पत्रकारिता के बदलते प्रतिमान

प्रो. ज्ञान प्रकाश पाण्डेय*

भारतीय पत्रकारिता के जन्म से लेकर आजतक पत्रकारिता में कई नये आयामों का प्रादुर्भाव हुआ, जो देशकाल, वातावरण एवं सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक परिस्थितियों की देन रही हैं। जेम्स ऑकस्टस हिक्की ने जब समाचार पत्र को प्रकाशित किया था, उस समय से लेकर आजतक विषय-वस्तु, भाषा, शीर्षक, प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी दृष्टि से समाचार पत्रों के प्रकाशन एवं विषय-सामग्री में काफी परिवत्र्तन आया है और दिन-प्रति-दिन इसमें नये प्रतिमान जुड़ते जा रहे हैं। मसलन, पहले समाचार मूलरूप से साहित्यिक होते थे। उसकी विषय सामग्री साहित्यिक अर्थात् कहानी, उपन्यास आदि से सम्बन्धित रहती थी, लेकिन आज वह बात नहीं हैं। आज पाठकों को विविध प्रकार के समाचारों, विशेष रूप से राजनीतिक समाचारों का अम्बार लगा रहता है। इसी तरह साज-सज्जा, मुद्रण तकनीकी में भी विशेष बदलाव आया है और लेटर प्रेस एवं हैण्ड प्रेस की जगह सुपर ऑफ्सेट प्रिंटिंग मशीनों ने स्थान ले लिया है, इसलिए आज समाचार पत्र विशेष सुन्दर एवं पठनीय लगते हैं। इस सब के पीछे द्रुतगति से तकनीकी विकास एवं नयी सूचना प्रौद्योगिकी का जन्म होना है। लेखक विभिन्न कालखण्डों की पत्रकारिता एवं समाचार पत्रों का विश्लेषण करने पर इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि पत्रकारिता जो पहले एक मिशन या स्वान्त: सुखाय के लिए की जाती थी, वह अब पूरी तरह परिवर्तित होकर व्यावसायिक हो गयी है। जहाँ तक आज पत्रकारिता के बदलते प्रतिमान का प्रश्न है उसे हम निम्न बिन्दुओं के रूप में परिभाषित कर सकते हैं।

विषयवस्तु में परिवर्तन

जैसा कि पहले ही उल्लेखित किया जा चुका है कि स्वतंत्रता के पूर्व पत्रकारिता पूर्णत: साहित्यिक थी। समाचारों के विषयवस्तु साहित्यिक हुआ करते थे, उसमें राजनीतिक घटनाओं को विशेष महत्व नहीं दिया जाता था। उदाहरण के तौर पर भारतेन्दुयुग एवं द्विवेदीयुग के समाचार पत्रों को लिया जा सकता है। परन्तु, कालान्तर में पत्रकारिता के विषयवस्तु में असाधारण परिवर्तन हुआ और पत्रकारिता जन सामान्य के मुद्दों को अधिक महत्व देने लगी। आधुनिक युग में पत्रकारिता जनता एवं सरकार के बीच एक सेतु का काम कर रही है। एक वह एजेंडा सेटिंग का भी कार्य कर रही है और ऐसे विषयवस्तु का सृजन कर रही है जो राजनीतिक होते हुए भी जनसामान्य के हितों के काफी करीब हैं। इतना ही नहीं सामाजिक विषयवस्तु के प्रस्तुति में भी परिवर्तन देखने को मिलता है।

भाषायी परिवर्तन

पत्रकारिता के क्षेत्र में सबसे बड़ा परिवर्तन भाषा के स्वरूप एवं शब्दों का चयन एवं उनके प्रयोग में हुआ है। पहले जब पत्रकारिता का स्वरूप साहित्यिक था तब विशेष रूप में साहित्यिक एवं तत्सम शब्दों का प्रयोग किया जाता था, लेकिन समय परिवत्र्तन के साथ-साथ पत्रकारिता की भाषा में भी बहुत बड़ा परिवत्र्तन आया। उसमें न केवल हिन्दी बल्कि अँगरेजी एवं उर्दू के शब्दों का भी प्रयोग होने लगा। जैसे ‘हेडमास्टर साहब आज स्कूल नहीं आए’, महिला ने अदालत में अपना बयान दर्ज करवाया। यूँ तो पत्रकारिता के बदलते प्रतिमान के प्रणेता के रूप में हम ‘जोसेफ पुल्तिजर’ को मानते और कहते हैं कि अपने समाचार पत्र की प्रसार संख्या बढ़ाने के लिए उसने उन सभी प्रतिमानों एवं मापदण्डों का चयन किया, जो न केवल प्रसार वृद्धि में सहायक हुए, बल्कि पीत पत्रकारिता को भी जन्म दिया। हालाँकि गणतंत्र का चौथा स्तम्भ होने के कारण समाचार पत्र को लिखने की आजादी है जो देशहित, समाजहित एवं लोकहित में हो और पत्रकारिता की आचार संहिता का उल्लंघन न करता हो। आज स्थिति भयावह है और प्रेस परिषद के बार-बार निर्देशों एवं सुझावों के बावजूद स्थिति में कोई विशेष बदलाव नहीं आया है। अत: आज की पत्रकारिता की भाषा बाजारवाद की भाषा एवं विषय-वस्तु बन गयी है।

