डा. विक्रम सिंह बत्र्वाल*
भारत में पहले समाचार पत्र के प्रकाशन के लगभग 62 वर्ष बाद उत्तराखण्ड में भी पत्रकारिता का सूत्रपात एक अंग्रेज द्वारा किया गया। परिणामत: सन 1842 में मसूरी में म्युनिसिपल बोर्ड के गठन के बाद वहां मुद्रणालय की स्थापना हुई तथा उत्तराखण्ड का पहला समाचार पत्र द हिल्स (अंगे्रजी साप्ताहिक) का प्रकाशन मसूरी से प्रारम्भ हुआ। इस पत्र का सम्पादन एक अंगे्रज मैकिनन करते थे। गढ़वाल क्षेत्र से प्रकाशित यह समाचार पत्र जनोपयोगी सूचनाओं के कारण जल्दी ही प्रसिद्ध हो गया। ‘द हिल्स’ का प्रकाशन आठ वर्षों तक निरन्तर चलता रहा। इसके पश्चात 1870 में ‘मसूरी एक्सचेंज’, ‘मसूरी सीजन’ (1872), ‘मसूरी क्रानिकल'(1875), ‘बेकन’ तथा ‘द ईगल’ (1878), ‘मसूरी टाइम्स’ (1900), ‘द हेराल्ड वीकली’ (1924) तथा मसूरी एडवरटाइजर (1942) आदि प्रकाशित हुए। हालांकि आज इन समाचार पत्रों की कोई भी प्रतियां सुरक्षित नहीं रह पाई हैं। ‘मसूरी टाइम्स’ आजादी के बाद भी मैफेसीलाइट प्रेस से प्रकाशित होता था।
गढ़वाल में समाचार पत्र के प्रकाशन शुरू होने के लगभग तीन दशक के अंतराल के बाद कुमायूं क्षेत्र से भी अखबारों का प्रकाशन शुरू हुआ। सन 1871 में अल्मोडा से ‘अल्मोडा अखबार’ हिन्दी मासिक समाचार पत्र बुद्धिबल्लभ पंत और अन्य साथियों की सम्पादकत्व में प्रकाशित होने लगा। अल्मोड़ा अखबार का पूर्व उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता में विशिष्ठ स्थान रहा है। प्रारम्भ में इसकी छपाई लिथोप्रेस पर होती थी। यह समाचार-पत्र मुख्यत: आंचलिक समस्याओं पर केन्द्रित रहता था जिनमें कुली-उतार, बेगार प्रथा, जंगल बंदोबस्त, बाल शिक्षा, स्त्री अधिकार, मद्यनिषेध, आदि विशेष स्थान रखते थे। अंगे्रजों के अत्याचार के विरूद्ध जनता में जागृति पैदा करने में भी इस पत्र की अहम भूमिका रही है। इतना ही नहीं इस पत्र ने पर्वतीय आंचलों की अनेकों साहित्यिक प्रतिभावों को प्रोत्साहित करने का कार्य किया। इस पत्र के आद्य सम्पादक पं. बुद्धि बल्लभ पंत थे। पंत जी के पश्चात् मुंशी इम्तियाज अली, पं. लीला नन्द जोशी, पं. सदानन्द सनवाल, पं. विष्णुदत्त जोशी तथा ब्रदी दत पाण्डे ने इस पत्र के सम्पादक के दायित्व का निर्वहन किया। पं. ब्रदीदत्त पांडे ने जब निर्भीकतापूर्णक अंग्रेजों के विरूद्ध समाचार प्रकाशित करना प्रारम्भ किया तब अंग्रेज जिलाधिकारी ने ‘अल्मोड़ा अखबार’ के मुद्रणालय पर रोक लगा दी तथा इस पत्र के पुन: प्रकाशन के लिए रु. 1000 की जमानत की शर्त रखी। फलत: निदेशक मण्डल को विवश होकर इस प्रथम उत्तरांखण्डी पत्र को बंद करना पड़ा। अल्मोड़ा से ही सन 1893 में ‘कुमाऊँ समाचार’ हिन्दी मासिक बाबू देवदास शाह ने निकाला। गढ़वाल क्षेत्र में हिन्दी पत्रकारिता का सूत्रपात करने का श्रेय पंडित गिरिजा दत्त नैथाणी को जाता है। मई 1902 में लैंसडाउन से उन्होंने ‘गढ़वाल समाचार’ नाम से एक मासिक पत्र शुरू किया था। गढ़वाल का यह प्रथम हिन्दी समाचार पत्र फुल स्केप साइज के 16 पृष्ठों का था तथा आर्यभास्कर पे्रस मुरादाबाद से छपता था। सुविधा और तकनीकी दृष्टि से कोटद्वार को उपयुक्त समझकर कुछ समय बाद पंडित गिरिजा दत्त नैथाणी ने लैंसडाउन स्थित अखबार के कार्यालय को कोटद्वार स्थानान्तरित कर दिया। इस