हिन्दी समाचार पत्रों पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स का प्रभाव

डॉ. नीरेन कुमार उपाध्याय*

प्रस्तावना

भूमंडलीकरण और उदारीकरण के दौर में तकनीकी विकास ने मानव जीवन में आमूलचूल परिवर्तन किया है। आधुनिक प्रौद्योगिकी व तकनीकि के कारण आए परिवर्तनों आदि की विश्वव्यापी चर्चायें चल रही हैं। सामाजिक जीवन से जुड़े प्रत्येक क्षेत्र को इन शब्दों ने स्पर्श किया है। बदलते परिवेश में मनुष्य तकनीकों के साथ जुड़ कर सहज अनुभव करता है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। गति जीवन और विकास का अंग है। विज्ञान, तकनीकी, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, व्यवस्था आदि गतिमान कार्यों पर निर्भर हैं। मीडिया इस तकनीकी विकास की साक्षी बना। आधुनिक तकनीक के प्रयोग ने लोगों को विचारों को प्रकट करने का मंच प्रदान किया है। आज परंपरागत मीडिया के अलावा भी एक मीडिया है जो समाज के लोगों के द्वारा संचालित होता है और जिसे वर्तमान समय के मीडिया हाउस उससे जुड़ कर अपनी पाठक संख्या और पहुंच बढ़ाने में लगे हुए हैं। इसे सोशल मीडिया कहा गया। इसके करोड़ो यूजर हैं, जिससे इसके दुरुपयोग की आशंका भी बढ़ गई हैं। सकारात्मक विशेषताओं के बावजूद यह दुष्प्रचार का अखाड़ा बनता जा रही है। यह अब सिक्के के दो पहलुओं की तरह दिखने लगा है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स न्यू मीडिया का ही अंग हैं, जो कि आज प्रभावी मीडिया के रुप में उभरा है। वर्तमान भारतीय राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक परिदृश्य में व्याप्त भ्रष्टाचार पर सोशल मीडिया दो-दो हाथ करता नजर आयी। न्यू मीडिया ने विश्वग्राम की कल्पना को साकार किया है। लोगों को एक-दूसरे के नजदीक लाने का काम किया है। लेकिन, सिक्के का दूसरा पहलू चुनौतियों भरा और बड़ा ही भयावह तथा आक्रांत है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर पल-पल की खबरें देने की सुविधा ने समाचार पत्रों को इस बात के लिए मजबूर कर दिया कि वे अपने अखबार को सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी दें। ताकि उसका पाठक उससे दूर न हो। परिणामस्वरूप भारत के सभी प्रमुख समाचार पत्र आज इंटरनेट पर मौजूद हैं।

