परिवार में बच्चियों का यौन शोषण : यातना और संघर्ष की फिल्मों में अभिव्यक्ति

(कहानी-2, हाईवे और मॉनसून वेडिंग के संदर्भ में)

शालिनी जोशी

पुरूष अभिनय करते हैं और महिलाएं पर्दे पर आती हैं. पुरूष महिलाओं को देखते हैं और महिलाएं अपने आपको देखती हैं कि पुरूष उन्हें देख रहे हैं। वेज़ ऑफ सीइंग, जॉन बर्जर

सिनेमा के संदर्भ में जॉन बर्जर की ये प्रसिद्ध उक्ति कमोबेश हिंदी सिनेमा पर अक्षरश: लागू होती रही है लेकिन हम कह सकते हैं कि ‘कहानी-2’ ने इस छवि को तोडऩे का साहस किया है। ‘कहानी-2’ समाज के उस शोचनीय पक्ष को उजागर करती है जहां परिवार के भीतर अक्सर बच्चियां का यौन उत्पीडऩ होता है। इस लिहाज से हिंदी सिनेमा जगत में अपनी तरह की ये पहली फिल्म मानी जा सकती है।

महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अपराधों में दहेज, बलात्कार, अपहरण, सती-प्रथा, भ्रूण हत्या और कार्यस्थल और सार्वजनिक स्थानों में यौन उत्पीडऩ मुख्य है। ऐसी मान्यता है कि घर से बाहर महिलाएं हर कदम असुरक्षा के साए में रहती हैं और परिवार के संरक्षण में वो सुरक्षित हैं। लेकिन एक क्रूर सच्चाई ये भी है कि परिवार की संस्था के भीतर भी कई बच्चियां अपने ही परिजनों के यौन दुराचार का शिकार होती रहती हैं, मगर वो चुपचाप इसे सहती रहती हैं और डर से अपनी जबान नहीं खोल पाती हैं। ये डर बदनामी का भी हो सकता है और उस व्यक्ति की सत्ता का भी जिसने उसके साथ दुराचार किया है या फिर ये आशंका भी कि अगर वे मुंह खोलेंगी तो शायद उन पर विश्वास नहीं किया जाएगा, क्योंकि जिस सामाजिक परिवेश में हम रहते हैं उसमें महिलाएं बचपन से ही पुरुषों से दोयम होने के अहसास के साथ बड़ी होती हैं और परिवार की सत्ता को स्वीकारना ही उनकी नियति बन जाती है। अगर वे किसी तरह से कोशिश भी करती हैं तो नैतिकता की दुहाई देकर, पारिवारिक प्रतिष्ठा के नाम पर उन्हें खामोश कर दिया जाता है, अनदेखी कर दी जाती है या फिर इसका दोषी उन्हें ही ठहराया जाता है.

बाल यौन उत्पीडऩ दंडनीय अपराध है

इस अमानवीय कृत्य को समाज में अपराध के तौर पर स्वीकार ही नहीं किया जाता है। ऐसे उत्पीडऩ के कोई राष्ट्रीय आंकड़े नहीं हैं। क्राइम साइंस जर्नल के अनुसार 2012 में पहली बार देश के 13 राज्यों में इस बात को लेकर सर्वेक्षण किया गया जिसमें ये सामने आया कि 50% से अधिक बच्चे कभी न कभी यौन दुराचार का शिकार बनाए जाते हैं।

गैर सरकारी संगठनों, मीडिया रिपोर्टों और नागरिक विमर्शों के प्रयास के बाद महिला और बाल विकास मंत्रालय ने इस अपराध को रोकने के लिये कानून बनाने की दिशा में पहल की और 2012 में पॉक्सो कानून (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंसेस) बना। इस कानून में बाल यौन उत्पीडऩ को दंडनीय अपराध करार दिया गया है और ऐसे मुकद्दमों के तुरंत निपटारे के लिये विशेष अदालतों की स्थापना का प्रावधान किया गया है। ये कानून कहता है कि बाल यौन उत्पीडऩ की रिपोर्ट लिखाने की जिम्मेदारी हर किसी की है। 2012-2015 के बीच अकेले दिल्ली में इस कानून के तहत 5217 मुकद्दमे दर्ज किये जा चुके हैं। लेकिन अधिकांश मुकद्दमे बाहरी लोगों द्वारा किये गये उत्पीडऩ के हैं। कड़वी सच्चाई ये है कि परिजनों द्वारा यौन उत्पीडऩ की रिपोर्ट थाने तक पंहुचती ही नहीं है।
अगर बात खुलती भी है तो परिवार-समाज और व्यवस्था पीडि़त का ही उत्पीडऩ करने लगते हैं।