सेन्सेशनल न्यूज एवं पत्रकारिता

पत्रकारिता के बदलते प्रतिमान में यह तत्व विशेष एवं प्रमुख रूप से उभर कर सामने आया है। बाजार में अपनी पकड़ बनाये रखने तथा प्रसार संख्या के विस्तार के लिए पाठकों को आकर्षित करने के उद्देश्य से समाचार पत्रों ने पत्रकारिता की आचार संहिता को ताक पर रख कर इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है। मैं यह नहीं कहता कि सभी समाचार पत्र इसके उदाहरण है, लेकिन छोटे एवं भाषायी समाचार पत्रों में यह विशेष रूप से देखने को मिलता है। परिणामस्वरूप पाठकों की नजरों में धीरे-धीरे समाचार पत्र अपनी विश्वसनीयता खोते चले जा रहे हैं। जो एक सभ्य एवं विकासशील समाज के लिए शुभ लक्षण नहीं है।

व्याख्यात्मक एवं खोजी पत्रकारिता

यद्यपि विशेष विद्वान एवं पत्रकार इसे पत्रकारिता का एक विशेष वर्गीकरण मानते हैं। लेकिन मेरे मत में यह पत्रकारिता के एक नये प्रतिमान के रूप में सामने आया है। यद्यपि यह पाश्चात्य देशों से आयातित किया गया है। विकासशील देशों में यदि पत्रकारिता के उद्देश्यों को देखा जाए, तो यह विशेष रूप में स्पष्ट होता है कि विकासशील देशों में पत्रकारिता का उद्देश्य न केवल सूचना प्रदान करना है, बल्कि जन शिक्षण करना भी है। क्योंकि देश की अधिकांश जनता आज भी अशिक्षित है और उन्हें शिक्षित करना, उन्हें किसी विषय को समझाना पत्रकार एवं पत्रकारिता का प्रमुख उद्देश्य है। उदाहरण के तौर पर सरकार के आम बजट को लिया जा सकता है। यह सभी लोग जानते हैं कि जिस तकनीकी रूप में ‘रेल बजट’ या ‘आम बजट’ को संसद में पेश किया जाता है। उसे उस रूप में एक आम जनता पूरी तरह समझ नहीं सकती। इसलिए यह पत्रकारों एवं समाचार पत्रों का दायित्व हो जाता है कि उसे सरल जनभाषा में पाठकों हेतु प्रस्तुत करें, जिससे कि पाठक एवं आम जनता आसानी समझ सके कि वास्तव में यह बजट लोगों के लिए कितना लाभकारी या अलाभकारी है। इसलिए दिन-प्रति-दिन व्याख्यात्मक पत्रकारिता का महत्व बढ़ता ही जा रहा है।

इसी तरह हम यदि पत्रकारिता के दूसरे आयाम ‘खोजी पत्रकारिता’ को लें तो संयुक्त राज्य अमरिका के ‘वाटर गेट काण्ड’ के पर्दाफाश के बाद लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ होने के नाते यह पत्रकार एवं समाचार पत्रों के लिए अपरिहार्य हो गया है कि वे सरकार एवं शासन के भ्रष्टाचार, अराजकता, कुरीतियों को उजागर करें, जिनसे न केवल एक आदर्श लोकतंत्र का निर्माण हो सके, बल्कि उसे बचाया भी जा सके। इस परिप्रेक्ष्य में समाचार पत्रों ने काफी सराहनीय कार्य किया है। चाहे वह भागलपुर जेल का ‘आँखफोड़वा काण्ड’ हो या ‘2जी स्प्रेक्ट्रम काण्ड’ हो या फिर ‘बोफोर्स’ आदि का मामला हो, इन तमाम मामलों का पर्दाफाश करने एवं सरकार की नींद उड़ाने में समाचार पत्रों की अहम भूमिका रही है। इसलिए सही मायने में आज सभी समाचार पत्र विशेष रूप से अन्वेषणात्मक पत्रकारिता को ही समाचार मानते हैं, जो जनता को जगाने एवं सूचना देने तथा भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने का कार्य करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप न केवल कई सरकारें चली गयीं, बल्कि विशेष रूप से भारतीय लोकतंत्र भी मजबूत हुआ है।

