टेलीविजन धारावाहिकों में भारतीय महिलाओं का चरित्र चित्रण

“बालिका वधू तथा दीया और बाती हम” के विशेष संदर्भ में

अर्चना भारती
पीएच.डी. शोधार्थी (जनसंचार), माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, भोपाल।

सारांश

वर्तमान समय में टेलीविजन चैनलों में धारावाहिकों की एक होड़ सी लग गई है। टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले ज्यादातर धारावाहिकों में मुख्य किरदार महिलाओं के होते हैं। आज महिलाओं से संबंधित किसी ज्वलंत मुद्दे को केंद्र में रखकर धारावाहिकों का निर्माण किया जा रहा है। जैसे कि बालिका वधू, उड़ान आदि सीरियल। अधिकतर धारावाहिकों में महिलाओं का चित्रण या तो भोग एवं विलासिता की एक वस्तु के रूप में पेश किया जाता है या फिर एक दबी सहमी शोषिता, पीडि़ता, दुर्बल एवं अबला के रूप में दिखाया जाता है। वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी धारावाहिक हैं जिसमें कामकाजी, आत्मनिर्भर तथा शक्तिशाली महिला के रूप में दिखाया जा रहा है, परन्तु क्या वास्तव में ऐसे धारावाहिकों में कर्मठ, सफल एवं योग्य महिलाओं का चरित्र दिखाया जा रहा है? क्या धारावाहिकों में महिलाओं का चरित्र परंपरागत रूप से मुक्त है या अभी भी पुरूषवादी समाज की उपभोग की वस्तु के रूप में नजर आ रही है आदि तमाम बातों की चर्चा फोकस समूह साक्षात्कार के माध्यम से की गई है।

उद्देष्य

  • पता लगाना कि धारावाहिकों में महिलाओं की भूमिका उचित है?
  • यह पता लगाना कि ऐसे धारावाहिक समाज का वास्तविक प्रतिबिंब है?
  • जानने की कोशिश करना कि धारावाहिकों में महिलाओं का चरित्र परंपरागत रूप से बंधी है या मुक्त है?
  • यह ज्ञात करना कि धारावाहिकों में महिलाओं की भूमिका कैसी होनी चाहिए?

शोध प्रविधि

उपर्युक्त शोध अध्ययन को अंजाम देने के लिए फोकस समूह साक्षात्कार का उपयोग किया गया। जिसके माध्यम से तथ्यों एवं आंकड़ों का संकलन किया। ‘दर्शकों/श्रोताओं के रूख और व्यवहार को समझने की शोध रणनीति को फोकस ग्रुप्स कहते हैं। यह एक अन्वेषणात्मक तकनीक है, जिसमें एक प्रशिक्षित मॉडरेटर के अधीन 8 से 12 व्यक्तियों के एक समूह को किसी विशिष्ट विषय के बारे में अपनी किसी या सभी भावनाओं, सरोकारों, समस्याओं और निराशाओं की मुक्त रूप से चर्चा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। फोकस ग्रुप की पहचान की खासियत यह है कि इसमें नियंत्रित समूह चर्चा होती है, जिसका उद्देश्य किसी शोध परियोजना के लिए प्रारंभिक सूचना एकत्र करना, किसी घटना विशेष के मूल कारणों को समझना, किसी घटना विशेष के प्रति किसी व्यक्ति समूह की व्याख्या को समझना या प्रारंभिक विचारों या योजनाओं का परीक्षण करना होता है। फोकस ग्रुप, गहन विचार-विमर्श, विचार जानने और अवधारणाओं के परीक्षण के लिए आदर्श होते हैं (बोगदान एवं टेलर, 1998)।1

The Focus Group, or group interviews, is a research strategy for understanding audience attitudes and behaviour. From 6-12 people are interviewed simultaneously, with a moderator leading the respondents in a relatively unstructured discussion about the focal topic.2

सैम्पल का चुनाव – फोकस समूह अध्ययन के तहत भोपाल के अरेरा कॉलोनी स्थित निर्मला गल्स छात्रावास में रहने वाली छात्राओं में से हमने उन 8 युवतियों का चयन किया जो टेलीविजन सीरियल्स देखती हैं। तत्पश्चात उन 8 युवतियों का एक समूह बनाया गया। समूह में 19 से 27 वर्ष की युवतियां शामिल थीं। इनमें से चार युवतियां नौकरी पेशा है और चार विद्यार्थी हैं। इसके बाद समूह में सम्मिलित सभी युवतियों से शोध विषय टेलीविजन धारावाहिकों मेें भारतीय महिलाओं के चरित्र चित्रण पर एक खुली प्रश्नावली के द्वारा उनके विचार लिए गए। उक्त विषय कलर्स चैनल पर दिखाए जाने वाले ‘बालिका वधू’ तथा स्टार प्लस पर दिखाए जाने वाले ‘दीया और बाती हम’ के विशेष संदर्भ में लिया गया। तत्पश्चात विषय से जुड़े कई प्रश्नों और मुद्दों पर समूह के द्वारा 1 घंटे तक चर्चा की गई।