नये आजाद इंटरनेट मीडिया का जन्म 1994 में geocities.com व tripod.com नाम की वेबसाइट्स से हुआ। इनमें मुफ्त में अपनी बात कहने के लिए जगह मिल जाती थी। ब्लॉग इससे पहले से मौजूद थे लेकिन 1998 के बाद ही इसे पहचान मिल सकी जब livejournal.com का जन्म हुआ। sixdegree.com 1997 में शुरु किया गया। यह पहली अधिकृत सोशल नेटवर्किंग साइट थी जहां लोग मित्रों के साथ जुड़ सकते थे। सोशल नेटवर्किंग साइट्स मुख्य धारा में 2003 से सम्मिलित हुआ जब लिंकेडिन आया। माइस्पेस-2003, ऑरकुट-2003, फेसबुक-2004, ट्व्टिर-2006 और गूगल$ 2011 में अस्तित्व में आया। फेसबुक डॉट काम 2004 में अमेरिकी विद्यार्थियों के लिए हारवर्ड कालेज से शुरु किया गया था। 2009 से इसने सबके लिए रजिस्ट्रेशन खोल दिया, इसकी लोकप्रियता को देखते हुए। आज 901 मिलियन उपभोक्ता इसका उपयोग कर रहे हैं। यह सर्वाधिक प्रसिद्ध साइट है। 300 मिलियन उपभोक्ताओं के साथ ट्विटर दूसरे स्थान पर है।18 आरकुट, ब्लॉग पर अपनी बात को कहा जा सकता है। लेकिन फेसबुक और ट्विटर जैसे इंटरेक्टिव सोशल साइट ने ब्लॉग व आरकुट को नेपथ्य में भेज दिया है। गूगल ने आरकुट को अक्टूबर 2014 से बंद करने का निर्णय किया है। 2जी के बाद अब 3जी सेवा से मोबाइल फोन पर तमाम सुविधायें बढ़ गईं, हैं। आईपीटीवी, वीएएस आदि न्यू मीडिया के परिवार में सम्मिलित हो गए हैं। यू ट्यूब पर वीडियो और कंटेन्ट दोनो साथ देखा जा सकता है जिसने पिछले दिनों बड़ी हलचल मचायी है। न्यू मीडिया के सभी माध्यम अब कंटेंट पहुचाने का काम कर रहे हैं। जो कि इसके पहले बड़े मीडिया घराने करते थे। आज यू ट्यूब, ब्लॉग, फेसबुक, और ट्विटर पर न तो कोई संपादक है, न डेस्क, और न ही रिपोर्टर फिर भी यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रभावी है। एन. कूपर ने कहा है कि, हम सभी पत्रकार बन सकते हैं, जब भी हम चाहें। स्कॉट गेंट ने लिखा है कि, अब पत्रकार होने के लिए किसी छोटे-बड़े संस्थान, चैनल से जुडऩा जरुरी नहीं रह गया है, आप चाहें तो पत्रकार हो सकते हैं। आज समाचार पत्र या चैनल न्यू मीडिया से जुड़ रहे हैं। इंटरनेट पर समाचारपत्र के सभी संस्करणों को एक जगह पर पढ़ा जा सकता है। चैनल की खबरें देख व पढ़ सकते हैं। न्यू मीडिया की वैश्विक चमक ने सबको चौंका दिया है। कॉमस्कोर नामक डिजिटल माप और विश्लेषण कम्पनी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका और चीन के बाद सबसे ज्यादा (75%) इंटरनेट उपभोक्ता भारत के हैं। जिसमें 35 वर्ष की आयु तक के नौजवानों की संख्या सर्वाधिक है। 25% उपभोक्ता सोशल साइट्स पर समय देते हैं। स्मार्ट फोन, ब्लॉगिंग, मोबाइल फोन, टैबलेट आदि पर लोग इन साइटों पर आते हैं।

भारत में मीडिया परिदृश्य में एक खास बात यह है कि यहां एक ही कंपनी या समूह एक साथ चैनल, केबल नेटवर्क, डीटीएच के तहत चैनलों का प्रसारण, प्रिंट मीडिया, रेडियो स्टेशन और इंटरनेट के क्षेत्र में काम कर रहा है। भारत में ऐसे बड़े मीडिया समूहों में बेनेट कोलमैन एंड कंपनी यानि बीसीसीएल, नेटवर्क 18, सन टीवी, जी नेटवर्क, दैनिक जागरण, इनाडू समूह और स्टार इंडिया प्रमुख हैं। एक अध्ययन के अनुसार भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में 44 प्रतिशत लोग समाचार साइट पर जाते हैं। 15 वर्ष से अधिक आयु के 1.5 करोड़ से ज्यादा लोग अक्टूबर महीने में समाचारों की साइट पर गये। एक साल में यह संख्या 37 प्रतिशत बढ़ी है।

भारत में सोशल नेटवर्किंग का बढ़ता नेटवर्क (% में)

विजिटर जुलाई 2009 जुलाई 2010 परिवर्तन % में
सोशल नेटवर्किंग 23255 33158 43
फेसबुक 7472 20873 179
आर्कुट 17069 19871 16
भारत स्टुडेंट डॉट कॉम 4292 4432 03
याहू पल्स 3502
ट्विटर 984 3341 239
लिंक्ड इन 3267