विविध प्रकार के समाचारों का वर्गीकरण

स्वतंत्रता आन्दोलन के समय भारत में समाचार पत्रों का काफी विकास हुआ, क्योंकि उस समय पत्रकारों एवं समाचार पत्रों का एक मात्र उद्देश्य अँगरेजों की दमनकारी नीतियों का विरोध करना था तथा जनता को उनके प्रति विरोध करने हेतु जागरूक करना था, ताकि अँगरेजों की दासता से देश को मुक्ति मिल सके। इसलिए समाचार पत्रों में कांग्रेस एवं अन्य राष्ट्रभक्तों की गतिविधियों पर आधारित समाचारों को महत्व मिलता था तथा राष्ट्रहित की भावना पर आधारित समाचार ही छपते थे। लेकिन वर्तमान समय में समाचार पत्रों के विषयवस्तु एवं कलेवर बदल गए और गाँधीयुग आते-आते इस तरह के असंख्य समाचार पत्रों का प्रकाशन हुआ। स्वयं गाँधी जी ने ही ‘नवजीवन’, ‘यंगइण्डिया’ एवं ‘हरिजन’ नामक पत्रों का प्रकाशन किया। इसके अतिरिक्त, उस समय के समाचार पत्रों के सदर्भ में एक बात और गौर करने वाली है, कि उस समय राष्ट्रीय भावना जागृत करने के साथ-साथ समाचार पत्रों द्वारा समाज हित एवं लोकहित की समस्याओं को ही विशेष रूप से प्रकाशित किया जाता था एवं उसका समाधान खोजा जाता था, क्योंकि आदर्श समाज एवं आदर्श राष्ट्र बनाना ही उनका एक मात्र सपना था। मसलन ‘हरिजन’ नामक पत्र से गाँधीजी ने भारतीय समाज में व्याप्त भयावह सामाजिक समस्या ‘अस्पृश्यता’ को दूर करना चाहते थे। इसी तरह बालगंगाधर तिलक ने अपने समाचार पत्र ‘केसरी’ के माध्यम के लाखों-लाख लोगों को जोडने का कार्य किया। लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात् पत्रकारिता एवं पत्रकारों का मूल उद्देश्य बदल गया और वे पाश्चात्य देशों के समाचार पत्रों की शैली, भाषा, प्रवृत्ति आदि की नकल करने लगे। परिणामस्वरूप समाचार पत्र के मालिकों द्वारा व्यावसायिक दृष्टि से सभी पाठकों के लिए उनकी रूचि के समाचार देना प्राथमिकता बन गया। परिणामस्वरूप, समाचार पत्र का स्वरूप पूर्णतया बदल गया और उसमें राजनीति से लेकर, खेल, अपराध, आर्थिक एवं वाणिज्य जगत, स्थानीय, क्षेत्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय समाचारों का प्रकाशन होने लगा और उसके लिए मालिको द्वारा अखबारों में पृष्ठों का भी आवंटित कर दिया गया। इसलिए आज समाचार पत्रों में पाठकों के लिए विविध प्रकार के समाचार प्रकाशित होने लगे हैं।

विशेषीकृत पत्रकारिता

शिक्षा, प्रौद्योगिकी तथा लोगों की विभिन्न रूचि ने पत्रकारिता में विशेषीकृत पत्रकारिता को जन्म दिया। जिसके परिणामस्वरूप उनके पहलुओं से सम्बन्धित समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं का जन्म हुआ। उदाहरण के तौर पर महिलाओं की रूचि को ध्यान में रखते हुए ‘मेरी सहेली’, ‘गृहलक्ष्मी’, ‘गृहशोभा’, ‘वुमेनइरा’ आदि। उसी तरह आर्थिक एवं वाणिज्य आदि से जुड़े विषयों पर ‘द इकोनोमिक्स टाइम्स’, ‘बिजिनेस टुडे’, खेल पर आधारित पत्रिका ‘स्पोट्र्स् स्टार’ तथा साहित्यक पत्रिकाओं में ‘आजकल’, ‘कादम्बिनी’, ‘नवनीत’, ‘साहित्य अमृत’, ‘हंस’ आदि पत्रिकाएँ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य, कृषि आदि से सम्बन्धित पत्रिकाएँ भी प्रकाशित हुईं, जिनकी विषय सामग्री कृषि, खेतीबारी एवं किसानों की समस्याओं एवं सलाह पर आधारित होती हैं। इसी तरह ‘निरोगधाम’, ‘निरोगसुख’, ‘आरोग्य’ आदि पत्रिकाएँ स्वास्थ्य, रोग एवं उसके निदान से सम्बन्धित विषयों पर विशेष सामग्री प्रकाशित करती हैं।