शोध प्राप्ति

फोकस समूह साक्षात्कार में सम्मिलित 8 युवतियों से जब पूछा गया कि आप सीरियल क्यों देखती हैं, तो इस पर इन्होंने अपने विभिन्न विचार व्यक्त किए। कुछ युवतियों ने चर्चा के दौरान कहा कि हम सीरियल मनोरंजन और मूड को ताजा रखने के लिए देखते हैं और कभी-कभी उनका पहनावा एवं साज-शृंगार अच्छा लगता है। वहीं अन्य युवतियों ने बताया कि उन्हें कुछ नया तथा अच्छी बातें सीखने को मिलती है, पुरानी परम्पराओं के बारे में अवगत कराया जाता है एवं अच्छे-बुरे का फर्क समझने की क्षमता बढ़ती है।

बालिका वधू तथा दीया और बाती हम जैसे धारावाहिकों में महिलाओं के चरित्र पर जब चर्चा की गई तो इस पर नौकरी पेशा वालों में से एक ने बताया कि इन धारावाहिकों में महिलाओं का चरित्र अच्छा दिखाया जा रहा है, एक शक्तिशाली महिला को पेश किया जा रहा है। दूसरी युवती ने कहा कि ज्यादातर महिला की गलत छवि को दिखाते हैं जो वास्तविकता से परे है। वहीं अन्य युवतियों ने बताया कि ऐसे धारावाहिकों में महिला के दो तरह के चरित्र दिखाते हैं एक तो बेबस महिला और दूसरा आत्मविश्वास से भरी हुई महिला। वही विद्यार्थी समूह वाली ने बताया कि कुछ महिलाओं का चरित्र काफी हद तक अच्छा दिखाते हैं और कुछ महिलाओं की छवि को नकारात्मक दिखाते हैं।

ऐसे धारावाहिकों में जो चरित्र दिखाया जाता है क्या वह समाज का ही चित्रण है और ठीक है, इसे दिखाया जाना चाहिए, इस पर चर्चा के दौरान नौकरी पेषा ने कहा कि यह समाज का ही चित्रण है, पर कभी-कभी कुछ अधिक ही इसे विस्तृत रूप से दर्षाते हैं, जो कि सही नहीं होता। वही अन्य ने बताया कि ऐसा कोई जरूरी नहीं है कि वे वास्तविक ही होते है बल्कि इनका मकसद हमें मनोरंजन करना होता है। एक ने कहा कि जो समाज में होता है वही सीरियल में दिखाया जाता है और इसे दिखाया जाना चाहिए। विद्यार्थी समूह में से एक ने कहा कि बालिका वधू जैसे धारावाहिक सत्य घटनाओं पर आधारित होते हैं यह समाज का ही चित्रण है इसे देखकर हम सुधार कार्य कर सकते हैं। वही अन्य विद्यार्थी भी इस बात से सहमत थीं।

वर्तमान समय में दिखाए जाने वाले आधुनिक सीरियलों में महिलाओं का चरित्र क्या परंपरागत रूप से मुक्त है या अभी भी पुरूषवादी समाज की उपभोग की वस्तु के रूप में पेष किया जा रहा है, इस प्रश्न पर जब चर्चा किया गया तो समूह में सम्मिलित नौकरी तथा विद्यार्थी समूह ने विभिन्न विचार व्यक्त किए। जो युवतियां नौकरी करती है उन्होंने कहा कि ऐसे सीरियलों में महिलाओं को दो तरह से पदार्पण किया जा रहा है, एक तो उत्पीडऩ सहित एवं उत्पीडऩ रहित। जो कि दोनों सही है। आज महिला आत्मविश्वास से पूर्ण है परंतु समाज उसे आगे बढऩे नहीं देता। एक ने कहा कि आज की महिला शिक्षित है और आत्मनिर्भर है लेकिन कभी-कभी उसे पिता और पति के अनुसार चलना पड़ता है। दूसरे ने बताया कि वर्तमान सीरियलों में दिखाए जाने वाली महिलाओं का चरित्र परंपरागत रूप से मुक्त है जैसे कि लाइफ ओके पर प्रसारित ‘एक नई उम्मीद-रोशनी’ जैसे सीरियल में शक्तिशाली तथा आत्मनिर्भर महिला के रूप में दिखाया जा रहा है। इस प्रश्न के चर्चा में विद्यार्थी समूह वाली भी सहमत दिखीं। पर उनका यह भी कहना था कि हमारा समाज आज भी पुरूष प्रधान है इसे पूर्णत: शोषण और उत्पीडऩ से मुक्त नहीं माना जा सकता है। इन सीरियलों में अभी भी पुरूषों को ही ज्यादा महत्व दिया जाता है।