स्रोत: http://www.comscore.com

इंटरनेट की दुनिया में भारत

देश अनुमानित जनसंख्या
करोड़ में
इंटरनेट उपभोक्ता
करोड़ में
नेट उपभोक्ता
% मे
2000-2010 के
मध्य वृद्धि गुना में
भारत 117 8 6.9 15
मिस्र 8 1.7 21.2 36
ट्यूनिशिया 1.05 .36 34 35
अफ्रीका 101 11 10.09 23
एशिया 383 82 21.5 6
विश्व 684 196 28 4.4

स्रोत: कारपोरेट मीडिया, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली 2011

भारत में इंटरनेट पर समाचार के क्षेत्र में बड़ी कारपोरेट कंपनियों का एकाधिकार सा लगता है। एलेक्सा रैंकिंग के अनुसार भारत में सबसे बड़ी समाचार देने वाली प्रमुख सोशल नेटवर्किंग में- याहू, रेडिफ, इंडिया टाइम्स और इन डॉट कॉम हैं।

भारत में सोशल नेटवर्किंग का हिन्दी प्रिंट मीडिया पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। अब ऐसे समाचारीय दस्तावेज का द्रूत ऑनलाइन प्रकाशन संभव हो गया है जिन्हें आमतौर पर पब्लिक डोमेन में पहले जगह मिलने में बहुत मुश्किलें आती थीं। आज जबकि प्रत्येक अखबार अपने एजेंडे पर काम करता है तब इंटरनेट के उपभोक्ता को मिली फीडबैक की ताकत ने उसके एजेंडे के गलत-सही पर अपनी राय, टिप्पणी, व्याख्या या प्रतिक्रिया तुरन्त समाचार स्रोत तक पहंचने में सक्षम बना दिया है। सोशल नेटवर्किंग के ऊपर यह आरोप भी लगता रहा है कि वह सरोकारों पर चर्चा नहीं करती। इस बात को समझना होगा कि सोशल नेटवर्किंग का उपभोक्ता वर्ग कौन है और उसकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति कैसी है। क्योंकि समाचार पत्रों को तो वह एक-दो रूपये दे कर खरीद कर पढ़ सकता है लकिन नए सोशल माध्यमों को खरीदने में वह सक्षम नहीं है। उसे अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए किसी साइबर कैफे में जाना पड़ेगा जहां वह रोज-रोज नहीं जा सकता। न्यू मीडिया में एक नए संभ्रांत वर्गीय समाज का उदय हुआ है जिनके सरोकारों पर चर्चा अधिक हो रही है। वास्तव में, बदले समय में सरोकारों की प्रकृति और उसकी प्रस्तुति भी नए तरीके से ही किया जा रहा है।

सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर समाचार पत्रों का संचालन मुख्य संपादकीय कार्यालयों से ही किया जाता है। स्थानीय स्तर पर संचालन में बहुत सी कठिनाइयों के कारण ऐसा करना संभव भी नहीं है। अपनी पसंद का अखबार और अपने जिले की खबरों को पढऩे के लिए इंटरनेट पर बस एक क्लिक करने मात्र से अपना जिला, गांव या प्रदेश की खबरें दिखाई पडऩे लगेंगी। चूंकि इंटरनेट अब गांवों तक पहुंच गया है और इसका उपयोग करने वालों की संख्या वहां भी तेजी से बढ़ रही है। 3जी के युग में अत्याधुनिक मोबाइल फोन जिसमें इंटरनेट सुविधा सरलता से सुलभ होने के कारण दुनिया हाथों तक सिमटती जा रही है। अर्थात् अब दुनिया आम उपभोक्ता की अंगुलियों के स्पर्श तक सीमित हो गई है।

