(दैनिक समाचारपत्र हिंदुस्तान और टाइम्स ऑफ इंडिया का 01.09.15 से 30.09.15 तक तथ्यात्मक विश्लेषण)
प्रभात दीक्षित *
* सहायक आचार्य, स्कूल ऑफ मीडिया स्टडीज़,
जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी, जयपुर
प्रबंध सार
देश में हर दो मिनट बाद एक महिला अपराध का शिकार होती है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एन.सी.आर.बी) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक दशक में महिलाओं के खिलाफ होने वाली आपराधिक घटनाओं में दोगुने से भी ज्यादा वृद्धि हुयी है। देश में इस दौरान 22.40 लाख मामले सामने आये हैं। अकेले साल 2014 में देश में महिला हिंसा की 3,37,922 घटनाएं दर्ज हुयी, जिसमें बलात्कार, उत्पीडऩ, हत्या, घरेलू हिंसा सभी तरह की घटनाएं शामिल हैं। एन.सी.आर.बी की माने तो देश में हर 16 मिनट में एक मासूम के साथ बलात्कार होता है। समाचारपत्र जो एक पारंपरिक माध्यम है, और जिसे अन्य माध्यमों की तुलना में बेहद संवेदी भी माना जाता है, आखिर वो कैसे महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं की रिपोर्टिंग करता है। प्रस्तुत शोध पत्र में इसी जिज्ञासा का हल ढूंढने की कोशिश की गयी है। इस शोध पत्र में महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं की रिपोर्टिंग का वर्तमान परिदृश्य जानने के लिए दैनिक हिंदी समाचारपत्र हिंदुस्तान (दिल्ली संस्करण) और दैनिक अंग्रेजी समाचारपत्र टाइम्स ऑफ इंडिया (जयपुर संस्करण) का दिनांक 1 सितम्बर 2015 से 30 सितम्बर 2015 तक का तथ्यात्मक विश्लेषण किया गया है। इस दौरान प्रकाशित होने वाले सभी समाचारों को बहुत ध्यान से देखा और पड़ा गया ताकि अभीष्ट लक्ष्य तक पहुंचा जा सके। इसके अलावा टोंक स्थित बनस्थली विद्यापीठ (महिला विश्वविद्यालय) की जनसंचार एवं पत्रकारिता की छात्राओं को सैंपल के तौर पर चुना गया और प्रश्नावली विधि से ये जानने का प्रयास किया गया कि इस विषय पर उनका क्या सोचना है।
कहाँ सबसे ज्यादा अपराध
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के मुताबिक पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा अपराध के मामले आन्ध्र प्रदेश में दर्ज हुए। यहाँ करीब 2,63,839 केस सामने आये। दूसरे पायदान पर पश्चिम बंगाल रहा, जहाँ 2,39,760 मामले प्रकाश में आये। उत्तर प्रदेश में 2,36,456 मामले दर्ज हुए, वहीं राजस्थान में महिलाओं से जुड़े अपराध के 1,88,928 मामले दर्ज हुए। मध्य प्रदेश पांचवे नंबर पर है, जहाँ 1,75,593 मामले सामने आये। हांलाकि मध्य प्रदेश में पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले सामने आये। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार महिलाओं के खिलाफ आधे से अधिक अपराध की घटनाएं उपरोक्त लिखे इन पांच प्रदेशों में हुयीं।

समाचारपत्र एवं महिला-
सूचना के माध्यम लोकतंत्र में चौथे स्तम्भ माने जाते हैं और हर एक नागरिक को इनसे अपेक्षा है कि उसे सही सूचना दें। मीडिया या समाचारपत्रों की चतुर्थ सत्ता संज्ञा की सार्थकता तभी है जब वे सत्य की सूचना पाठकों को देते हैं। इस दृष्टि से अब मीडिया के दायित्व-निर्वाह पर उँगलियाँ उठने लगी हैं। निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए सूचनाओं को विकृत करके, उन्हें आधे-अधूरे रूप में प्रस्तुत करके, तिल का ताड़ बनाने की कला का प्रदर्शन करके, अप्रमाणित को प्रमाणित रूप देकर जन संचार माध्यम अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिंट, दोनों ही आदर्शहीन होकर तथ्य के नाम पर नंगापन, वीभत्स और कुसंस्कार परोस रहे हैं। सुबह का अ$खबार देखिये, चोरी, बलात्कार, डकैती, हत्याएँ, दंगे, फसाद, दुर्घटनाएं, चरित्र हनन, अधनंगे और मन को खिन्न कर देने वाले समाचारों एवं दृश्यों से ये भरे रहते हैं।1 आज कई समाचारपत्रों में ऐसी खबरें मिल जायेंगे जहाँ महिलाओं की खिलाफ होने आपराधिक घटनाओं से जुड़े समाचार को भी मिर्च मसाले के साथ परोस दिया जाता है। आज भी मीडिया में महिलाओं से जुड़े मुद्दे हाशियें पर हैं। महिलाओं के शरीर को व्यासायिक बना दिया गया और उनकी बुद्धिमत्ता को नजरंदाज।2