विकासशील पत्रकारिता

यद्यपि भारत जैसे विकासशील एवं प्रगतिशील देश के लिए विकासशील पत्रकारिता एक संजीवनी का कार्य करेगी। लेकिन दुर्भाग्यवश द्वितीय प्रेस आयोग की संस्तुतियों के बावजूद निजी क्षेत्रों में होने के कारण बहुतायत समाचार पत्रों ने इसे कोई ज्यादा महत्व नहीं दिया। फिर भी कुछ समाचार पत्रों ने विशेष रूप से इसके ऊपर ध्यान देकर विकास से सम्बन्धित समाचारों को प्रकाशित किया, जिसमें प्रमुख है ‘भास्कर’ ‘राजस्थान पत्रिका’,  ‘दी हिन्दुस्तान टाइम्स’, ‘हिन्दू’ एवं अन्य भाषायी पत्र ‘ईस्टर्न पनोरमा’ ‘शिलांग टाइम्स’ आदि। यद्यपि इन समाचार पत्रों को एरेस्ट्रोकेट टाईप के समाचार पत्रों द्वारा व्यंग्य एवं आलोचना का भी सामना करना पड़ा और विकासात्मक समाचार पत्रों के प्रकाशन के लिए उन्हें ‘गोबरगैस’ नामक पत्र की संज्ञा से सम्बोधित किया गया। उन्हें यह पता नहीं कि इस तरह के समाचारों के प्रकाशन से देश एवं लोगों को कितना लाभ होगा, क्योंकि आज भी मूलत: भारत गाँवों में बसता है। दुर्भाग्यवश व्यावसायिकता के दौर में प्राय: सभी समाचार पत्र विकासवादी पत्रकारिता को कम महत्व देते हैं, फिर भी ‘हिन्दू’, ‘भास्कर’ व ‘राजस्थान पत्रिका’ जैसे राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने इस प्रावृत्ति को बरकरार रखा है और उसी के साथ कुछ और भी समाचार पत्र हैं, जो समय-समय पर ऐसे समाचारों को विशेष स्थान देते हैं। लेकिन आज ऐसे समाचारों का प्रतिशत बहुत ही कम है। आज राजनीति, अपराध, खेल आदि समाचारों की ही समाचार पत्रों में बहुलता है।

विज्ञापन की प्राथमिकता

विज्ञापन प्रकाशन को समाचार पत्रों की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है, क्योंकि ‘विज्ञापन’ समाचार पत्रों की आय का एक बहुत बड़ा स्रोत है। इसलिए आज ‘विज्ञापन प्रकाशन’ प्राथमिक तथा समाचारों का प्रकाशन गौण हो गया है। यद्यपि इससे समाचार पत्रों की साख गिरी है, फिर भी यह एक उद्योग में परिवर्तित हो जाने के बाद तथा समाचार पत्रों के निजी क्षेत्रों मेें होने के चलते विज्ञापन को प्राथमिकता देना आज समाचार पत्रों के लिए अपरिहार्य हो गया है। यद्यपि गाँधीजी जैसे महान पत्रकार विज्ञापन लेने एवं प्रकाशित करने के खिलाफ थे, क्योंकि उनका मानना था कि इससे समाचार पत्र एवं पत्रकारों की विश्वसनीयता घटती है। वह निर्भीक एवं निष्पक्ष रूप से कोई भी तथ्य प्रकाशित नहीं कर सकते, यदि वे विज्ञापनदाता से विज्ञापन लेते हैं। अत: आज संपादक, समाचार पत्र के मालिकों अथवा विज्ञापन प्रबंधक के हाथों की कठपुतली बन कर रह गया है और उसका अस्तित्व एवं नौकरी दोनों ही उसकी कृपा पर निर्भर हो गया है। ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं। दूसरी तरफ समाचार पत्रों के पृष्ठों के मूल्य में बढ़ोत्तरी, पत्रकारों के भारी भरकम वेतन एवं अन्य चीजें भी ऐसी हैं, जिनको नकारा नहीं जा सकता है। यही कारण है कि आज समाचार पत्रों को विज्ञापन लेना भी एक मजबूरी बन गई है। इसीलिए आजकल ‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’ जैसे समाचार पत्र भी ‘पंजाब केसरी’ की तरह मुख्य अथवा प्रथम पृष्ठ पर पूरा का पूरा विज्ञापन दे रहे हैं। जबकि यह प्रवृत्ति आज से पहले नहीं हुआ करती थी। ऐसा कहा जाता है कि मदनमोहन मालवीय को ‘लीडर’ समाचार पत्र छापने का जब पैसा नहीं था, तो उन्होंने अपनी जीवनसंगिनी के कंगन बेचकर ‘लीडर’ को बन्द होने से बचाया था। लेकिन आज वह बहुमूल्य आदर्श बाजारवाद एवं विज्ञापनवाद के चलते समाप्त हो गया है।

समाचार पत्रों की रूपसज्जा (मेकअप)

अति प्रतिस्पर्धा के युग में पाठकों को आकर्षित करने तथा प्रसार संख्या बढ़ाने के लिए समाचार पत्रों में आज रूपसज्जा (मेकअप) पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जिससे कि वे काफी सुन्दर, संतुलित एवं आकर्षक लगें। आज मुद्रण तकनीकी एवं प्रद्यौगिकी में विकास होने के कारण समाचार पत्र विविध प्रकार के रूपसज्जा की तकनीक अपना रहे हैं। कम्प्यूटर एवं सुपर ऑफ्सेट के आने से पृष्ठ आवरण को विभिन्न ढंग से प्रस्तुत करने में काफी आसानी हो गयी है और प्रतिदिन एक नये कलेवर में समाचार पत्र छप रहे हैं। वे इतने सुन्दर, स्पष्ट और मौलिक लगते हैं कि हाथ में लेने के बाद उसे छोडऩे का मन ही नहीं करता। पहले के समाचार पत्रों में कुल आठ कालम (स्तम्भ) हुआ करते थे और प्राय: सभी समाचार पत्र इनका अनुकरण करते थे, लेकिन आज बड़े समाचार पत्र अपने को और सुन्दर बनाने के लिए कभी सात तो कभी पाँच स्तम्भों के भी पृष्ठ छाप रहे हैं और उसकी डिजाइन भी उसी तरह से परिवर्तित हो रही है। उदाहरण के तौर पर ‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’ जैसे समाचार पत्रों को लिया जा सकता है।