वैश्वीकरण के दौर में बाजारवाद हावी है और सस्ते दरों पर मोबाइल फोन कंपनियां सेट तमाम सुविधाओं के साथ बेच रही हैं। यह किसान के बेटे के बजट के हिसाब से भी उपलब्ध है। अब लोगों को खबरों के लिए सुबह अखबार का इंतजार नहीं करना पड़ता। सारी सूचना इंटरनेट पर ही मिल जाती है। यूपी बोर्ड परीक्षा का परिणाम हो या गांव की किसी घटना की खबर सब कुछ अखबारों के ई-संस्करण पर होना इस बात का प्रमाण है कि सोशल नेटवर्किंग की पहुंच और प्रभावशीलता के कारण अब अखबार मालिकों की मजबूरी है कि वे अपने समाचार पत्र को फेसबुक, टिव्ट्र, ब्लॉग या ई पेपर पर मौजूद रहें। खबरों या सूचनाओं को पाठकों तक शीघ्रता से पहुंचाने के लिए समाचार पत्रों के बीच बढ़ती प्रतियोगिता ने खबरों में वस्तुनिष्ठता और विश्वसनीयता का दबाव बढ़ा दिया है। समाचार पत्रों ने नागरिक पत्रकारिता की ओर कदम बढ़ाते हुए स्थानीय स्तर की खबरों के लिए जनता के द्वारा ई मेल सेवा प्रारंभ कर दिया है। एसएमएस और व्हाट्स एप्प के द्वारा भी सूचना देने का विकल्प शुरू कर दिया है। विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर हिन्दी के प्रमुख समाचार पत्रों की उपलब्धता और पाठकों तक पहुंच की वस्तुस्थिति का आकलन निम्नलिखित आंकड़ों के माध्यम से समझने का प्रयास किया गया है-

पाठकों के बीच फेसबुक पर हिन्दी समाचार पत्रों की स्थिति

समाचार पत्र पाठकों के द्वारा पसंद इसके बारे में बातें करते हैं
दैनिक जागरण 22,57,433 6,22,951
अमर उजाला 8,50,380 2,91,839
हिन्दुस्तान 20,62,985 1,92,397

स्त्रोत: http://www.facebook.com, 11-3-2014

ट्व्टिर पर हिन्दी समाचार पत्रों के पाठकों की उपस्थिति

समाचार पत्र ट्वीट्स फालोअर्स
दैनिक जागरण 48.9 15.9K
अमर उजाला 23.8K 9099
हिन्दुस्तान 128K 766K

स्त्रोत: jagrannews, amarujalanews, HTtwits, 11-03-2014

ब्लॉग पर हिन्दी के प्रमुख समाचार पत्र

  1. दैनिक जागरण- jagranjunction.com
  2. अमर उजाला- blog.amarujala.com
  3. हिन्दुस्तान- blogs.hindustantimes.com

फेसबुक, ट्व्टिर तथा ब्लॉग के अलावा हिन्दी के समाचार पत्रों को पढऩे के लिए ई पेपर पर कनेक्ट करना पड़ता है। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खबरों के अलावा प्रदेशों की खबरें, जिलों की खबरों भी हम देख और पढ़ सकते हैं। इंटरनेट पर मौजूद हिन्दी के ई पेपर-

  1. दैनिक जागरण- उत्तर प्रदेश के अलावा भारत के 14 राज्यों (बिहार, उत्तराखंड, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, पं. बंगाल, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान) की खबरें ऑनलाइन देखने व पढऩे को मिलती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, वाराणसी, गाजीपुर, बलिया व गोरखपुर जिलों की खबरें भी वेब साइट पर उपलब्ध हैं।
  2. अमर उजाला- उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, झारखंड, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की ऑनलाइन खबरें मौजूद होती हैं।
  3. हिन्दुस्तान- भारत के 8 राज्यों की खबरें इसकी साइट पर पढऩे व देखने को मिलती हैं।