मीडिया और उसकी स्वतंत्रता
लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में मीडिया की स्वतंत्रता की अपनी विशेष जगह होती है। स्वतंत्र प्रेस की आवश्यकता पर जोर देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने कहा भी था कि व्यापक अर्थ में समाचारपत्रों की स्वतंत्रता केवल एक नारा नहीं है, किन्तु जनतांत्रिक प्रक्रिया की एक आवश्यक विशेषता भी है।3 हालांकि संविधान में मीडिया को अलग से स्वतंत्रता का कोई अधिकार नहीं दिया गया है। प्रेस की स्वतंत्रता का यह अधिकार वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता(अनुच्छेद 19) में ही निहित है। मीडिया की स्वतंत्र अपने आप में एक वृहद् अवधारणा है। ऐसा नहीं है कि समाचारपत्र या और अन्य माध्यम अपनी मर्जी के मुताबिक कुछ भी प्रकाशित या प्रसारित कर सकते हैं। संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सात तरह के प्रतिबन्ध की भी बात की गयी है।
मीडिया की नैतिकता और कुछ नियमावलियां
मीडिया को क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इसके लिए कई नियमावली बनीं हुयीं हैं, लेकिन जिस तरह आज महिलाओं के खिलाफ आपराधिक घटनाओं की रिपोर्टिंग हो रही है उससे लगता है कि ये नियमावलियां सिर्फ कागज़ पर ही रह गयीं हैं। यह कहना दुर्भाग्यपूर्ण है कि ज्यादातर मीडिया इंडस्ट्री ‘रीडरशिप ट्रैप’ के मोह में पड़ चुका है, आजकल समाचार सिर्फ सूचित करने के लिए नहीं बल्कि असंवेदी होकर संवेदनशील समाचारों के विस्तार करना हो गया है।4 जब भी बात मीडिया की नैतिकता की आती है तो एक नाम अमेरिकन सोसाइटी ऑफ न्यूज़पेपर एडिटर्स का भी आता है। इस सोसाइटी के आचार संहिता में स्पष्ट रूप से यह लिखा गया है कि समाचारपत्रों का सर्वप्रथम कर्तव्य लोकमत का प्रतिनिधित्व और मानवीय जीवन को उसकी समूची सार्थकता के साथ प्रतिबिंबित करना है। प्रेस परिषद् का गठन भी इसी उद्देश्य के साथ किया गया था7 25 सितम्बर 1953 को अखिल भारतीय समाचारपत्र संपादक सम्मलेन की स्थायी समिति ने एक 15-सूत्री आचार संहिता स्वीकार की। इसमें आखिर के कुछ बिंदु दुष्कर्म और अपराध को बढ़ावा न देने वाली सामग्री की वकालत करते हैं। इसके अलावा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (2008) के अनुसार यौन अपराधों खासकर नाबालिग, बालात्कार की पीडि़ता के मामले में मीडिया को उसकी पहचान की सुरक्षा करने का ध्यान रखना जरुरी है। घटना बेशक प्रकाशित की जाये लेकिन घटना की ओर थोडा संकेत भर दे दें न की लोगों की ख़ुशी की लिए उसका विस्तार करें।5
एक अक्टूबर 2004 को मिज्जि़मा जर्नलिस्ट द्वारा एक आचार संहिता अपनाया गया। इसके तहत कहा गया कि, निजता का सम्मान करना चाहिए। एक पत्रकार को किसी व्यक्ति खासकर उसके दुखद समय में निजता का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। एक पत्रकार को किसी भी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन तब तक नहीं करना चाहिए जबतक वह लोक हित या लोगों की जानने के अधिकार क्षेत्र में न हो।6 इसके अलावा आई.पी. सी की धारा 228A के मुताबिक पीडि़त की पहचान जाहिर कराना दंडनीय अपराध माना गया है।7
अध्ययन का उद्देश्य