प्रकार ‘गढ़वाल समाचार’ का छठा अंक अक्टूबर 1902 में कोटद्वार से ही प्रकाशित हुआ। सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक सुधार कार्यक्रमों पर निष्पक्ष लेखनी के चलते जल्दी ही यह पत्र काफी लोकप्रिय हो गया। एक अनुमान के अनुसार 1903 तक इस पत्र की ग्राहक संख्या 2000 तक पहुंच गई थी। जिसमें 80 प्रतियां विदेशों में रह रहे प्रवासी गढ़वालियों को भेजी जा रही थी। पत्र का वार्षिक शुल्क एक रुपया था लेकिन आर्थिक कमी के कारण इस पत्र का प्रकाशन बंद हो गया। कुछ समय बाद गढ़वाल यूनियन के प्रयासों से पं. चन्द्रमोहन रतूड़ी, रायबहादुर, तारादत्त गैरोला और पं. विशम्भरदत्त चंदोला के नेतृत्व में मई 1905 में देहरादून से ‘गढ़वाली’ मासिक पत्रिका का प्रथम अंक प्रकाशित हुआ। उक्त पत्रिका के प्रकाशन के लिए गठित सम्पादकीय समिति के बावजूद भी अनुभव के कारण गिरिजा दत्त नैथाणी को सम्पादक नियुक्त किया गया। इस कारण ‘गढ़वाल समाचार’ भी इसी में सम्मिलित कर लिया गया था। लेकिन गढ़वाल यूनियन के संचालकों से मतभेद के चलते सन 1910 में गिरिजा दत्त नैथाणी ‘गढ़वाली’ से अलग हो गये। इसके पश्चात श्री तारादत्त गैरोला 1612 तक गढ़वाली के सम्पादक बने। सन 1909 में दुगड्डा क्षेत्र में प्रमुख सामाजिक कार्यकत्र्ता धनीराम शर्मा ने तत्कालिक कलक्टर स्टाबल के नाम से स्टाबल प्रेस खोली। यह गढ़वाल की पहली प्रिंटिग पे्रस थी। ‘गढ़वाली’ से अलग होने के पश्चात पं. गिरिजा दत्त नैथाणी ने इसी प्रेस से फरवरी 1913 में ‘गढ़वाल समाचार’ का दुबारा प्रकाशन किया जो 1914 तक चलता रहा।4
फरवरी सन 1913 में ब्रह्मानंद थपलियाल ने पौड़ी में बद्री-केदार प्रेस की स्थापना की तथा सदानंद कुकरेती के संपादकत्व में ‘विशाल कीर्ति’ नाम का मासिक पत्र छापना शुरू किया। सामाजिक चेतना के साथ इस पत्र से गढ़वाली बोली को भी प्रोत्साहन मिला, लेकिन आर्थिक कठिनाईयों के कारण यह अखबार भी बंद हो गया। एक ही जिले से तीन अखबारों के निकलने से वाद-विवाद बढऩे लगा जिस कारण दिसम्बर 1914 में तत्कालीन प्रमुख गढ़वाली नेताओं को कोटद्वार में एक एकता सम्मेलन आयोजित करना पड़ा, जिसमें ‘गढ़वाली’ को साप्ताहिक कर तीनों समाचार पत्रों के स्थान पर प्रकाशित किये जाने पर आम सहमती हुई। इस प्रकार एक बार पुन: गिरिजा दत्त नैथाणी को ‘गढ़वाली’ का सम्पादक नियुक्त किया गया। 1915 से अगस्त 1916 तक देहरादून में रहते हुए गिरिजा दत्त नैथाणी ने गढ़वाली का सुचारू सम्पादन किया लेकिन सम्पादकीय नीति से मतभेद होने के कारण वे उससे पुन: अलग हो गये। विशम्भर दत्त चंदोला ‘गढ़वाली’ से शुरू से जुडे होने के कारण अब इसके सम्पादन का कार्यभार देखने लगे। व्यापक निराशा के बावजूद भी श्री नैथाणी ने अक्टूबर 1917 ई. में मासिक ‘पुरूषार्थ’ का प्रकाशन प्रारम्भ किया जिसकी छपाई बिजनौर तथा प्रकाशन दुगड्डा व नैथाणा से होता था। इसके कुछ अंक बारावंकी से भी छपे। जून 1921 में उन्होंने पत्र का प्रकाशन नैथाणा से प्रारम्भ किया लेकिन आर्थिक तंगी से यह नियमित रूप से प्रकाशित नहीं हो सका और बंद हो गया।