भारत में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का बढ़ता दायरा सुरक्षा कारणों से खतरनाक है। भारत सरकार की गोपनीय सूचनाओं को पाने के लिए विभिन्न देशों के हैकरों के माध्यम से वहां की सरकारें ऐसे कुत्सित प्रयास करती हैं। समाचार पत्रों में प्रकाशित रक्षा और नीतिगत मामलों की खबरें पढ़ कर भारत विरोधी तत्व उसका लाभ उठाना चाहते हैं। नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ राज व्यवस्था विरोधी तत्व भारत पर साइबर हमला कर रहे हैं। गोपनीय सूचनाओं सी.ई.आर.टी.-इन (इंडियन कम्प्यूटर इमरजेंसी रिसपांस टीम) की रिपोर्ट के अनुसार, 4191 भारतीय वेब साइट्स अगस्त में, 2380 जुलाई में, 2858 जून में और 1808 मई में हैक की गयीं। अधिकांश डॉट इन डोमिन वाली वेब साइट्स जिनका सर्वर भारत में लोकेट है पर साइबर हमला हुआ। 80% जून में तथा उसके बाद 60% से ज्यादा पर हमले की जानकारी है। दूसरा, लगभग 20,000 ऐसी वेब साइट्स जो कि डॉट ओआरजी डोमिन की हैं को पाकिस्तानी हैकरों के द्वारा हैक की गयीं।

SA3D HaCk3D, h4xOr HuSsY, SanFour2S, BD GREY HAT HACKERS, Suwario, Spy-Dy, hasnain haxor और CouCoum मुख्य रूप से भारत विरोधी हैकर्स हैं।

सोशल मीडिया या वेब जर्नलिज्म आज व्यावसायिक रुप ले रहा है। यह समूह तथा एकल प्रयास से चलाया जा रहा है। इसकी आय का प्रमुख स्त्रोत विज्ञापन है। इंटरनेट मीडिया पर आज अरबों रुपये के विज्ञापन दिखाये जा रहे हैं। विज्ञापन का बाजार 2011 में बढ़ कर 27650 करोड़ रूपया का हो गया है। फिक्की की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेट पर विज्ञापन 2006 में 6 अरब रुपये, 2009 में 8 अरब रुपये का कारोबार था और 2014 में 14 अरब रुपये का अनुमान है।

सोशल मीडिया माध्यमों ने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विचारों को प्रभावित किया है। इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। भारतीय परिदृश्य में, पिछले कई महीनों से फेसबुक, ट्विटर, इंटरनेट और मोबाइल फोन पर एसएमएस के द्वारा समाज जागरण व आंदोलनों को सफल बनाने में सफलता मिली। फेसबुक व टिव्टर पर सक्रिय स्वामी रामदेव ने भारत स्वाभिमान यात्रा के माध्यम से लोगों को जोड़ा। गांवों व शहरों की हजारों किमी. की यात्रा की। योग के माध्यम से लोगों को जोड़ा। देश का काला धन देश में वापस आना चाहिए और भ्रष्टाचार दूर करने की मांग को लेकर आंदोलन और धरना-प्रदर्शन दिल्ली व देश के प्रमुख शहरों में किया। काला धन को भारतीय सम्पत्ति घोषित करने की मांग उन्होंने की। इसे व्यापक जनसमर्थन न केवल जनसहभागिता से बल्कि सोशल व न्यू मीडिया माध्यम से मिला। इसे पूरे विश्व में देखा व पढ़ा गया। स्वामी रामदेव व उनके समर्थकों के साथ आधी रात में सरकार का कू्रर चेहरा भी इन माध्यमों के द्वारा पूरे विश्व ने देखा। मीडिया ने सरकार की कलई खोल दी। एसएमएस से संदेश भेजकर लोगों को जोड़ा गया। सोशल साइट्स पर आ रही प्रतिक्रिया से सरकार हिल गई थी। स्वामी रामदेव के आंदोलन की आंच अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि अन्ना हजारे व उनकी टीम के सदस्यों ने केंद्र सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार समाप्त करने की मांग को लेकर आर-पार की लड़ाई का ताल ठोक दिया। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लोगों ने सूचना का अधिकार के तहत मांगी जानकारी के आधार पर भ्रष्टाचार, कालाधन समाप्त करने के लिए लोकपाल बिल पास करने की मांग की। निशाने पर थी केंद्र की कांग्रेस सरकार। अन्ना का आंदोलन शुद्ध रुप से सोशल मीडिया के कारण सफल रहा। दिल्ली में चलती बस में दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले को देशव्यापी बनाने और अपराधियों को सजा दिलाने में सोशल मीडिया ने नैतिक जिम्मेदारी के साथ सार्थक पहल की थी। पाकिस्तानी सैनिकों के द्वारा भारतीय सैनिकों के सिर काट ले जाने और उनके सिर के साथ फुटबाल खेलने के वीडियो यू ट्यूब पर दिखाने तथा बंगलादेश के सैनिकों द्वारा भारतीय सीमा में घुस कर जवानों को मारने का मामला हो या अरुणाचल प्रदेश व सिक्किम को चीन के द्वारा अपने नक्शे में दर्शाने का मामला हो या भारत के अंदर माओवादियों के कृत्यों का मामला, सभी विषयों पर सोशल मीडिया का भारतीय पक्ष में सकारात्मक पहलू देखने को मिला। सोशल मीडिया ने जनमत बनाने तथा सरकार पर दबाव बनाने का काम किया, जिसके सार्थक परिणाम देखने को मिले। जनसहभागिता का उदाहरण इससे पहले भी कई बार देखने को मिला है – रामजन्मभूमि पर मंदिर बनाने की मांग को लेकर किया गया आंदोलन था, रामसेतु को सरकार के इशारे पर तोडऩे की साजिश के खिलाफ एक फिर जनता खड़ी हुई, और जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा अमरनाथ श्राइन बोर्ड को एक इंच जमीन न देने की कसम के खिलाफ जागे लोगों के आगे सरकार को झुकना पड़ा था।