कहानी-2

कहानी-2 ने संवेदनशील ढंग से इस मुद्दे को उठाया है कि कैसे एक बेहद अभिजात्य, प्रतिष्ठित और संपन्न दिखने वाले परिवार में एक बच्ची का चाचा उससे नित्य दुराचार करता है। छह साल की नन्हीं सी उम्र में जब एक बच्ची को इन बातों की समझ भी नहीं होती है, उसका बचपन छीन लिया जाता है और इसका असर उसके मन-मस्तिष्क पर होता है। मिनी नाम की ये बच्ची स्कूल में सहज ढंग से नहीं रह पाती है. जब फिल्म की नायिका विद्या को आशंका होती है तो वो अपनी जान हथेली पर रखकर इस बात को उजागर करती है। चाचा ही बच्ची का यौन शोषक है- ये उद्घाटित होने पर बच्ची की दादी उसका पक्ष लेने की बजाय अपने बेटे का बचाव करती है और मिनी को ही कोसने लगती है। हताशा में मिनी आत्महत्या करने की असफल कोशिश करती है और अपाहिज हो जाती है। नायिका विद्या की मिनी के साथ समानुभूति (एंपैथी) है क्योंकि स्वयं उसके साथ बचपन में यौन दुराचार हुआ है। उसके मन-मस्तिष्क पर उस दर्दनाक अनुभव की छाया इतनी भारी रहती है कि वो जीवन भर अपने संबंधों में सहज नहीं रह पाती है। विद्या का दांपत्य जीवन बिखर जाता है। उसके बाद अपने प्रेमी को स्वीकार करना भी उसके लिये कठिन हो जाता है। विद्या, अपाहिज मिनी को लेकर नया जीवन शुरू करना चाहती है लेकिन अपहरण, हादसे और हत्या के नये दुष्चक्र में फंसा दी जाती है।

बचपन में यौन दुराचार का शिकार हुई एक बच्ची के औरत बनने, एक सम्मानजनक जीवन जीने और बाल उत्पीडऩ के खिलाफ खड़े होने का साहसपूर्ण संघर्ष ही इस फिल्म का केंद्रीय कथानक है। विद्या का संघर्ष दो तरफा है एक तरफ वो अपने अतीत के असर से जूझती रहती है और दूसरी तरफ एक बच्ची को उस घृणित अपराध से बचाने की कोशिश करती है। फिल्म सार्थक तरीके से इस बात को स्थापित करती है कि यौन शोषण कैसे किसी बच्ची या युवती का आत्मविश्वास तोड़ कर रख देता है और उसके लिये सामान्य जीवन जीना दुष्कर हो जाता है।

फिल्मों में यौन उत्पीडऩ का चित्रण

ये भी एक सिनेमाई कला है कि कहानी-2 में यौन उत्पीडऩ को सनीसनीखेज बनाकर पर्दे पर नहीं दिखाया गया है. विद्या स्वयं ऐसे यौन उत्पीडऩ का शिकार हुई है लेकिन वास्तव में उसके साथ क्या हुआ था उस घटना का चित्रण नहीं है। ये दर्शकों की समझ पर छोड़ दिया गया है। फिल्म के दूसरे दृश्यों में इस यौन दुराचार के संदर्भ अंतर्निहित हैं। ये इस बात का प्रमाण है कि फिल्म अपने संदेश के स्वरूप को लेकर गंभीर है। जबकि कई बार बलात्कार और यौन उत्पीडऩ के अपराध को दिखाते हुए फिल्में उन्हें ग्लैमराइज करने लग जाती हैं और ऐसे दृश्यों को चटखारे लेकर पेश किया जाता है। इसे संचार के विमर्श में संवेगात्मक उद्दीपन का सिद्धांत भी कहते हैं। चाहे वो ‘दामिनी’ हो, ‘इंसाफ का तराजू’, ‘लज्जा’ या ‘बैंडिट क्वीन’।

‘कहानी-2’ के विषय को ध्यान में रखते हुए दृश्यों में विराग है और नायिका की उपस्थिति बिना मेकअप के और ग्लैमर विहीन है। अस्पताल में विद्या का ये संवाद कि, ‘चाइल्ड अब्यूज करने वाले भी हमारी-तुम्हारी तरह ही होते हैं और उन्हें देखकर पता नहीं चलता’ एक मर्मभेदी टिप्पणी है।

कहानी-2, हाईवे और मॉनसून वेडिंग का तुलनात्मक अध्ययन

‘कहानी टू’ की नायिका अपने बारे में जो बात सामने आकर नहीं कहती है, इस विषय को उठानेवाली एक अन्य फिल्म ‘हाईवे’ की नायिका उस बात को बेधड़क कह देती है। इम्तियाज अली की फिल्म ‘हाईवे’ में परिवार के सभी सद्स्यों की मौजूदगी में नायिका अपने उस रिश्तेदार के कुकृत्य का भंडाफोड़ कर देती है जिसने उसका बचपन तबाह किया होता है। लेकिन फिल्म में ये बात सिर्फ परिवार के भीतर दिखाई गई है। मीरा नायर की फिल्म ‘मॉनसून वेडिंग’ में भी बाल उत्पीडऩ का प्रसंग कुछ इसी तरह आता है। जब परिवार में हो रही शादी के रस-रंग में अचानक नायिका देखती है कि एक बच्ची गायब है। पूछने पर उसे पता चलता है कि वो बच्ची एक रिश्तेदार के साथ है। नायिका शंकित और बदहवास सी भागती हुई जाती है। उसका संदेह सही निकलता है क्योंकि करीब जाकर उसे आपत्तिजनक हरकतें करते हुए पाती है। वो बिफर पड़ती है और सबके सामने कह देती है कि बचपन में उस व्यक्ति ने कैसे उसका यौन उत्पीडऩ किया था। इन तीनों फिल्मों में कहानी-2 इसलिये ‘हाईवे’ और ‘मानसून वेडिंग’ से आगे की फिल्म कही जाएगी कि बाल उत्पीडऩ इसमें प्रसंग भर नहीं है बल्कि फिल्म इस समस्या को पूरी शिद्दत और ईमानदारी से उठाती है।

