धवल पाण्डे*
प्रवल पाण्डेय**
वित्त प्रत्येक आधुनिक व्यावसायिक संस्था की जीवनधारा है। वित्त का व्यावसायिक संस्था एवं घरेलू जीवन में महत्वपूर्ण योगदान है। वर्तमान समय में वित्त के बिना कोई भी व्यवसाय या उद्योग अथवा निगम अपने कार्यों को संचालित नहीं कर सकता क्योंकि व्यवसाय को प्रारम्भ करने, सुचारू रूप से चलाने एवं विकसित करने के लिये वित्त की आवश्यकता होती है। आर्थिक वृद्धि एवं विकास के लिये भी वित्त महत्वपूर्ण है। मनुष्यों को गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकालने के लिये वित्तीय विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विकासशील देशों के सन्दर्भ में यह पाया गया है कि गरीबी को कम करने में वित्तीय विकास का प्रत्यक्ष प्रभाव, इसके अप्रत्यक्ष प्रभाव की तुलना में अधिक प्रबल है।
(जैनी, एवं के. पोद्दार, 2011)
देश के आर्थिक विकास को सुदृढ़ करने के लिये देश के सभी वर्गों की सक्रिय सहभागिता का होना आवश्यक है। जबकि, देश का एक बड़ा भाग वित्तीय विकास से दूर, अपितु अपवर्जित है। वित्तीय अपवर्जन सामाजिक अपवर्जन का भी एक प्रमुख कारण है।
एक लक्षित समूह को वित्तीय अपवर्जित कहा जा सकता है, जबकि वह मुख्यधारा की औपचारिक वित्तीय सेवाओं जैसे- खाता, ऋण, बीमा, भुगतान आदि का लाभ नहीं ले सकता हो।
इस समूह में मुख्यत: सीमान्त किसान, भूमिहीन मजदूर या किसान, स्वरोजगारी एवं असंगठित क्षेत्र के उद्यमी, शहरी कच्ची बस्तियों के निवासी, प्रवासी, जातीय अल्पसंख्यक एवं सामाजिक अपवर्जित समूह, वरिष्ठ नागरिक एवं महिलायें सम्मिलित हैं।
वित्तीय अपवर्जन एक प्रक्रिया है जो कि अपने देशों की औपचारिक वित्तीय प्रणाली तक पहुँच पाने से गरीब और वंचित सामाजिक समूहों को रोकता है।
(कोनो रॉय, 2005)
विशेष समूहों द्वारा वित्तीय सेवाओं के प्रयोग में आने वाली अक्षमता, कठिनता तथा अनिच्छा को वित्तीय अपवर्जन कहा जा सकता है।
(मिक्लप एवं वाईल्सन, 2007)
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, भारत में केवल 59 प्रतिशत व्यस्क व्यक्तियों का बैंक में खाता है, तथा ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रतिशत केवल 39 है। अतएव वे लोग जो वित्तीय या बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच नहीं रखते, उन तक आसानी से ये सेवायें उपलब्ध कराना ही वित्तीय समावेशन है। वित्तीय समावेशन से तात्पर्य प्रत्येक व्यक्ति को विभिन्न उपयुक्त वित्तीय सेवायें प्रदान करना तथा बैंकिंग सेवाओं के उपयोग के लिये, उन्हें जानकारी देना व समर्थ बनाना है।
(कपूर, 2010)
लीलाधर, (2005) के अनुसार वित्तीय समावेशन से तात्पर्य व्यक्ति विशेष को ना केवल वित्तीय समावेशन की उपलब्धता सुनिश्चित करना है, अपितु उनमें वित्तीय समावेशन के प्रति समझ उत्पन्न करना व उन्हें सेवा की पहुँच तक लाना है। वित्तीय समावेशन का अर्थ है कि व्यक्ति वृद्धि संबंधी क्रियाओं में सहभागिता करें तथा देश की आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने में सहयोग करें।