तस्वीर का दूसरा पहलू उतना ही भयानक और खतरनाक है। मुम्बई में आतंकी हमले के बाद सरकार की कारवाई का सीधा प्रसारण, कश्मीर में पत्थरबाजी और अलगाववादी नेताओं के बंद के आहवान को छापना व दिखाना, पूर्वोत्तर में मुइवा के आगे नतमस्तक हुई सरकार की खबरों का प्रकाशन, मो. साहब के कार्टून पर मचे बवाल का समाचार, असम हिंसा का गलत फायदा उठाते हुए पाकिस्तान ने अपने यहां की घटना की तस्वीरों को लगाकर यू ट्यूब पर भेज दिया जिसके कारण सारा देश सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में आ गया था। देश के विभिन्न भागों में उत्तर पूर्व के विद्यार्थियों पर हमले होने लगे जिससे उन सब को पढ़ाई छोड़ कर दूसरे राज्यों से पलायन करना पड़ा। देश भर में अस्थिरता का माहौल बन गया था। सरकार को होश तब आया जब हजारो परिवार उजड़ चुके थे, कइयों को जान गंवानी पड़ी, करोड़ों का नुकसान हो चुका था। केंद्र सरकार की जांच एजेंसी ने बताया कि यह करतूत पाकिस्तान की थी और सोशल मीडिया को हथियार बनाया गया था। सरकार ने कई सोशल और न्यू मीडिया साइट्स को इस प्रकार के प्रसारण को रोकने को कहा तो दांव उलटा पडऩे लगा। आखिर सरकार की सख्ती के आगे मजबूर होकर रोक लगी। लेकिन तब तक पानी सिर के काफी ऊपर गुजर चुका था। सोशल मीडिया अब अंग्रेजी व हिन्दी के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में भी काफी प्रभावी भूमिका निभा रही है। हालांकि विभिन्न साइट्स पर हिन्दी में विचारों को लिखने में कठिनाईयां आती हैं लेकिन इंटरनेट पर ही आज कई वेबसाइट्स पर हिन्दी में लिखना सिखाया जा रहा है। क्षेत्रीय भाषा वाले जगहों पर रोमन हिन्दी ही ज्यादा चलन में है। जहां तक सोशल साइट्स पर लिखी जा रही भाषा का सवाल है यह काफी आक्रामक और प्रतिक्रियात्मक होती है। कुछ एक की भाषा पढऩे लायक नहीं होती। विचारों की अभिव्यक्ति को आधार बनाकर देश में अस्थिरता पैदा करना खतरनाक है।