समाचार पत्रों के ऑन लाइन संस्करणों के प्रकाशन का प्रादुर्भाव

आज के व्यस्ततम एवं भागमभाग जीवन में लोगों के पास इतना भी समय नहीं है कि वे लोग कुछ समय निकालकर या समाचार पत्र खरीद कर पढ़ ले। इसलिए पाठकों के सुविधा हेतु तथा उन तक सूचना पहुंचाने के उद्देश्य से इंटरनेट एवं न्यू मीडिया के आगमन के पश्चात् प्राय: सभी समाचार पत्र अपने संस्करण को पाठकों विशेष रूप से न्यू मीडिया उपभोक्ताओं के लिए वेब पेज खोल कर आनलाइन संस्करण प्रकाशित कर रहे हैं। जिससे पाठक अपनी सुविधानुसार समाचार पत्र को अपने कम्प्यूटर स्क्रिन पर ही इंटरनेट के सहारे पढ़ ले। यह संचारक्रान्ति लाने में एक महत्वपूर्ण कदम है। यद्यपि इससे कुछ समाचार पत्रों की प्रसार संख्या पर भी फर्क पड़ा है, लेकिन इससे समाचार पत्रों की पाठकों में लोकप्रियता भी बढ़ी है।

प्रशिक्षित पत्रकारों की उपलब्धता

आज समाचार पत्र उद्योग में रोजगार की सम्भावनाओं को देखते हुए, भारत के बहुतायत विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता एवं जनसंचार का प्रशिक्षण भली भाँति रूप से एक सफल पाठ्यक्रम के रूप में चलाया जा रहा है। इसमें स्नातक से लेकर स्नातकोत्तर एवं पी-एच.डी. एवं डी.लिट्. जैसे पाठ्यक्रमों शामिल हैं। जिनके चलते आज इस व्यवसाय में काफी योग्य, जिम्मेदार एवं प्रशिक्षित लोग आ रहे हैं। इससे एक स्वस्थ्य एवं आदर्श पत्रकारिता का मार्ग प्रशस्त हो रहा है, क्योंकि ये प्रशिक्षित पत्रकार, एक ‘ले मैन’ पत्रकार से कहीं सौ गुने अच्छे हैं। क्योंकि उन्हें प्रेस कानून, प्रेस की आचार संहिता, समाचार मूल्य आदि का व्यापक ज्ञान प्राप्त होता है, जिससे वे ऐसी खबरें नहीं छापते, जो न केवल अपुष्ट हों, बल्कि आचार संहिता के विरूद्ध भी हों।

क्षेत्रीय समाचारों के प्रति झुकाव

जैसा कि हम जानते हैं कि निकटता (Proximity) समाचार का एक महत्वपूर्ण तत्व है। हर व्यक्ति अपने पास पड़ोस के समाचारों को पहले पढऩा या जानना चाहता है। इसी दृष्टि को ध्यान में रखते हुए पाठकों के हितों की पूत्र्ति तथा प्रसार संख्या की वृद्धि अथवा बाजार प्राप्ति हेतु कई राष्ट्रीय एवं बड़े समाचार पत्रों ने इस तरफ विशेष ध्यान दिया है और अपने समाचार पत्र का अधिक से अधिक क्षेत्रीय संस्करण प्रकाशित कर रहे हैं, जिससे क्षेत्रीय एवं स्थानीय समाचारों को अधिक से अधिक स्थान दिया जा सके। उदाहरण के तौर पर ‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’, ‘दैनिक जागरण’, ‘राष्ट्रीय सहारा’, ‘हिन्दू’ ‘आसाम ट्रिब्यून’, ‘युगशंख’ आदि समाचार पत्रों को लिया जा सकता है। इसके साथ ही साथ आज ‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’ अथवा ‘टेलीग्राफ’ जैसे राष्ट्रीय समाचार पत्रों के गुवाहाटी संस्करण को लिया जा सकता है।

शीर्षक एवं लीड का प्रयोग

प्रारम्भ में जब समाचार पत्रों का जन्म हुआ या पत्रकारिता का प्रादुर्भाव हुआ, उस समय समाचार बिना शीर्षक एवं लीड के दिये जाते थे और समाचार को समझने के लिए पाठक को पूरे समाचार को पढऩा पड़ता था, जिससे काफी समय लगता था। लेकिन धीरे-धीरे पाठकों को शीघ्र एवं कम समय में समाचार का सार देने के लिए समाचार पत्रों में शीर्षक एवं लीड का प्रयोग होने लगा। इससे पाठकों को काफी लाभ हुआ और अब बिना पूरा समाचार पढ़े ही पाठक मात्र शीर्षक और लीड के सहारे ही पूरे समाचार को समझ लेता हैं। इसीलिए आज समाचार पत्र विशेष रूप से आकर्षक एवं प्रभावशाली शीर्षकों का प्रयोग करते हैं, जिससे कि अधिक-से-अधिक पाठकों को आकर्षित किया जा सके। उदाहरण के तौर पर ‘जनसत्ता’ एवं ‘इलेस्ट्रेडेड वीकली’ को लिया जा सकता है। एक समय ऐसा था जब पाठक इन समाचार पत्रों की भाषा, शीर्षक, पाठ्य सामग्री के दीवाने हुआ करते थे और प्रेस से बाहर आते ही पूरा समाचार पत्र व पत्रिका बिक जाती थी।