औपचारिक वित्तीय सेवाओं का उपयोग करने से व्यक्ति देश की आर्थिक क्रियाओं में सहयोग प्रदान करते हैं। जैसे-बैंक में खाता खुलवाने तथा नियमित बचत करने से, जरूरतमन्द लोगों को नियमित कर्ज देना संभव हो पाता है। यह देश में सम्पन्न तथा विपन्न देानों ही प्रकार के व्यक्तियों की वित्तीय तंत्र तक पहुँच तथा उपयोग को सुनिश्चित करने की एक प्रक्रिया है।
(मनोहरन एवं मुथैया, 2010)
इसी दिशा में भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय समावेशन अभियान शुरू किया जिसका लक्ष्य प्रत्येक राज्य के एक जिले में 100 फीसदी वित्तीय समावेशन प्राप्त करना है। देश में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक मिलकर कदम उठा रहे हैं। जिनमें कुछ कारगर सिद्ध हुये हैं-
- नो फ्रिल खाते (No Frills Account)- नवम्बर 2005 में बैंकों को सूचित किया गया कि वे ‘निम्न’ या ‘शून्य’ शेष और प्रभारों वाले ‘नो-फ्रिल्स खातों सहित बुनियादी बैंकिग सेवायें उपलब्ध करायें।
नो फ्रिल्स खाते बहुत ही कम अथवा शून्य राशि पर बैंकों में खोले जाते हैं जिससे सभी व्यक्ति इन तक पहुँच सके व उनका लाभ ले सके। - अपने ग्राहक को जानिये (know your customer) रिजर्व बैंक ने ‘नो फ्रिल्स’ खाते खोलते समय आ रही कठिनाई को दूर करने के लिये ‘अपने ग्राहक को जानिये’ की प्रक्रियाओं को सरल बना दिया।
यह प्रक्रिया उन व्यक्तियों के लिए थी जो कि खातों में 50,000 रूपये से अधिक राशि ना रखते हों तथा जिनके पास दस्तावेज सबूत व पहचान सबूत नहीं हैं, ऐसी स्थिति में बैंक ऐसे खाताधारक से परिचय ले सकता है, जिसकी KYC प्रक्रिया पूरी हो तथा जिसका 6 माह के अन्तर्गत बैंक में पर्याप्त लेन-देन हो। - जनरल क्रेडिट कार्ड (GCC)- अद्र्धशहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों के निम्न आय समूहों वाले लोगों को आसानी से ऋण प्रदान करने की दृष्टि से सामान्य प्रयोजन क्रेडिट कार्ड (जी सी सी) जारी किये ताकि ग्राहकों को आसान शर्तों पर ऋण मिल सके।
- वित्तीय समावेशन फण्ड- भारत सरकार द्वारा वित्तीय समावेशन फण्ड व वित्तीय समावेशन टेक्नोलोजी फण्ड की शुरूआत नाबार्ड के अन्तर्गत की गई।
- स्वयं सहायता समूह (SHG)- स्वयं सहायता समूह गरीबों का, गरीबों के लिये, गरीबों द्वारा पूर्णत: लोकतांत्रिक ढंग से चलायी जाने वाली इकाई है। यह वित्तीय समावेशन बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। स्वयं सहायता समूह के द्वारा बड़ी संख्या में परिवार बैंक ऋण से जुड़ते हैं।
- किसान क्रेडिट कार्ड (KCC)- ग्रामीण व अद्र्धशहरी क्षेत्रों में बैंक द्वारा किसानों के लिये किसान क्रेडिट कार्ड योजना आरंभ की गई। किसान क्रेडिट कार्ड का उपयोग बीज व कीटनाशक दवाईयाँ खरीदने में, कृषि उपकरण खरीदने में तथा घरेलू उपयोग हेतु किया जाता है।
- व्यवसाय प्रतिनिधि मॉडल- 2006 में रिजर्व बैंक ने गैर-सरकारी संगठनों, माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं, सेवानिवृत बैंक कर्मी, भूतपूर्व सैनिकों इत्यादि का उपयोग व्यवसाय प्रतिनिधि के रूप में करके वित्तीय व बैंकिंग सेवायें प्रदान करने की अनुमति दी जिसके द्वारा वित्तीय समावेशन में वृद्धि हुई है।
- वित्तीय साक्षरता- वित्तीय समावेशन की सफलता हेतु जन-जन में वित्तीय साक्षरता लाने की अत्यन्त आवश्यकता है। इसको ध्यान में रखते हुये भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय साक्षरता परियोजना शुरू की है।