विकिलिक्स के खुलासों ने पूरे विश्व में हलचल मचा दी थी। नित नये खुलासों ने विभिन्न देशों की सरकारों को सफायी देने पर मजबूर कर दिया था। चिदम्बरम, राहुल गांधी और एसएम कृष्णा की अमेरिका को कही बातों का खुलासा जब हुआ तो भारतीय राजनीति में भूचाल सा आ गया। गोपनीय दस्तावेजों को विकिलिक्स वेबसाइट के मालिक जूलियस असांजे ने सार्वजनिक कर दुनिया में राजनीतिक उथल-पुथल मचा दिया था।

अध्ययन का उद्देश्य – आज के समय में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। इसकी ताकत को सही दिशा में उपयोग करने से विकास को नई दिशा मिल सकती है। लेकिन, इसके ऊपर नियंत्रण नहीं रखा गया तो यह न केवल व्यक्तियों के लिए बल्कि देश के लिए भी खतरा पैदा कर सकती है। सोशल मीडिया व्यवस्था व शांति बनाये रखने में सहयोगी की भूमिका निभा सकती है तो यह राज्य के लिए विध्वंसक भी हो सकती है। सोशल मीडिया का अखबारों पर क्या प्रभाव पड़ा इस ओर ध्यानाकर्षित करते हुए आवश्यकता है इसके दोनों पहलुओं का गंभीरता से अध्ययन की।

शोध विधि – उपरोक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिए विभिन्न पुस्तकों तथा पत्रिकाओं का अध्ययन किया गया। साथ ही शोध की साक्षात्कार पद्धति का भी सहारा लिया गया है। समीक्षात्मक व्याख्या के लिए विद्वान लेखकों के लेखों के आधार पर विषय को समझने का प्रयास किया गया है, तथा इंटरनेट के माध्यम का भी प्रयोग किया गया है। ताकि संबंधित विषय के साथ न्याय किया जा सके।

निष्कर्ष एवं सुझाव

सोशल मीडिया जिसे हम इंटरनेट मीडिया भी कहते हैं, का क्षेत्र बढ़ता ही जा रहा है। कम्प्यूटर शिक्षित अधिकांश नागरिक सोशल मीडिया से परिचित हैं। अब तो मोबाइल फोन पर इंटरनेट की सुविधा के आने से सोशल मीडिया से जुड़े लोग 24 घंटे ऑन लाइन रह सकते हैं। सूचनाओं और विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। इसका अपना पाठक वर्ग है। तेज भगदौड़ की जिंदगी में व्यक्ति के पास इतना समय नहीं है कि वह पूरा अखबार पढ़ सके। टीवी चैनलों के आने से भी उसको संतुष्टि नहीं मिल पाती क्योंकि टीवी चैनल अपनी पॉलिसी के अनुसार ही खबरों को दिखाते हैं, दर्शकों को पसंद आये या न आये। पूरी खबर के लिए उसे समाचार पत्रों पर ही आश्रित रहना पड़ता है। लेकिन एक-आध घंटे बैठकर समाचार पत्र पढऩे के लिए उसके पास समय नहीं होता है। इस प्रकार के लोगों के लिए सोशल मीडिया सूचना या जानकारी का बेहतर साधन मिला। समाचार पत्रों को कहीं भी कभी भी पढ़ सकने की सुविधा के चलते वह देख, पढ़ सकता है। खबर के बारे में अपनी प्रतिक्रिया दे सकता है। जिससे अखबारों को अपनी नीतियों पर विचार करना पड़ता है। कुछ दिनों पहले घटे घटनाक्रमों की खबरों ने केवल टीवी चैनलों ही नहीं बल्कि समाचार पत्रों पर भी इसका व्यापक असर दिखा। समाचार पत्रों के सोशल साइट्स पर आने के बाद से संबंधित अखबारों के पाठकों की संख्या दिनो दिन बढ़ती जा रही है जिसके कई लाभ मीडिया समूहों को मिला। सोशल मीडिया की अच्छाइयां व सकारात्मकता है तो उसकी कमियां, नकारात्मकता और चुनौतियां भी हैं। जहां सोशल मीडिया ने विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक व महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर अपनी जबरदस्त प्रतिक्रिया व्यक्त की। कुछ विद्वानों का मानना है कि अगला विश्व युद्ध साइबर युद्ध होगा। जिसके पास साइबर शक्ति ज्यादा होगी वही विजयी होगा। भारत के संदर्भ में यह आवश्यक है कि सोशल मीडिया भारत की एकता, अखण्डता, रक्षा, सुरक्षा, धर्म, संस्कृति को बिना चोट पहुंचाये कानूनी दायरे में प्रसारण करे। भारत में कानून तो बहुत हैं लेकिन उसका पालन नहीं होता। सोशल मीडिया की निगरानी करने वाली देश में अभी तक कोई शक्तिशली संस्था नहीं है जो कि कानूनों का कड़ाई से पालन करा सके और समय आने पर दंडित भी कर सके। भारत सरकार आईटी ऐक्ट, आईपीसी, सीआरपीसी व साइबर लॉ के तहत कानूनी कारवाई समय आने पर करेगी लेकिन इस मीडिया की निगरानी भी आवश्यक है। आवश्यकता गूगल जैसे एक ऐसे भारतीय वेब सर्वर या इंजन को बनाने की है जिसका संचालन भारत से किया जाए और वह भारतीय नियंत्रण में हो और भारत सरकार के समस्त काम-काज उसी सर्च इंजन के द्वारा संचालित किया जाए।