- भावी महिला पत्रकार महिलाओं के खिलाफ हो रही घटनाओं की रिपोर्टिंग पर क्या सोचती हैं।
- महिलाओं के खिलाफ हो रही घटनाओं की रिपोर्टिंग के आधार पर हिंदी एवं अंग्रेजी समाचारपत्रों की तुलना।
शोध प्रविधि
प्रस्तुत शोध पत्र में आंकड़ों के संकलन के लिए तथ्यात्मक विश्लेषण उपयोग किया गया है। इसके अलावा बनस्थली विद्यापीठ के बी.जे.एम.सी की समस्त (97) छात्राओं में से 30 को रैंडम सैंपलिंग से चुना गया और प्रश्नावली विधि से आंकड़े एकत्रित किये गए हैं। प्रश्नावली में कुल 9 क्लोज एंडेड और एक ओपन एंडेड प्रश्न पूछे गए थे।
समंकों का संग्रहण
प्राइमरी डाटा– संमकों के संग्रहण के लिए चयनित दोनों समाचारपत्रों को दिनांक एक सितम्बर से 30 सितम्बर तक पड़ा गया। साथ ही प्रश्नावली विधि से भी आंकड़े एकत्रित किये गए।
सेकंडरी डाटा – द्वितीयक संमकों के लिए विभिन्न पुस्तकों, जर्नल्स एवं इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री से विषय को समझा गया एवं डाटा एकत्र किया गया।
न्यादर्श विधि
प्रस्तुत अध्ययन में समाचारपत्रों के चयन में उद्देश्यपूर्ण न्यादर्श विधि से दो राष्ट्रीय दैनिक समाचारपत्रों का टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान के टोंक संस्करण को चुना गया। इन समाचारपत्रों के दिनांक 1 सितंबर 2015 से 30 सितंबर 2015 तक के प्रत्येक 60 अंकों को प्रतिनिधि इकाई के तौर पर चुना गया।
समाचारों की रिपोर्टिंग– दिनांक 1 सितंबर 2015 से 30 सितंबर 2015 के बीच प्रतिनिधि इकाई के लिए चुने गए समाचारपत्रों में की गयी महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं की रिपोर्टिंग इस प्रकार रही। इस अवधि में जहाँ हिंदुस्तान में कुल 30 समाचार प्रकाशित हुए, वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया में ऐसे समाचारों की संख्या 20 रही।
हिंदुस्तान
- अपने दोस्त से की थी खुशबू ने 14 मिनट बात (1.09.2015) पेज-2
- दुष्कर्मी को सात साल की कैद (1.09.2015) पेज-6
- रेप के दोषी को 12 साल की सजा (5.09.2015) पेज-6
- तीन साल में 69 पीडि़ताओं को मुआवजा दिया गया (7.09.2015) पेज-2
- प्रेमिका के चक्कर में बम की अफवाह (8.09.2015) पेज-1
- जुडो खिलाड़ी से सामूहिक दुष्कर्म (8.09.2015) पेज-6
- फतेहपुर बेरी में घर में घुसकर महिला के साथ दुष्कर्म किया (9.09.2015) पेज4
- छेड़छाड़ का विरोध करने पर भाई की हत्या (11.09.2015) पेज-3
- छात्रा को घर में बंद कर एमएमएस बनाया (11.09.2015) पेज-4
- कैब में महिला से गैंगरेप (19.09.2015) पेज-3
- मां के साथ दो बच्चों का गला रेता (22.09.2015) पेज-3
- दोबारा नौकरी पर नहीं रखा तो जान से मारा (28.09.2015) पेज-6
टाइम्स ऑफ इंडिया
- Woman’s partially naked body found (1.09.2015) page- 3.
- Thousands pay tribute to Khushboo (2.09.2015) page- 2.
- India calls in Saudi enjoy over a rape case. (11.09.2015) page- 1
- 6-yr gang-raped in Sikar (13.09.2015) page- 3
- Death penalty for man who raped killed 8-year-old niece (20.09.2015) page- 1.
- 5-year-old girl raped by drug addict (29.09.2015) page- 3.
- College girl, widow alleges rape (30.09.2015) page- 4.
आंकड़ों का चित्रमय प्रस्तुतीकरण एवं विवेचना
(Graphical Presentation and Analysis of Data Through Pie Chart)
प्रश्न संख्या 1– क्या आप समाचारपत्र पढ़ती हैं?
जब उत्तरदाताओं से ये पूछा गया कि क्या वो समाचारपत्र नियमित पड़ती हैं तो 50 प्रतिशत ने नियमित, 43 प्रतिशत ने किसी विशेष मौके पर पडऩे की बात कही। वही, 7 प्रतिशत ने अनियमित समाचारपत्र पढने की बात कही।
प्रश्न संख्या 2– कौन सा माध्यम आपको पसंद है?