व्यावसायिकता का प्रभाव

स्वतंत्रता के पूर्व पत्रकारिता एक मिशन थी। स्वतंत्रता संग्राम एवं आजादी के समय भी समाचार पत्रों का एक निश्चित उद्देश्य हुआ करता था। लेकिन उसके बाद सभी समाचार पत्र निजी मालिकों के हाथों में चले गये, जिनका उद्देश्य पैसा कमाना प्रमुख एवं समाज सेवा गौण हो गया। ऐसा करना उनके लिए बहुत हद तक अपरिहार्य हो गया था, क्योंकि समाचार पत्र का प्रकाशन एक खर्चीला व्यवसाय हो गया है। इसलिए उस खर्च को निकालना तथा लाभ प्राप्त करना उनका प्रमुख उद्देश्य हो गया है। क्योंकि, समाचार पत्र पहले एक या दो व्यक्ति भी निकाल सकते थे। उसका प्रसार क्षेत्र सीमित था, लेकिन अब यह एक उद्योग बन जाने के कारण काफी लोगों का व्यवसाय बन गया। अत: इन सब के चलते पैसे के प्रति प्रकाशकों का झुकाव स्वाभाविक रूप से बढ़ गया है। इसीलिए, विज्ञापन आदि के प्रति समाचार मालिकों का झुकाव ज्यादा बढ़ गया है, जो स्वतंत्रता के पूर्व नहीं था। उस समय समाचार पत्र के प्रकाशक राष्ट्रभक्त एवं स्वतंत्रता सेनानी हुआ करते थे और देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने पर तुले रहते थे। लेकिन अब वह सोच नहीं है। यही टेऊन्ड (प्रतिमान) प्राय: अब हमें सभी समाचार पत्रों में देखने को मिलते हैं।

अद्यतन मुद्रण प्रौद्योगिकी का प्रयोग

विगत दशकों में मुद्रण प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी में इतना परिवर्तन आया है कि उसने पत्रकारिता जगत को एक द्रुत गति प्रदान की है। आज समाचार पत्र न केवल सुपर ऑफ्सेट बल्कि सेटेलाइट के माध्यम से प्रकाशित हो रहे हैं। भारत में सर्वप्रथम इसका प्रयोग ‘हिन्दू’ अँगरेजी दैनिक समाचार पत्र द्वारा किया गया था, जिसके द्वारा इसके कई संस्करण एक साथ प्रकाशित किये गये। आज सभी समाचार पत्र नहीं बल्कि बड़े-बड़े समाचार पत्र इस तकनीक या सुपर ऑफ्सेट प्रिंटिंग मशीनों का प्रयोग कर रहे हैं, जिसके द्वारा अल्प समय में ही लाखों-लाख प्रतियाँ छाप दी जाती हैं। रंगीन प्रिंटिंग का पर्दापण भी अखबारों के लिए एक वरदान साबित हुआ है और इसने समाचार पत्रों की प्रसार संख्या को बढ़ाने में काफी योगदान दिया है। अच्छी छपाई एवं विविध रंगों के प्रयोग से समाचार पत्र आज काफी आकर्षक, सुन्दर एवं पठनीय हो गए हैं। जबकि आज से लगभाग 50 साल पहले यह मुद्रण प्रौद्योगिकी उपलब्ध नहीं थी, इसलिए श्वेत-श्याम रंग में ही समाचार पत्र छपते थे। जेम्स अगस्त हिक्की ने जब अपना पहला अखवार ‘बंगाल गजट’ या ‘कलकत्ता जेनरल एडवर्टाइजर’ छापा था, उस समय वह अखवार पढऩे व देखने में इतना भद्दा व अपठनीय था कि लोग सही ढंग से पढ़ नहीं पाते थे, क्योंकि इस तरह की उन्नत मुद्रण तकनीक उपलब्ध नहीं थी और समाचार भी काफी पुराने हुआ करते थे, क्योंकि उस समय सूचना प्रौद्योगिकी का भी उतना विकास नहीं था जिससे अद्यतन समाचारों को पाठकों को जल्द से जल्द पहुँचा जा सके लेकिन आज इस क्षेत्र में एक क्रान्ति सी आ गयी है और घर बैठे विश्व के समाचारों को हम एक मिनट में देख या सुन लेते हैं। यह सूचना प्रौद्योगिकी में आई क्रान्ति का ही कमाल है।