सन् 1902 से लेकर सन 1920 तक गढ़वाल से निकलने वाले अन्य प्रमुख समाचार पत्रों में ‘रियासत टिहरी, गढ़वाल गजट, सेना की चिट्ठी, दुगड्डा, क्वदि इंण्डियन स्टेट रिफार्मर’ (देहरादून), ‘कास्मोपोलिटन’ (1911), देहरादून, ‘निर्बल सेवक’ (1914), राजपुर, देहरादून से अंग्रेजी पत्र ‘एडवरटाइजर’ (1914), प्रमुख रूप से थे। इसी क्रम में 1922 में पौड़ी से पूर्व सांसद प्रताप सिंह नेगी के सम्पादन में ‘क्षत्रीय वीर’ तथा देहरादून की गढ़वाली प्रेस से मुकन्दी लाल वैरिस्टर द्वारा प्रकाशित ‘तरूण कुमाऊँ’ मासिक इसी श्रृंखला के प्रमुख पत्र थे। ‘क्षत्रीय वीर’ को बाद में कोतवाल सिंह नेगी ने संभाला तथा इसे राष्ट्रीय स्वरूप देने का प्रयास किया लेकिन यह पत्र 1938 में बंद हो गया। ‘तरूण कुमाऊँ’ भी 1924 तक ही चल सका। सन 1929 में धनीराम शर्मा के पुत्र कृपाराम मिश्र ‘मनहर’ ने आजादी के आंदोलन को बल देने के लिए कोटद्वार से ‘गढ़देश’ अखबार का प्रकाशन आरम्भ किया लेकिन यह पत्र भी दो वर्ष बाद बंद हो गया। इसके बाद कृपा राम मिश्र ने अपने अनुज हरिराम मिश्र चंचल के सहयोग से ‘संदेश’ नामक पत्र का प्रकाशन शुरू किया लेकिन यह पत्र भी अचानक बंद हो गया। इसके अलावा चंचल द्वारा ‘ललकार, श्रम युग, पहाड़ी मंच, हिमालय की ललकार’ जैसे पत्रों का प्रकाशन किया गया लेकिन दुर्भाग्यवश ये पत्र भी अल्पकाल तक ही जीवित रहे। लेकिन आजादी के आंदोलन में इन पत्रों ने भरपूर सहयोग दिया। उस दौर में गढ़वाली लेखकों और पत्रकारों ने आजादी की अलख जगाने के लिए महम्पवूर्ण कार्य किये जिनमें मेरठ से प्रकाशित ‘हृदय’, मुरादाबाद की शंकर प्रेस से 1929 में प्रकाशित ‘विजय’ तथा हल्द्वानी से प्रकाशित ‘स्वर्गभूमि’ आदि प्रमुख हैं। इसी दौर में अंग्रेज हुकूमत समर्थक पत्र ‘हितैषी’ भी निकला जिसके सम्पादक पिताम्बर दत्त पसवोला रायबहादुर थे लेकिन यह पत्र भी 1933-34 के आसपास बंद हो गया।
गढ़केशरी अनुसूया प्रसाद बहुगुणा द्वारा पौड़ी के स्थापित ‘स्वर्गभूमि’ प्रेस से महेशानंद थपलियाल के संपादन में सन 1933-34 में ‘उत्तर भारत’ नामक अखबार निकला लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यह भी बंद हो गया। इसी समय देहरादून ऋषिकेश से अनेक पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होती रही जिनमें ‘हिमालय केशरी, महिला हितकारक, निर्भय, ब्रह्मचारी, सुदर्शन, दून समाचार’ राष्ट्रीय पुनर्जागरण आंदोलन से जुड़े रहे। गढ़वाल के लैंसडाउन से 1939 में ‘कर्मभूमि’ साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू हुआ जिसके सम्पादक भक्तदर्शन तथा भैरवदत्त धूलिया थे। इसके सम्पादन मण्डल में शहीद श्रीदेव सुमन, कलम सिंह नेगी, नारायण दत्त बहुगुणा, कुन्दन सिंह गुंसाई और ललिता प्रसाद नैथानी भी थे। इनके अलावा मधुर शास्त्री और योगेश धूलिया भी इस पत्र से जुडे रहे। सन् 1940 में गढ़वाल साहित्य परिषद के प्रयासों से डाद्ग पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल की पहल पर लैन्सडाउन से एक साहित्यक पत्रिका ‘पंखुरी’ का प्रकाशन हुआ। यह गढ़वाल की संभवत: पहली साहित्यक पत्रिका थी जिसका संपादन भक्त दर्शन और ललिता प्रसाद नैथाणी ने किया।