अंत में सीरियलों में महिलाओं की छवि को आप किस रूप में देखना पसंद करेंगी, इस पर समूह में सम्मिलित युवतियों से जब राय पूछा गया तो उन्होंने बताया कि सीरियलों में महिलाओं की छवि को घर-परिवार को समझने वाली, नौकरीपेशा, आत्मनिर्भर, शक्तिशाली महिला के रूप में, उन्नति की ओर अग्रसर, तथा अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाने के रूप में देखना पसंद करेंगी। वही एक युवती का कहना था कि वर्तमान सीरियल में महिलाओं के सभी प्रकार के चरित्र दिखा रहे है अत: इससे ज्यादा और दिखाने की जरूरत नहीं है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त शोध के माध्यम से हमारा यह जानने का प्रयास था कि वर्तमान सीरियलों जैसे कि बालिका-वधू एवं दीया और बाती हम जैसे धारावाहिकों में भारतीय महिलाओं का जो चरित्र दिखाया जा रहा है क्या वह सही दिखा रहा है, क्या यह समाज का वास्तविक प्रतिबिंब है, धारावाहिकों में उनकी छवि स्टीरियोटाइप या परंपरागत रूप से मुक्त महिला के रूप को दिखा रहा है या पुरूषवादी समाज की उपभोग की वस्तु के रूप में पेश किया जा रहा है तथा आने वाले सीरियलों में एक महिला की छवि कैसी होनी चाहिए, आदि तमाम विषय से संबंधित मुद्दों पर चर्चा किया गया। प्राप्त हुए प्रमुख बिंदुओं के आधार पर कुछ निम्न बातें निकलकर सामने आयी।

  • कुछ महिलाओं का चरित्र काफी हद तक अच्छा दिखाते हैं और कुछ महिलाओं की छवि को नकारात्मक दिखाते हैं।
  • जो समाज में होता है वही सीरियल में दिखाया जाता है और इसे दिखाया जाना चाहिए। बालिका वधू जैसे धारावाहिक सत्य घटनाओं पर आधारित होते हैं यह समाज का ही चित्रण है इसे देखकर हम सुधार कार्य कर सकते हैं।
  • वर्तमान सीरियलों में दिखाए जाने वाली महिलाओं का चरित्र परंपरागत रूप से मुक्त है जैसे कि ‘एक नई उम्मीद रोशनी’ जैसे सीरियल में महिलाओं का चरित्र शक्तिशाली दिखाया जाता है। परंतु हमारा समाज आज भी पुरूष प्रधान है इसे पूर्णत: शोषण और उत्पीडऩ से मुक्त नहीं माना जा सकता है। इन सीरियलों में अभी भी पुरूषों को ही ज्यादा महत्व दिया जाता है।
  • आने वाले सीरियलों में महिलाओं की छवि घर-परिवार को समझने वाली, नौकरीपेशा, आत्मनिर्भर, शक्तिशाली महिला के रूप में, उन्नति की ओर अग्रसर, तथा अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाने वाली हो।

इस प्रकार हम देखते हैं कि अधिकांश युवतियां मानती हैं कि वर्तमान सीरियल में महिलाओं की छवि नकारात्मक के साथ-साथ सकारात्मक रूप में भी है क्योंकि समाज में दोनों तरह की महिलाएं मौजूद हैं और सीरियल में भी यही दिखा रहा है। यह तो हमारे सोच पर निर्भर करता है हम उसे किस रूप में देख रहे हैं। परन्तु वही युवतियां अब भी मानती है कि इन धारावाहिकों में महिलाओं की जो परंपरागत छवि है वह पूर्णत: मुक्त नहीं है, उसे अभी भी पुरूषवादी समाज की उपभोग की वस्तु के रूप में पेश किया जा रहा है। अत: आने वाले सीरियलों में महिलाओं की भूमिका आत्मनिर्भर तथा एक शक्तिशाली महिला के रूप में पेश हो।

संदर्भ

1. मीडिया मीमांसा, जुलाई-सितम्बर 2010, पेज संख्या 15
2. मास मीडिया रिसर्च, वीमर एवं डोमिनिक, पेज संख्या 111

संदर्भ ग्रंथ सूची

  • कुमार, केवल जे, (2004), मॉस कम्युनिकेशन इन इण्डिया, मुम्बई, जैको पब्लिशिंग हाउस, प्रथम संस्करण।
  • सिंह, देवव्रत, (2010), भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, नई दिल्ली, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण।
  • चतुर्वेदी, जगदीश्वर, सिंह, सुधा, (2008), भूमंडलीकरण और ग्लोबल मीडिया, अनामिका पव्लिशर्स।
  • सिंह, राम गोपाल, सामाजिक अनुसंधान पद्धति विज्ञान।
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