प्रसार को बढ़ावा

व्यावसायिकता के चलते लाभ कमाना प्राय: सभी समाचार पत्रों का परम उद्देश्य हो गया है। इसलिए प्रसार संख्या को बढ़ाने के लिए समाचार पत्रों में काफी प्रतिस्पर्धा बढ़ गयी है। क्योंकि वे इस बात को जानते हैं कि प्रसार संख्या बढ़ाने से न केवल समाचार पत्र काफी लोगों तक पहुँचेगा, बल्कि उससे आमदनी तो होगी ही इसके साथ साथ अधिक-से-अधिक विज्ञापन भी प्राप्त होगा। क्योंकि प्रसार एवं विज्ञापन में चोली दामन का सम्बन्ध है। प्रसार जितना बढ़ेगा समाचार पत्रों को विज्ञापन उतना ही मिलेगा और जितना विज्ञापन मिलेगा उतना ही उसे लाभ होगा। इसलिए आजकल सम्पादकीय विभाग से भी प्रसार एवं विज्ञापन विभाग सशक्त एवं महत्वपूर्ण है। आजकल तो कभी-कभी विज्ञापन एवं प्रसार विभाग सम्पादकीय विभाग को भी निर्देश देते हैं और यदि कोई विज्ञापन आ गया तो कभी-कभी महत्वपूर्ण समाचारों को भी रोक दिया जाता है।

विभिन्न विभागों का गठन

पहले समाचार पत्रों में प्रकाशक, स्वामी तथा सम्पादक आदि मात्र एक या दो व्यक्ति हुआ करते थे। जिन पर प्रकाशन, संपादन से लेकर वितरण तक के दायित्व हुआ करते थे। लेकिन जब समाचार पत्रों ने एक उद्योग का रूप ले लिया, तो यह कार्य एक या दो व्यक्तियों तक सीमित नहीं रहा। इसे सही उद्योग का स्वरूप देने के लिए विभिन्न विभागों का गठन किया गया, जिससे सही मायने में उसका प्रबंधन कोवार्डिनेशन एवं नियंत्रण किया जा सके। अभी भी प्राय: साप्ताहिक कुछ समाचार पत्रों अथवा लघु समाचार पत्रों में स्थिति प्राय: कुछ ऐसी ही है, लेकिन बड़े समाचारपत्रों में अब ऐसी बात नहीं है, वहाँ विभिन्न प्रकार के विभागों का गठन एवं सही प्रबंधन देखने को मिलता है। समाचारपत्रों के प्रकाशन में जो प्रमुख विभाग कार्य करते हैं, वे हैं, सम्पादकीय विभाग- जो समाचारों के सम्पादन एवं सम्पादकीय का कार्य देखते हैं। वित्त विभाग- इस विभाग का कार्य वित्तीय व्यवस्थाओं को देखना तथा कर्मचारियों के वेतन आदि का भुगतान करना है। प्रसार विभाग- इस विभाग के ऊपर प्रसार संख्या को बढ़ाने, उसका हिसाब आदि रखने तथा समय से विभिन्न स्थानों पर समाचार पत्र को पहुँचाने का दायित्व होता है। विज्ञापन विभाग- यह विभाग विज्ञापन को प्राप्त करने, उसको प्रकाशित कराने तथा उसका रेट तय करने आदि का कार्य करता है। कार्मिक एवं स्थापना विभाग- यह विभाग लोगों की नियुक्ति, सेवा शर्तों का निर्धारण, अवकाश ग्रहण करने आदि कार्यों का सम्पादन करता है। मुद्रण विभाग- इस विभाग का कार्य समाचार पत्रों का सही समय से प्रकाशन कर प्रसार विभाग को देना है। क्योंकि सबसे पहले पाठक के हाथों में समाचार पत्र को पहँुचाना सभी समाचार पत्रों का परम दायित्व है। इससे न केवल समाचार पत्र के प्रसार में वृद्धि होती है, बल्कि उससे समाचार पत्र की लोकप्रियता भी बढ़ती है। इसके अतिरिक्त और भी कई बड़े-बड़े विभाग समाचार पत्रों में देखने को मिलते हैं।

महिलाओं का प्रवेश

पहले और आज भी पत्रकारिता एक जोखिम भरा व्यवसाय है, इसके चलते महिलाओं के लिए इस व्यवसाय में प्रवेश पाना या कार्य करना एक चुनौती भरा कार्य था। लेकिन आज समय बदल गया है। संवैधानिक दायित्व के चलते आज नारी को समान दर्जा प्राप्त है और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों से कन्धा में कन्धा मिलाकर चल रही हैं। यही कारण है कि आज पत्रकारिता जगत में महिलाओं का केवल प्रवेश ही नहीं हुआ है, बल्कि वे अपना दायित्व भी भली भाँति निभा रही हैं एवं एक आदर्श की स्थापना भी की हैं। उदाहरण के तौर पर बरखा दत्ता, नलिनी सिंह, फरहत परवीन, सीमा ओझा आदि महिला पत्रकारों को लिया जा सकता है। पत्रकार बरखा दत्ता ने तो अपनी जान को जोखिम में डालकर कारगिल युद्ध के समाचारों को युद्ध मैदान से अपने टीवी चैनल के लिए प्रेषित किया था।