प्रधानमंत्री जन-धन योजना
प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) वित्तीय समावेशन के लिये राष्ट्रीय मिशन है, जो वित्तीय सेवाओं, यथा, बैंकिंग/बचत व जमा खाता, भुगतान, ऋण, बीमा, पेन्शन तक उचित पहुँच सुनिश्चित करता है। इस योजना की शुरूआत 15 अगस्त 2014 को की गई। इस योजना का उद्देश्य राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचाना तथा प्रत्येक व्यक्ति का (जिनका बैंक में खाता नहीं है) वित्तीय समावेशन करना है। यह योजना प्रत्येक उस व्यक्ति की वित्तीय पहुँच को सुनिश्चित करती है, जो सरकार की अन्य वित्त संबंधित योजनाओं का लाभ नहीं उठा सकते हैं। प्रधानमंत्री जन-धन योजना के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति, जो भारतीय नागरिक हो तथा जिनकी उम्र 10 वर्ष से अधिक हो एवं जिसका बैंक में खाता नहीं हो, शून्य राशि पर खाता खुलवा सकता है। यह योजना 1 लाख रूपये तक का दुर्घटना बीमा भी प्रदान करती है, जिसमें खाताधारी को शुल्क नहीं देना होगा। इसके अलावा यह योजना जीवन बीमा, कर्ज, मोबाइल बैंकिंग इत्यादि की सुविधायें भी प्रदान करती है।
वित्तीय समावेशन एवं वित्तीय साक्षरता को बढ़ाने में संचार माध्यमों की भूमिका
सूचना एवं संचार तकनीकी आधारित उपकरणों का उपयोग करके वित्तीय समावेशन और वित्तीय साक्षरता को और भी बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे जन-जन को औपचारिक वित्तीय उत्पादों व वित्तीय सेवाओं के सन्दर्भ में जानकारी देना भी सरल होगा तथा साथ ही ग्रामीण लोगों तक त्वरित सेवा भी प्रदान की जा सकेगी। बैंक तकनीकी सेवाओं के प्रयोग द्वारा ग्रामीण जनता तक विभिन्न बैंकिंग सेवाओं यथा, साप्ताहिक बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, सेटेलाइट कार्यालय, ग्रामीण एटीएम इत्यादि को लागू कर वित्तीय समावेशन को बढ़ाने का प्रयास भी कर रहे हैं। अशिक्षित लोगों के लिए प्रौद्योगिकी की सहायता से बायोमैट्रिक कार्ड तथा बैंकिंग लेन-देन के लिए हाथ में रखे जाने वाले मोबाइल इलेक्ट्रॉनिक्स यंत्र का उपयोग भी किया जा रहा है। जन संचार माध्यमों यथा टीवी, समाचार पत्र एवं रेडियो द्वारा भी दूरस्थ स्थानों पर निवास करने वाली जनता को वित्तीय समावेशन के लिये जागरूक किया जा सकता है। इसमें टीवी व समाचार पत्र शहरी तथा रेडियो, ग्रामीण जनता के लिये समझ विकसित करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। सभी बैंकों को इन्टरनेट से जोडक़र ई-बैंकिंग द्वारा भी सभी ग्राहकों को वित्तीय उत्पाद प्रदान किये जा सकते हैं।
अध्ययन का महत्व
