकटे’ सोशल नेवर्किंग साइट्स ज्यादा लोकप्रिय है।3” इस प्रकार विश्व के अनेक देशों में जैसे- ट्यूनिशिया, मिश्र, सीरिया, लीबिया, बहरीन आदि में क्रांति का बिगुल सोशल मीडिया के माध्यम से ही वहां की जागरूक जनता ने बजाया।
एक गैर सरकारी संगठन द्वारा जारी आकड़ों के मुताबिक भारत में सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले लोगों की सख्या 14 करोड़ से अधिक है और इसमें लगातार इजाफा हो रहा है। ”भारत में इंटरनेट की शुरूआत 1995 में BSNL के द्वारा हुई।4” Internet and Mobile Association of India (IAMAI) and Indian Market Research Bureau (IMRB) इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार- ”भारत में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या अप्रैल, 2015 तक 14.3 करोड़ थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में पिछले एक साल के दौरान सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 100 प्रतिशत बढ़कर ढाई करोड़ पहुंच गई, जबकि शहरी इलाकों में यह संख्या 35 प्रतिशत बढ़कर 11.8 करोड़ रही। इनमें सबसे अधिक 34 प्रतिशत हिस्सेदारी कॉलेज जाने वाले विद्यार्थियों की रही। रिपोर्ट में कहा गया कि इनमें से 61 प्रतिशत लोग मोबाइल पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं।5” इस प्रकार सोशल मीडिया बेहद शक्तिशाली माध्यम है, जिसका नियंत्रण भी उस व्यक्ति के पास है, जो उसका प्रयोग करता है। सोशल मीडिया का उपयोगकर्ता अपनी बात को बिना तोड़-मरोड़ के, बिना काट-छांट के अपने मूलरूप में अभिव्यक्त कर सकता है। इस प्रकार देश में सोशल मीडिया का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार इस तकनीकी ने जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों की सोच को एक आम सोच बनाया, वही कुछ अराजक तत्वों ने भड़काऊ सामग्री और अश्लील तस्वीरों को पोस्ट करके मानवीय, सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों पर चोट भी की है।
सोशल मीडिया की संस्कृति का चेहरा बदलता जा रहा है, सिर्फ चेहरा ही नहीं, बल्कि संस्कृति का मूल तत्व भी बदल रहा है। इस परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन या
संस्कृति का परिवर्तन न कहकर अपसंस्कृति कहना ही उचित होगा। किशन पटनायक के अनुसार- “संस्कृति के मूल तत्वों का उल्लंघन ही अपसंस्कृति है। जब संस्कृति के मूल तत्व (जीवन को सुन्दर, स्वस्थ और गतिशील बनाने के तीनों तत्व) सुरक्षित रहते है, तब इनके मिश्रण से एक नई सुसंस्कृति पैदा होती है। जब इन तत्वों का उल्लंघन होता है तब अपसंस्कृति का जन्म होता है। नैतिकता और संस्कृति में फर्क होते हुए भी दोनों में एक बहुत बड़ा सामंजस्य है, कारण जो संस्कृति का प्रेरक तत्व है वह नैतिकता की कसौटी भी है। नैतिकता के भी मानदंड स्वास्थ्य, सौदर्य और गतिशीलता है।6” इस प्रकार सोशल मीडिया के सामने अपसंस्कृति सबसे बड़ी चुनौती है। इंटरनेट बहुत उपयोगी है लेकिन उसका अनुशासन रहित उपयोग अपसंस्कृति को बढ़ावा दे रहा है। इसके चलते युवा पथभ्रष्ट हो रहे है और यौन-अपराधों में बढ़ोत्तरी हो रही है। वैश्वीकरण के नाम पर पश्चिमी देशों ने अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए जो हथकंडे अपनाये, उसके साथ पश्चिमी देशों की गंदगी भी हमारे समाज में घुल-मिल रही है। संचार क्रांति के साथ उनकी अपसंस्कृति के वायरस हमारे तंत्र को खोखला कर रहे है और युवा पीढ़ी अपनी जड़ से कट रही है। इंटरनेट पर लाखों अश्लील वेबसाइटें स्मार्टफोन के जरिये लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंच रही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के नाम पर इसका विस्तार घर-घर हो रहा है। यह सब पश्चिमी संस्कृति में स्वीकार्य है लेकिन भारत में वर्जित है क्योंकि रिश्तों की पवित्रता व यौन-शुचिता को नष्ट करते ये आक्रमण हमें स्वीकार्य नही है। पश्चिम की अपसंस्कृति ने भारतीय संस्कृति को बहुत नुकसान पहुंचाया है। नकारात्मक और विकृत मानसिकता के पोषक तत्वों द्वारा सोशल मीडिया का दुरूपयोग बढ़ता जा रहा है। “पीत पत्रकारिता या अश्लीलता को परोसती साइटें, हैकिंग के दुष्परिणाम हों या गोपनीय सूचनाओं की चोरी, इन सब गतिविधियों ने इंटरनेट में प्रयोगकर्ताओं को उलझा दिया है। पोर्न वीडियो और पाठ्य सामग्री की सहज एवं सुलभ उपलब्धता ने सांस्कृतिक प्रदूषण की हदों को पार किया है जिसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव बाल, किशोर एवं युवा मानसिकता पर दृष्टिगोचर हो रहा है। नग्नता और उन्मुक्त यौन संबंधों की वकालत करते वेबसाइट्स समाज की नैतिक अवधारणाओं पर प्रहार कर रहे हैं। इस समस्या के प्रति हमें जागरूक होना पड़ेगा अन्यथा संबंधों की मर्यादा, आबरू, इज्जत जैसे शब्दों का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा।7“
सोशल मीडिया के अन्तर्गत ही ब्लॉग लिखा जाता है। ब्लॉग मूलत: वेब पर उपलब्ध एक पत्रिका है। ब्लॉग लिखने वाले को ‘ब्लॉगर’ कहा जाता है। ब्लॉग की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है क्योंकि ब्लॉग पर लिखना सरल है। कॉमस्कोर के अनुसार- “मार्च, 2008 में पूरी दुनिया में लगभग 34 करोड़ 60 लाख लोग रोजाना ब्लॉग पढ़ते थे। आज ये प्रतिशत लगभग दोगुना से भी अधिक हो चुका है।8” सोशल मीडिया के जरिए कुछ लोग प्रतिष्ठित व्यक्तियों के सम्मान को ठेस पहुँचाने का कार्य भी करते हैं। अपने मन की भड़ास कार्टून बनाकर, गंदी व अश्लील टिप्पणी करके, राजनीतिक एवं फिल्म जगत से जुड़े लोगों के अश्लील प्रोफाइल एवं फर्जी एकाउंट बनाने की घटनाएं तो आम हैं। इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया अफवाहें व वैमनस्यता फैलाने का माध्यम भी बन रहा है। सोशल मीडिया का उपयोग यदि स्वार्थी ताकतें अफवाहें फैलाकर शान्ति भंग करने के लिए करती हैं, तो वहीं सृजनात्मक शक्तियाँ शान्ति के लिए भी इसका जोरदार जवाब भी सोशल मीडिया से दे सकती हैं।
सोशल नेटवर्किंग साइट्स से बढ़ते अपराध से इतर अब मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पहलू भी सामने आ रहे हैं। “दिल्ली सहित अनेक महानगरों के दफ्तरों में किए गए एक सर्वेक्षण के नतीजों के अनुसार 50 फीसदी कर्मचारी काम के दौरान सोशल नेटवर्किंग साइट्स एक्सेस करते हैं और सिर्फ इसी वजह से कंपनियों की 1.5 फीसदी उत्पादकता घटती है।9” नैतिक मूल्यों में गिरावट के कारण “सोशल मीडिया ने आज विश्वसनीयता का संकट खड़ा किया है। इसकी ज्यादातर खबरें गलत और दुर्भावनापूर्ण होती हैं। सोशल मीडिया पर मुठीभर गैर जिम्मेदार लोग सक्रिय हैं लेकिन ये लोग पलक झपकते ही करोड़ों लोगों को अपना हथियार बना लेते हैं।10” इसीलिए सोशल मीडिया की अफवाहों को खबर समझकर उन पर त्वरित टिप्पणी करने या फॉरवर्ड या शेयर करने से बचना चाहिए। पूरे तथ्यों के सामने आने का इंतजार करना चाहिए।