कुमांयू मण्डल में भी आजादी से पूर्व अनेकों समाचार पत्र प्रकाशित हुए इनमें प्रमुख है – अल्मोडा से पे्रम बल्लभ जोशी के सम्पादन में 1919 में ‘ज्योति’ मासिक पत्रिका, 1922 में अल्मोडा से ही बसन्त कुमार जोशी के सम्पादन में ‘कुमाऊँ कुमुद’ (पाक्षिक), 1930 में विक्टर मोहन जोशी के सम्पादन में साप्ताहिक ‘स्वाधीन प्रजा’, 1934 में मुंशी हरि प्रसाद टमटा के सम्पादन में ‘समता’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन हुआ। इसके अलावा अल्मोडा से 1935 में ‘नटखट’ (बाल साहित्य) मासिक, 1938 में ‘जागृत जनता’ साप्ताहिक, 1938 में ‘अचल’, ‘इण्डियन बी कीपिंग’ (अंग्रेजी में) मासिकों का प्रकाशन हुआ। इसके साथ ही अल्मोडा से ही 1939 में सोबन सिंह जीना के सम्पादन में साप्ताहिक ‘पताका’, हीरा बल्लभ जोशी के सम्पादन में पाक्षिक ‘उत्थान’ (पत्रिका) 1946, रानीखेत से 1947 में साप्ताहिक ‘प्रजाबन्धु’ आदि समाचार पत्र प्रकाशित हुए।
गढ़वाल तथा कुमांयू जो कि वर्तमान में उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत है, से आजादी से पूर्व निकलने वाले समाचार पत्रों ने लोगों में जनचेतना जागृति करने के साथ-साथ स्वाधीनता आन्दोलन में भी योगदान के लिए उन्हें प्रेरित किया। सामाचार सुधार कार्यों में इन समाचार पत्रों का विशेष योगदान रहा है। इनमें मुख्य रूप से समाज में प्रचलित कुप्रथाओं को दूर करने के लिए लोगों में चेतना पैदा करने का कार्य किया। स्थनीय एवं क्षेत्रीय समस्याओं को उजागर करने तथा उनके समाधान में भी समाचार पत्रों की भूमिका रही है। हालांकि अंग्रेजी समाचार पत्रों का सम्मान तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत की ओर अधिक दृष्टिगोचर हुआ लेकिन प्रसार संख्या सीमित होने के कारण इनका प्रभाव क्षेत्र भी सीमित ही रहा है।
आजादी के पश्चात गढ़वाल तथा कुमांयू में भी समाचार पत्रों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती गई लेकिन बड़ी संख्या में आर्थिक कारणों से ये समाचार पत्र बंद भी होते रहे हैं। वैब साइट पर रजिस्ट्रार ऑफ न्यूज पेपर्स फॉर इंडिया की रिपोर्ट से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार आज उत्तराखण्ड से लगभग 1600 से अधिक समाचार पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं।5
रजिस्टार ऑफ न्यूजपेपर्स फार इण्डिया की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखण्ड से प्रकाशित पत्र/पत्रिकाओं का जनपदवार विवरण
समाचार |
दैनिक | साप्ताहिक | पाक्षिक | मासिक | द्विमासिक | ||||||||||
भाषा |
हिंदी |
अग्रेजी |
अन्य* |
हिंदी |
अग्रेजी |
अन्य* |
हिंदी |
अग्रेजी |
अन्य* |
हिंदी |
अग्रेजी |
अन्य* |
हिंदी |
अग्रेजी |
अन्य* |
देहरादून |
60 | 05 | 04 | 518 | 30 | 54 | 55 | 03 | 13 | 110 | 28 | 33 | 07 | 01 | 02 |
हरिद्वार |
13 | 01 | – | 113 | 03 | 02 | 06 | – | 01 | 19 | – | 08 | – | – | – |
अल्मोड़ा |
02 | – | – | 27 | – | 01 | 03 | – | – | 04 | 01 | – | – | – | – |
चंपावत |
– | – | – | – | – | – | 01 | – | – | 02 | – | – | – | – | – |
उत्तरकाशी |
– | – | – | 03 | – | – | 01 | – | – | – | – | – | – | – | – |
पौड़ी |
06 | – | – | 25 | 01 | – | 08 | – | – | 13 | 01 | – | – | – | – |
चमोली |
– | – | – | 10 | – | – | 02 | – | – | 01 | – | – | – | – | – |
रूद्रप्रयाग |
– | – | – | 01 | – | – | – | – | 02 | – | – | – | – | – | – |
पिथौरागढ़ |
02 | – | – | 06 | – | – | 05 | – | – | 05 | – | – | – | – | – |