संदर्भ सूची-

  1. मीडिया विमर्श, सित. 2013
  2. कुमुद शर्मा, भूमंडलीकरण और मीडिया, ग्रंथ अकादमी नई दिल्ली, पेज 149
  3. डी.डी. बसु, भारत का संविधान, वाधवा एंड कं., नई दिल्ली, 1999
  4. मीडिया विमर्श, जन.-मार्च, 2011
  5. हस्तक्षेप डाट काम 24.11.2011
  6. परंजय गुहा ठकुरता, लेख, पेड न्यूज हाउ करप्शन इन इंडिया अंडरमाइन डेमोक्रेसी, 10 मार्च 2010
  7. कुमुद शर्मा, भूमंडलीकरण और मीडिया, ग्रंथ अकादमी, नई दिल्ली
  8. राबर्ट मैक्चेस्ने, द ग्लोबल मीडिया, न्यू मिशनरीज ऑफ कारपोरेट कैपिटलिज्म
  9. कुमुद शर्मा, भूमंडलीकरण और मीडिया, ग्रंथ अकादमी, नई दिल्ली
  10. मार्क टुली, गूगल डॉट काम
  11. प्रभात खबर, ई पेपर, 13 जून 2009, पटना
  12. अरविंद मोहन, पत्रकारिता, पत्रकार और पत्रकारिता प्रशिक्षण, सामयिक प्रकाशन नई दिल्ली
  13. डा. नंद किशोर त्रिखा, प्रेस विधि, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी
  14. दैनिक जागरण, 29 सित. 2013, पेज 21
  15. डा. बसंतीलाल बावेल, पत्रकारिता एवं प्रेस विधि, सुविधा लॉ हाउस प्रा. लि., भोपाल
  16. डा. अर्जुन तिवारी, संपूर्ण पत्रकारिता
  17. कथादेश, अप्रैल 2011
  18. अम्बरीश सक्सेना-इश्यूज ऑफ मीडिया पॉलिसी, रेगुलेशन एंड एथिक्स,
  19. यूपीआरटू नोट्स
  20. एन कूपर- कोलंबिया जर्नलिज्म रिव्यू में लेख
  21. कथादेश अप्रैल 2011
  22. कॉमस्कोर रिसर्च
  23. कारपोरेट मीडिया, दिलीप मंडल, राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, 2011
  24. comscore.com
  25. प्रांजल धर, न्यू मीडिया, नये सामाजिक प्रतिमान और नये सरोकार, समकालीन माध्यम, जनवरी 2013
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  33. वही
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