पेड न्यूज

अन्य राज्यों से छपने वाले राष्ट्रीय समाचार पत्रों की तरह असम एवं मेघालय के समाचार पत्र भी ‘पेडन्यूज’ के नये ट्रेण्ड से अछूते नहीं हैं। यद्यपि ‘पेडन्यूज’ को लेकर प्रेस कॉउन्सिल भी विरूद्ध है तथा पत्रकारों, सम्पादकों एवं विद्वानों में भी इसे लेकर मतभेद है कि यह पत्रकारिता की आचार संहिता के विरूद्ध है। क्योंकि, इसमें समाचार दाता पैसे के बल पर वह भी चीज छपवा सकता है, जो उसके हित में तथा पत्रकारिता की आचार संहिता के विरूद्ध हो। लेकिन आज जिस तरह से प्रतिस्पर्धा एवं निजीकरण का दौर चल रहा है, उसमें कभी-कभी ये चीजें अपरिहार्य हो जाती हैं, नहीं तो समाचार पत्र को चलाने या जिन्दा रख पाना मुश्किल हो सकता है। लेकिन इसके लिए भी एक आदर्श संहिता का होना जरूरी है, जिससे एक सशक्त माध्यम के रूप में समाचार पत्र एक स्वस्थ एवं सशक्त जनमत का निर्माण करते हुए लोकतंत्र के सजग प्रहरी के रूप में अपने दायित्वों का निर्वाह कर सकें।

सीटिजन या नागरिक पत्रकारिता

यह तत्व भी पत्रकारिता के एक नये प्रतिमान के रूप में उभर कर सामने आया है, जो एक सफल एवं स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक है। न्यू मीडिया या इंटरनेट, कम्प्यूटर आदि को इसके लिए साधुवाद देना चाहिए, जिसने समाचारों के आदान-प्रदान को एक विशेष गति प्रदान की है। क्योंकि समाचार पत्रों की अपनी सीमाएँ हैं, वे हर जगह न तो अपने संवाददाताओं को रख सकते हैं, न ही ऐसा स्रोत है जिससे कि वे समाचारों को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए यह एक शुभ लक्षण है जो समाज और लोगों के लिए हितकारी है। लेकिन यह तभी तक हितकारी एवं लाभकारी है, जबकि स्रोत एवं समाचार की वस्तुनिष्ठता को जाँच-परख कर समाचारों का प्रकाशन किया जाय। असम एवं मेघालय के कई बहुप्रसारित समाचार पत्रों ने इस प्रयोग को कार्यान्वित किया और कई ऐसे समाचार प्रकाश में आये जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

सम्पादक के नाम पत्र या जनता की आवाज

ऐसी मान्यता है कि यदि सम्पादकीय समाचार पत्र की आवाज है, तो ‘सम्पादक के नाम पत्र’ जनता की आवाज। यह जनसंचार के द्विपक्षीय सिद्धान्तों पर आधारित है। इसे प्रतिपुष्टि की संज्ञा भी दे सकते हैं। क्योंकि, वास्तव में समाचार पत्र किसके लिए हैं? जनता के लिए। ऐसे में पाठकों या जनता को पत्रों के माध्यम से जनता की समस्याओं एवं जनमत के बारे में पता चलता है। बहुत पहले समाचार पत्रों में यह स्तम्भ नहीं हुआ करता था, लेकिन बाद के समाचार पत्रों ने इसे अपना प्रमुख स्तम्भ बनाया और आज लगभग सभी समाचार पत्र इसे विभिन्न नामों से इस स्तम्भ को अपने समाचार पत्रों में स्थान देते हैं। मसलन, अँगरेजी के समाचार पत्र इसे ‘दि लेटर्स टू दि एडीटर’ हिन्दी के समाचार पत्र इसे ‘जनवाणी’ या ‘सम्पादक के नाम पत्र’ या ‘पाठकों की पाती’ आदि नामों से छापते हैं।

एजेन्डा सेटर

आज समाचार पत्र चौथे स्तम्भ के रूप में इतना सशक्त हैं कि एजेन्डा सेटर के रूप में कार्य कर रहे हैं और कोई भी ज्वलंत समाचार हो जिसे शासन या प्रशासन दबाना चाहती है, वह उसे लोगों में प्रकाशन के माध्यम से जनजागृति लाकर उस पर चितंन करने, कार्यवाही करने पर सरकार, प्रशासन, सम्बन्धित एजेन्सी या व्यक्ति को बाध्य कर दे रही हैं। चाहे वह दिल्ली का निर्भया केस हो या असम के गुवाहाटी के आदिवासी लडक़ी या मणिपुर के मनोरमा केस हो, इन सबको समाचार पत्रों, सोशल मीडिया या श्रव्य-दृश्य माध्यमों द्वारा इस तरह प्रसारित एवं प्रकाशित किया गया कि पूरा शासन एवं प्रशासन व्यवस्था हिल गया। इसलिए अब समाचार पत्र एक मिरर के रूप में ही नहीं, बल्कि एक एजेन्डा सेटर के रूप में अहम भूमिका निभा रहे हैं। आज जितने भी भ्रष्टाचार उजागर हो रहे हैं, वह इन समाचार पत्रों की सजग दृष्टि ही है।

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