बागेश्वर |
02 | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – |
टिहरी |
01 | – | – | 12 | – | – | 06 | 01 | – | 06 | 02 | – | – | – | – |
नैनीताल |
11 | – | – | 56 | – | 03 | 17 | – | 01 | 18 | 02 | 05 | 01 | – | – |
उधमसिंह नगर |
13 | – | – | 48 | – | 02 | 17 | – | 03 | 08 | – | 02 | 01 | – | – |
योगः | 110 | 06 | 04 | 819 | 34 | 62 | 121 | 04 | 20 | 186 | 34 | 48 | 09 | 01 | 02 |
समाचार |
त्रेमासिक | अर्धवार्षिक | वार्षिक | अनियतकालीन | ||||||||
भाषा |
हिंदी |
अग्रेजी |
अन्य* |
हिंदी |
अग्रेजी |
अन्य* |
हिंदी |
अग्रेजी |
अन्य* |
हिंदी |
अग्रेजी |
अन्य* |
देहरादून |
18 | 15 | 14 | 01 | 05 | 01 | 04 | 01 | 17 | 07 | – | 01 |
हरिद्वार |
10 | 02 | – | – | – | 01 | – | – | – | – | – | – |
अल्मोड़ा |
02 | – | – | – | – | – | 03 | – | 02 | – | – | – |
चंपावत |
– | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – |
उत्तरकाशी |
– | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – |
पौड़ी |
01 | – | – | – | – | – | – | 03 | 01 | – | – | – |
चमोली |
– | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – |
रूद्रप्रयाग |
– | 01 | – | – | – | – | 01 | – | – | – | – | – |
पिथौरागढ़ |
02 | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – |
बागेश्वर |
– | – | – | – | – | – | – | – | – | 02 | – | 01 |
टिहरी |
01 | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – | – |
नैनीताल |
01 | – | 02 | – | – | 01 | – | – | – | 01 | 01 | – |
उधमसिंह नगर |
– | – | – | – | 01 | – | – | – | 01 | – | – | – |
योगः | 35 | 18 | 16 | 01 | 06 | 03 | 08 | 04 | 21 | 10 | 01 | 02 |
: अन्य समाचार पत्रों की श्रेणी में मणीपुरी, बंगाली, संस्कृत, गुजराती, उर्दू, गढ़वाली, नेपाली, पंजाबी आदि के साथ द्विभाषीय तथा बहुभाषीय समाचार पत्र/पत्रिकाएं भी शामिल हैं।
समाचार पत्रों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तथा उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि उत्तराखण्ड के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक संवर्धन तथा परिवर्तन में पत्र/पत्रिकाओं की प्रभावी भूमिका रही है, जिसको अनदेखा नही किया जा सकता है। निश्चित ही 1842 में मसूरी से शुरु हुआ उत्तराखण्ड की पत्रकारिता का सफर 165 वर्षो में जनसहभागिता के साथ जनवाणी बनकर गौरवशाली इतिहास की रचना का गवाह रहा है।
संदर्भ :
- सिंह, ओमप्रकाश, संचार माध्यमों का प्रभाव, क्लासिकल पब्लिसिंग कम्पनी, नई दिल्ली, पृ. 159।
- तिवाड़ी, डा. राम चन्द्र : मुद्रण-कला, हिन्दी पत्रकारिता विविध आयाम, हिन्दी बुक सेन्टर, नई दिल्ली।
- मिश्र, कृष्ण बिहारी : हिन्दी पत्रकारिता (वाराणसी, 1968), पृ. 47-48।
- सिंह, हरबचन, सीमांत प्रहरी, ‘साप्ताहिक’, रजत जयन्ती पर्यावरण विशेषांक, सीमांन्त प्रहरी प्र्रेस मसूरी, अंक 30, पृ. 25।
- वैब साइट : rni.nic.in पर प्राप्त विवरण के अनुसार।
- वैदिक वेद प्रताप, हिन्दी पत्रकारिता : विविध आयाम, भाग – 1, हिन्दी बुक सेन्टर, नई दिल्ली।
very informative and nice article.
Would like to know more about Garhdesh
LikeLike