वित्तीय समावेशन एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जिसके द्वारा राष्ट्र के आर्थिक विकास एवं वृद्धि का मार्ग सुदृढ़ किया जा सकता है। इसके लिये विभिन्न स्तरों पर प्रयास किये जा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने बहुत सारी योजनायें चलाई है तथा बैंकिंग प्रक्रिया को भी काफी सरल बना दिया है, किन्तु इसके उपरान्त आज भी सभी लोगों का वित्तीय समावेशन नहीं हो पाया है, आज भी लोग औपचारिक वित्तीय सेवाओं व उत्पादों का पूर्ण उपयोग नहीं करते हैं, साथ ही उन्हें विभिन्न उत्पादों एवं सेवाओं की जानकारी भी नहीं है। बल्कि वे अनौपचारिक स्त्रोतों मित्र, रिश्तेदार पर ही निर्भर रहते हैं। इसके लिए सरकार तथा रिजर्व बैंक द्वारा किये जाने वाले प्रयासों को और भी संगठित करने की आवश्यकता है। संचार व तकनीकी द्वारा दी जाने वाली जानकारी में सुधार व परिवर्तन की आवश्यकता है।
अध्ययन का उद्देश्य
आर्थिक विकास सूक्ष्म एवं स्थूल दोनों ही स्तरों पर एक मुख्य मुदद है। राष्ट्र का आर्थिक विकास व्यक्ति को तथा व्यक्ति का आर्थिक विकास राष्ट्र को प्रभावित करता है। मनुष्यों के आर्थिक रूप से सबल होने पर ही वे राष्ट्र की विकासात्मक व कल्याणकारी क्रियाओं में सहयोग कर सकते हैं, इसी तरह एक विकसित राष्ट्र ही अपने नागरिकों को सभी प्रकार की सुविधायें मुहैया करवा सकता है। इसी दिशा में वित्तीय समावेशन एक प्रयास है, जिससे शहरी व ग्रामीण तथा कच्ची बस्तियों, अल्पसंख्यकों, प्रवासी, वरिष्ठ नागरिकों तथा महिलाओं इत्यादि सभी मनुष्यों को आर्थिक विकास से जोड़ा जा सकता है। वित्तीय समावेशन के विभिन्न प्रयासों के बावजूद भी सभी नागरिक इससे जुड़ नहीं पाये हैं, अत: संचार माध्यमों का इस दिशा में क्या महत्व हो सकता है, इसका अध्ययन आवश्यक था।
शोध विधि
उद्देश्य की पूर्ति के लिये विभिन्न लेखों, पुस्तकों, पत्रिकाओं तथा इन्टरनेट पर उपलब्ध सामग्री का अध्ययन किया गया। वित्तीय समावेशन से संबंधित विभिन्न शोध पत्रों का अध्ययन कर विषय को समझने का प्रयास किया गया है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रकाशित शोध पत्रिका का गहन अध्ययन बैंक द्वारा किये गये प्रयासों को समझने के लिए किया गया।
निष्कर्ष
संचार माध्यमों का प्रभाव जनता पर होता है। निम्न आय वर्ग के लिये कम कीमत पर संचार माध्यमों की उपलब्धता होनी चाहिये ताकि सभी नागरिकों को उचित समय पर पर्याप्त जानकारी मिल सके और वे इसका अधिकतम उपयोग कर सकें। कम्प्यूटर, मोबाइल व इन्टरनेट जैसे माध्यमों का प्रभावशाली तरीके से उपयोग किया जाना चाहिये।
- यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि डिजीटल माध्यमों से मिलने वाली सामग्री को पूर्णतया समझने की क्षमता लोगों में हो तथा इनका उपयोग उनकी ज्ञान व क्षमता के अनुरूप हो।
- दूर संचार माध्यमों का नेटवर्क दूरस्थ स्थानों पर दुरस्त किया जाना चाहिये।
इस तरह सभी स्तर पर सक्रिय प्रयासों से ही सभी वर्गों को वित्तीय समावेशन में सम्मिलित किया जा सकता है।
संदर्भ सूची
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- कुमार शर्मा, सुधीर, ‘‘देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की भूमिका”, आधार, मार्च 2012.
- शर्मा मनीष, ‘‘भारतीय परिवारों की बैंकिंग सेवाओं तक कुल पहुँच”, राजस्थान पत्रिका, मई 2012.
- पाण्डे, प्रवल एवं शर्मा, अंजलि, ‘‘चुरू जिले के पूलासार गाँव (सरदारशहर तहसील) के ग्रामीण परिवारों में बैंकिंग सेवाओं का अपवर्जन” लघु शोध प्रबंध, आई.एस.ई. (मान्य) विश्वविद्यालय, सरदारशहर, 2012.
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