जब उत्तरदाताओं से ये पूछा गया कि वो कौन से माध्यम पसंद करती हैं तो 23 प्रतिशत ने हिंदी, 40 प्रतिशत ने अंग्रेजी वही 37 प्रतिशत ने दोनों ही माध्यम के समाचारपत्र पडऩे की बात कही।
प्रश्न संख्या 3– क्या समाचारपत्र हमारी सोच को प्रभावित करते हैं?
समाचारपत्र हमारी सोच को प्रभावित करते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में 50 प्रतिशत लोगों ने हाँ में, 43 प्रतिशत कभी-कभी में, वही 7 प्रतिशत ने नहीं में उत्तर दिया।
प्रश्न संख्या 4– किस तरह के समाचार आपको पसंद हैं?
किस तरह के समाचार आपको पसंद हैं इसका जवाब बहुत दिलचस्प मिला। 34 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने मनोरंजन पडऩे, 33 प्रतिशत अपराध पडऩे, 20 प्रतिशत राजनीति पडऩे वही 13 प्रतिशत ने खेल सम्बन्धी समाचार पडऩे की बात कही।
प्रश्न संख्या 5– अंग्रेजी एवं हिंदी समाचारपत्रों में से किस माध्यम की सामग्री आपको संतुलित लगती है? उपरोक्त लिखे इस प्रश्न पर 17 प्रतिशत ने हिंदी समाचारपत्र, 23 प्रतिशत ने अंग्रेजी समाचारपत्र, वही 40 प्रतिशत ने दोनों ही माध्यमों संतुलित माना। 20 प्रतिशत लोगों ने कह नहीं सकते विकल्प को चुना।
प्रश्न संख्या 6– क्या समाचारपत्रों में महिला हिंसा की रिपोर्टिंग ठीक तरह से की जा रही है?
इस प्रश्न पर 36 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा की रिपोर्टिंग ठीक से नहीं हो रही है। वही 27 प्रतिशत ने ठीक से रिपोर्टिंग हो रही की बात कही। 20 प्रतिशत ने कभी-कभी रिपोर्टिंग सही होने की बात कही वही 17 प्रतिशत ने कह नहीं सकते हैं विकल्प को चुना।
प्रश्न संख्या 7– महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं से सम्बंधित समाचार आप पड़ती हैं।
इस प्रश्न के उत्तर में 40 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वो फोटो देखकर महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं की खबर पड़ती हैं। 36 प्रतिशत ने हेडलाइन देखकर वहीँ 17 प्रतिशत ने पेज संख्या देखा कर ऐसी खबरें पडऩे की बात कही। 7 प्रतिशत ने कह नहीं सकते विकल्प को चुना।
प्रश्न संख्या 8– क्या समाचारपत्र महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर प्रकाशित करते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में हाँ विकल्प को 60 प्रतिशत लोगों ने चुना, वहीं 33 प्रतिशत ने नहीं विकल्प को चुना। दृढतापूर्वक हाँ विकल्प को महज 7 प्रतिशत ने चुना।
प्रश्न संख्या 9– महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं की रिपोर्टिंग को लेकर क्या समाचारपत्रों में सुधार की आवश्यकता है?
क्या समाचारपत्रों में सुधार की आवश्यकता है? इस प्रश्न के उत्तर में 54 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने हाँ, 33 प्रतिशत ने नहीं और 13 प्रतिशत ने कह नहीं सकते विकल्प को चुना।
तथ्यात्मक विश्लेषण का परिणाम (Result of Content Analyis)
इस शोधपत्र पर काम करते हुए शोधार्थी के सामने कई ऐसे समाचार सामने आये जिनमें या तो मानवीय पक्ष की कमी थी या उस समाचार को सिर्फ इसलिए लिख दिया गया हो ताकि खानापूर्ति हो सके। ‘खूनी’, ‘चक्कर में’, चाकू ‘घोपना’, ‘बारी-बारी रेप’, ‘Bleeding from private part’, ‘Killed her by repeatedly hitting her head against stone’ जैसे शब्द और वाक्य मिले। हिंदुस्तान में ‘अपने दोस्त से की थी खुशबू ने 14 मिनट बात’ इस हेडलाइन से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मृतका (एम्स की छात्रा) ने अपने दोस्त से बात करके कोई गुनाह कर दिया हो। ‘दुष्कर्मी को सात साल की कैद’ इस समाचार में पीडि़ता के घर का पता तक प्रकाशित कर दिया गया था, बिना ये सोचे-समझे कि पहचान उजागर होने से पीडि़ता और उसके परिजन सामाजिक दंश झेल सकते हैं। ‘रेप के दोषी को 12 साल की सजा’ इस समाचार को पर्याप्त जगह नहीं दी गयी। पेज-6 पर सिंगल कॉलम में प्रकाशित करके खानापूर्ति कर दिया गया। 