दुनिया के दो अहम सोशल नेटवर्किंग साइट्स फेसबुक और ट्विटर जिसका मुख्यालय अमेरिका में है। फेसबुक की स्थापना “सन् 2004 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों ने की थी। शुरुआत में इसका नाम फेशमाश था और मार्क जुकरबर्ग ने इसकी स्थापना विश्वविद्यालय के सुरक्षित कंप्यूटर नेटवर्क को हैक करके की थी।11” फेसबुक पर पोस्ट की गई तस्वीरों पर लोग प्रतिक्रिया देते है। वेबसाइट का विश्लेषण करने वाली एलेक्सा डॉट काम ने फेसबुक को दुनिया की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण वेबसाइट करार दिया है। इसी से इसके प्रभाव का अन्दाजा लगाया जा सकता है। आज इसके दुरूपयोग के कारण कई लोग नशे की प्रवृत्ति के शिकार हुए हैं। “फेसबुक पर नित्य प्रोफाइल फोटो बदलना, दिन में कई बार स्टेट्स अपडेट करना, घंटों फेसबुक मित्रों के साथ चैटिंग करना जैसी आदतों ने युवा पीढ़ी को काफी हद तक कुंठित किया है। सोशल मीडिया को दुनिया में बढ़ रहे तलाक के मामलों में भी कसूरवार ठहराया गया है। कार्यालय समय में फेसबुक के ज्यादा इस्तेमाल के चलते तमाम संस्थानों ने अपने यहाँ इसे प्रतिबन्धित कर रखा है। भारत में एसोचौम की एक रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर कंपनियाँ आफिस के अंदर सोशल साइट्स के इस्तेमाल को अच्छे रूप में नहीं लेती हैं।12” दूसरा ट्विटर माइक्रोब्लॉगिंग श्रेणी की वेबसाइट है। जो अपने यूजर्स को 140 अक्षरों तक के संदेष भेजने और प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करता है, जिन्हे ‘ट्वीट्स’ कहते हैं। “ट्विटर पर प्रतिदिन 50 करोड़ से अधिक ट्वीट्स किए जातें हैं और हर साल किए जाने वाले ट्वीट्स की संख्या लगभग 20 अरब से अधिक है।13” इसी प्रकार यूट्यूब भी एक साझा वेबसाइट है जहाँ यूजर वेबसाइट पर वीडियो देख सकता है, वीडियो अपलोड कर सकता है। यूट्यूब के अनुसार- “500 वर्ष के बराबर यूट्यूब वीडियों प्रतिदिन फेसबुक पर देखे जाते हैं। प्रत्येक सप्ताह 100 मिलियन लोग यूट्यूब पर सामाजिक रूप से सक्रिय रहते हैं। प्रति मिनट 60 घंटे के बराबर वीडियो अपलोड किए जाते हैं। एक दिन में 4 बिलियन से अधिक वीडियो देखे जाते हैं। हर माह 800 मिलियन अद्वितीय प्रयोक्ता यूट्यूब पर विजिट करते हैं। यूट्यूब पर हर माह 3 बिलियन घण्टे के बराबर वीडियो देखे जाते हैं।14” इस प्रकार यूट्यूब के कारण ड्राइंगरूम में पूरा विश्व मौजूद है।
उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण पारिवारिक विघटन, हताशा, हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं। “नई विश्व व्यवस्था का पूंजीवादी तंत्र संचार माध्यमों पर पकड़ बनाकर एक नई भूमंडलीय संस्कृति के निर्माण का प्रयास कर रहा है और सभी देशों के सामाजिक ढांचों का चरित्र निर्धारित कर रहा है। इससे विकासशील देशों के नैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक मूल्यों के ताने-बाने के छिन्न-भिन्न हो जाने की समस्या उत्पन्न हुई है। आर्थिक प्रभुसत्ता के साथ सांस्कृतिक प्रभुसत्ता इस वैश्विक संचार क्रांति के जरिए हासिल किए जाने की कोशिशें चल रही हैं।15” पाश्चात्य संस्कृति भारतीय परम्पराओं पर कुठाराघात कर रही है। कामुकता सामाजिक चेतना के केन्द्र मे आ गई है। इससे बच्चे बड़े पैमाने पर शिकार हो रहे हैं। बच्चों और स्त्रियों का वस्तुकरण किया जा रहा है। डिजिटलाइजेशन, अबाधित व्यवसायीकरण , वर्चुअल कम्युनिटी यानी आभासी समुदाय, उपभोक्ता के नाम का गुमनाम होना, तत्क्षण अंतर्राष्ट्रीय उत्पादन और प्रसारण नियमों के अभाव ने पोर्न वेबसाइट को जनप्रियता दी है।16” सोशल मीडिया के अन्तर्गत “फेसबुक चैटिंग आदि में अधीरता पागल कर सकती है, ब्लडप्रेशर बढ़ा सकती है। दुश्मनी भी पैदा कर सकती है। अफवाह एवं साम्प्रदायिक दंगा भी करा सकती है। मिस अंडरस्टेंडिंग भी पैदा कर सकती है। फेसबुक रीयल टाइम मीडियम है, यह धैर्य की मांग करता है। रीयल टाइम में अधीरता, गुस्सा आदि बेहद खतरनाक है, इससे उन्माद पैदा होता है। फेसबुक कम्युनिकेशन को सहज भाव से लेना चाहिए।17“