‘मानसून वेडिंग’ और ‘हाईवे’ बाल उत्पीडऩ को परिवार में एक व्यक्ति की मनोवृत्ति की समस्या के तौर पर दिखाती है जबकि ‘कहानी-2’ की सफलता ये मानी जाएगी कि निर्देशक ने उसे एक व्यक्ति की प्रवृत्ति के तौर पर नहीं बल्कि समाज में मौजूद एक आपराधिक प्रवृत्ति के तौर पर स्थापित किया है। ऐसा अपराध जिसकी थाने में रपट लिखाई जा सकती है। इस तरह से ये फिल्म दो वजह से महत्वपूर्ण है- पहली तो एक ऐसी आपराधिक प्रवृत्ति को प्रकाश में लाना जिसे परिवार-समाज में स्वीकार ही नहीं किया जाता कि ऐसा होता भी है. दूसरा अपराध को उजागर करने और न्याय पाने के लिये परिवार और पुलिस की पुरुषवादी सत्ता-व्यवस्था से संघर्ष। जब ये अपराध सार्वजनिक हो जाता है तो समाज और संस्थाएं किस तरह से हिंसक प्रतिक्रियावादी रवैया अख्तियार कर लेते हैं, पीडि़त को ही दबाने लगते हैं और अपराध का शिकार बच्ची और उसे उजागर करने वाली महिला ही अपराधी बना दी जाती हैं। यहां तक कि इसमें महिला पुलिसकर्मी भी शामिल होती हैं जो पीडि़त को न्याय दिलाने में मदद करने की बजाय ऐसे मामलों को रफा-दफा करने में सहयोग करती हैं। जबकि कम से कम महिला होने के नाते उसे न्याय दिलाने में मदद करनी चाहिये. परिवार में पितृसत्तावाद का प्रतीक ‘दादी’ है जो बच्ची और विद्या दोनों की हत्या तक की सोच लेती है।

सच को सामने लाने का साहस

इस फिल्म ने जिस तरह से बच्चियों के यौन शोषण का मुद्दा उठाया, उसका प्रभावशाली पक्ष ये रहा कि कल तक तक निषिद्ध समझा जाने वाला ये विषय सुर्खियों में आया. मुख्यधारा के मीडिया में और सोशल मीडिया और निजी बातचीत में भी। सोशल मीडिया पर सक्रिय कई महिलाओं ने अपने बचपन के कटु अनुभव साझा किये। भूमिका चंदोला ने सत्याग्रह वेबसाइट में अपने बचपन के बुरे अनुभव को लिखते हुए बताया कि कैसे अपने चचेरे भाई की शिकायत करने पर उसे ही थप्पड़ मारा गया। स्त्रीकालडॉटकॉम पर निवेदिता शकील ने बताया कि एक बड़े परिवार में रहते हुए कैसे बचपन में उनके साथ लगातार यौन दुराचार होता रहा। रूपा झा ने इस संदर्भ में लिखा कि, ‘सच कहना आसान नहीं है, सच कहने के लिये साहस चाहिये।’ सुनीता भास्कर ने फेसबुक पर लिखा कि, ‘बच्चियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी हमारी है। अगर हम अपराधी नहीं भी हैं तो कम से कम हमें अपराधी को बचाने के पक्ष में तो नहीं खड़ा होना चाहिये।’

ओलंपिक पदक विजेता मुक्केबाज मैरी कॉम और अभिनेत्री सोनम कपूर ने भी ये कहकर सबको चौंका दिया कि बचपन में उनके साथ यौन दुर्व्यवहार किया गया।

थ्रिलर के लिहाज से भले ही ‘कहानी-2’ को एक औसत फिल्म माना जा सकता है. लेकिन एक अनकहे विषय को उसकी समग्र जटिलताओं में सामने लाकर- निर्देशक सुजॉय घोष ने अपना नाम उन निर्देशकों में शुमार कर लिया है जिनके लिये फिल्म एक सार्थक संदेश देने का माध्यम है।

संदर्भ सूची

  1. फिल्म्स एंड फेमिनिज्म-एसेज इन इंडियन सिनेमा, रावत पब्लिकेशन्स
  2. नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो
  3. क्राइम साइंस जर्नल
  4. इंडियन एक्सप्रेस
  5. टाइम्स ऑफ इंडिया
  6. हाइवे, कहानी-2 और मॉनसून वेडिंग-फिल्में
  7. स्त्रीकाल डॉट कॉम
  8. सत्याग्रह डॉट कॉम
  9. फेसबुक
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