7.09.2015 को प्रकाशित पीडि़ताओं को मुआवजा सम्बन्धी समाचार में पीडि़ताओं की पीड़ा कम मुआवजे का प्रदर्शन ज्यादा प्रतीत हुआ। समाचार में ही था कि किसी-किसी पीडि़ता को महज 10 हजार रूपये ही दिए गए। क्या इस पर मानवीय पक्ष पर आधारित खबर नहीं लिखी जा सकती थी? 8.09.2015 को पेज-1 पर प्रकाशित इस समाचार की हेडलाइन ‘प्रेमिका के चक्कर में’ शोभनीय नहीं कही जा सकती है जिसमें ‘चक्कर में’ और ‘प्रेमिका’ शब्द का इस्तेमाल हुआ था। ‘जुडो खिलाड़ी से सामूहिक दुष्कर्म’ इस समाचार में खिलाड़ी के स्कूल का पता दे दिया गया था। ‘छेड़छाड़ का विरोध करने पर भाई की हत्या’ इस समाचार में लडक़ी के भाई की फोटो प्रकाशित की गयी थी साथ ही एक इमेज बनाया गया था जिसमें एक लडक़ा लडक़ी का दुपट्टा हटा रहा होता है। ‘दोबारा नौकरी पर नहीं रखा तो जान से मारा’ इस समाचार में ‘खूनी’ शब्द के अलावा विस्तार से यह लिखा गया था कि कैसे उस शख्स ने महिला को मारा था। टाइम्स ऑफ इंडिया में भी कमोबेस यही परिणाम प्राप्त हुआ। हांलाकि इसमें हिन्दुतान की तुलना में कम समाचार प्रकाशित हुए लेकिन जितने भी हुए उनमें से ज्यादातर समाचारों में तस्वीरें नहीं थीं। वैसे कुछ शब्द जैसे ‘Bleeding from private part’ एक ही समाचार में कई बार लिखे गए। टाइम्स ऑफ इंडिया में भी कई समाचार सिंगल कॉलम में ही प्रकाशित हुए जबकि उन्हें विस्तार में दिया जाना चाहिए था।
निष्कर्ष (Conclusion)
अध्ययन में यह पाया गया कि मीडिया इतने संवेदी मुद्दे पर नैतिकता का उल्लंघन कर रहा है। कई समाचारपत्रों में पीडि़ता के परिजनों की तस्वीरें प्रकाशित हुयीं तो कहीं, उसके घर का पता भी जाहिर कर दिया गया जो कि मीडिया एथिक्स के खिलाफ है। कहीं-कहीं इमेज बनाकर बेवजह घटना की तस्वीर उकेरने और उसे सनीसनीखेज बनाने की कोशिश की गयी थी। कुछ समाचारों में ऐसे शब्दों का चयन किया गया था जो कि घटना के लिहाज से काफी असंवेदनशील थे। अध्ययन में यह भी स्पष्ट हो गया कि हिंदी की तुलना में अंग्रेजी समाचापत्रों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाएं कम प्रकाशित होती है। अध्ययन में यह निष्कर्ष भी निकला कि समाचारपत्रों को महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं की रिपोर्टिंग करते समय संवेदनशीलता बरतनी चाहिए। प्रश्नावली का आखिरी प्रश्न ओपन एंडेड था जिसमें महिलाओं के खिलाफ होने घटनाओं की रिपोर्टिंग के सम्बन्ध में समाचारपत्रों को क्या सुधार करना चाहिए पूछा गया था। इसका उत्तर देते समय ज्यादातर उत्तरदाताओं ने मीडिया एथिक्स और मीडिया को स्व विश्लेषण करने का सुझाव दिया। इसके अलावा यह भी स्पष्ट हो गया कि कुछ समाचारों को पर्याप्त स्थान नहीं दिया जाता है जबकि वो समाचार महत्वपूर्ण होते हैं।
सन्दर्भ सूची (Bibliography)
- Padhi, Smiti (Oct-Dec 2014). The portrayal of women in Indian media, Communication Today, 49-54
- प्रेस विधि, नन्द किशोर त्रिखा
- Sharma, N, Pandey S. Media reporting on crime against women- A case study of the brutal killing of a 19-year-old girl in Lucknow.
- Kumar, Ravi. Peter. (April-june2014). Newspapers Content and Social Responsibility, Communication Today, 18-30
- Role of Media in Gender Stereotyping, Sharmistha Kabi, Ijar, June 2015
- Wikipedia
- thesocietypages.org
- dnaindia.com