हम सोशल मीडिया का उपयोग व्यवहार, संस्कार और सांस्कृतिक चेतना के निर्माण के लिए भी कर सकते हैं। “सोशल मीडिया रूपी इस सिक्के का नकारात्मक पहलू भी है। वर्चुवल स्पेस में फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब ऐसे मंच हैं जहां युवाओं को समाज से जुडऩे और अपनी बात कहने का मंच मिलता है। लेकिन साथ ही यह उनके लिए नयी चुनौतियां भी खड़ी कर रहा है और ये चुनौतियां आसान नहीं हैं, कड़े संघर्षों से भरी हुई है। किशोरों और युवाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती है- अश्लील चित्रों की सहज उपलब्धता है। सेंन्सरशिप के अभाव में सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर उम्र की मर्यादाओं का उल्लंघन करते हुए; डर, झिझक या जिम्मेदारी के बिना अनहेल्थी सेक्सुअल प्रेक्टिस और अभिवृत्ति को धड़ल्ले से बढ़ावा दिया जाता है। यदि कोई किशोर सिर्फ सोशल मीडिया द्वारा इस विषय पर जानकारी हासिल करना चाहता है तो उसे सही-गलत में अन्तर बताने वाला कोई नहीं है। किशोरावस्था से ही अनैतिक कुसंस्कार किशोरों-किशोरियों में संचरित हो रहे हैं; और परिवार व समाज आगे चलकर इसका दुष्परिणाम भोगने को विवश हैं।18” सोशल मीडिया के विशेषज्ञ पवन दुग्गल का कहना है कि “भारत में सोशल मीडिया का उपयोग समाज से जुड़े हर वर्ग के लोग कर रहे हैं। इनमें अधिकांश लोग ऐसे स्मार्टफोन धारक हैं जो इसकी संवेदनशीलता से अंजान हैं और सिर्फ दूसरों की देखा-देखी फेसबुक और ट्विटर पर सक्रिय हैं। सरकार को चाहिए कि इसकी बढ़ती लोकप्रियता के समानांतर उन कानूनी उपायों के प्रति भी लोगों को जागरुक करे जिनका इस्तेमाल विचारों के सैलाब को बेकाबू होने से रोकने में किया जा सकता है।19” आज हमारे घरों में ढेरों कार्टून, कॉमिक्स, कंप्यूटर गेम की सीडी आदि मिल जाएँगी, लेकिन कोई अच्छी पुस्तक सीता, सावित्री, द्रोपदी, मीराबाई, लक्ष्मीबाई, भगिनी निवेदिता, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, नेता सुभाष चन्द्र बोस जैसे महापुरूषों की जीवनी शायद ही मिले। अपने बच्चों को इन महापुरूषों के जीवन को पढ़ाना होगा ताकि अपसंस्कृति से अपने बच्चों को बचाया जा सके। नैतिक मूल्यों और संस्कारों से ही समाज का संरक्षण होता है। बच्चों में नैतिक मूल्यों की वृद्धि के लिए कुछ न कुछ करने की जरूरत है क्योंकि हमारी नई पीढ़ी में नैतिक मूल्यों की कमी हो रही है। ऐसे में भारतीय संस्कृति से सम्बन्धित अधिक से अधिक सामग्री सोशल मीडिया पर दी जानी चाहिए।
नैतिक मूल्यों के संरक्षण और भारतीय संस्कृति की महत्ता का अहसास कराने में सोशल मीडिया की भूमिका अहम हो सकती है लेकिन सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं को जागरूक रहना होगा। किसी के सम्मान को ठेस पहुंचान, खबरों के साथ छेड़छाड़, किसी की निजता में हस्तक्षेप एवं सनसनी फैलाना नैतिक आचरण के खिलाफ है। नैतिक आचरण ही मानव को उसके जीवन की सार्थकता का बोध कराता है। भारतीय संस्कृति मानव को वैमनस्यतारहित जीवन जीने के साथ ही परोपकार करने और अहिंसात्मक जीवन शैली जीने को प्रेरित करती है। इस प्रकार विश्व को भोगवादी अपसंस्कृति से व्यथित मानवता को सत्यम् शिवम् सुन्दरम् की ओर उन्मुख करके सोशल मीडिया वर्तमान युग का वरदान बन सकता है।
सन्दर्भ सूची
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