परमवीर सिंह*
टेलीविजन हमेशा से ही विज्ञापन का एक सशक्त माध्यम रहा है। जैसे-जैसे टेलिविजन ने समृद्धि पाई है, वैसे-वैसे ही इस माध्यम पर विज्ञापनों का भी चलन बढ़ा है। टेलीविजन पर रंगों का संसार तो आज पुरानी बात हो गई है जबसे टेलीविजन ने वैश्विक पहुंच बनाई है, इस माध्यम के द्वारा विज्ञापन देने में विज्ञापनदाता उतने ही उत्साहित नज़र आते हैं। देशी-विदेशी कम्पनियां टेलीविजन के माध्यम से अपने उत्पाद को आम जनमानस तक पहुंचाना चाहती हैं और वे इसमें कामयाब भी हो रहे हैं। टेलीविजन समाज के हर आयु, आय और सामाजिक विभिन्नता वाले वर्ग द्वारा पसंद किया जाता है। इसलिये टेलीविजन के विज्ञापन और भी प्रभावी नज़र आते हैं।
विज्ञापन- एक परिचय
विज्ञापन संचार का एक ऐसा तरीका जिसके माध्यम से किसी उत्पाद, सेवा या संगठन के बारे में कुछ नये निर्णय लेने के लिये प्रोत्साहित होता है। समान्यत: व्यापारिक प्रस्ताव के माध्यम से विज्ञापनदाता उपभोक्ता के क्रय सम्बन्धी व्यवहार को बदलने का प्रयास करता है। हालांकि राजनैतिक और वैचारिक विज्ञापन भी एक आम धारणा है। विज्ञापन प्रायोजक द्वारा दिया गया वह संदेश है जिसके लिये उसने भुगतान किया है जिसे लक्षित वर्ग विभिन्न पारम्परिक माध्यमों और नये संचार माध्यमों के द्वारा प्राप्त करता है। विज्ञापन उत्पाद के उपभोग को बढ़ाने के लिये, सेवाओं का विस्तार करने के लिये और किसी भी संगठन को ब्रांड छवि देने के लिये प्रयोग में लाया जाता है।
विज्ञापन आचार संहिता
हालांकि वैधानिक रूप से विज्ञापन की विषयवस्तु को नियंत्रित करने के लिये किसी तरह का ढ़ांचा विकसित नहीं किया गया है। लेकिन विज्ञापनदाता अपने आप एक नैतिक दायरा बनाकर रखें ताकि विज्ञापन समाज पर कोई गलत प्रभाव ना छोडे इसके लिये भारत में एडवरटाईजिंग स्टेंडर्ड कान्सिल ऑफ इंडिया का गठन किया गया है। इस संगठन का उद्देश्य विज्ञापनकर्ता को किसी प्रकार से नियन्त्रित करना नहीं है लेकिन एक ऐसा एक ढ़ांचा विकसित करना है जिससे विज्ञापन समाज के किसी वर्ग के आर्थिक सामाजिक या राजनैतिक हितों का हनन ना करे। इस संगठन ने कुछ नियम बनाये हैं जिनमें कुछ निम्न प्रकार से हैं-
- विज्ञापन सत्य पर आधारित हो और उसके प्रस्तुतिकरण में इमानदारी बरती जानी चाहिए।
- सार्वजनिक हितों को ध्यान में रखते हुए विज्ञापन आक्रामक नहीं होना चाहिए।
- समाज या किसी व्यक्ति विरोधी विज्ञापन का प्रसार नहीं होना चाहिए।
- प्रतिस्पर्धा की नैतिकता को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- विज्ञापन जिसके भी बारे में दिया जा रहा है उस उत्पाद के निर्माता, सेवादाता या संगठन से अनुमति ली जानी आवश्यक है।
- विज्ञापन में तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश नहीं किया जाना चाहिए।
- विज्ञापन लक्षित वर्ग में अविश्वास पैदा करने या उनके कम अनुभव का शोषण करने वाला नहीं होना चाहिए।
- विज्ञापन में अश्लीलता का सहारा नहीं लिया जाना चाहिए।
- अपराध को बढ़ावा देने वाले विज्ञापन प्रसारित नहीं किये जाने चाहिए।
- विज्ञापन किसी वर्ण व जाति का विरोध करने वाला ना हो।
इस प्रकार विज्ञापन को प्रसारित करते समय यह तय किया जाना नैतिक तौर पर आवश्यक है कि वह समाज के लिये किसी प्रकार से गलत धारणा बनाने वाला या किसी व्यक्ति विशेष के लिये हानिकारक नहीं होना चाहिए। विज्ञापन आज समाज एक अहम भूमिका निभाने लगा है इसलिये यह जरूरी हो गया है कि विज्ञापन आम जनमानस के मानसपटल को सकारात्मक रूप से प्रभावित करे।
टेली शोपिंग-
टेलीविजन समाज के प्रत्येक हिस्से को प्रभावित कर रहा है। यह आज प्रत्येक घर का एक महत्वपूर्ण भाग बन गया है। इसलिये हर छोटी बड़ी कम्पनी टेलिविजन विज्ञापन के माध्यम से ग्राहकों तक अपनी पहुंच बनाना चाहती हैं। कार्यक्रमों को प्रायोजित करके विज्ञापन देना हो या फिर दृश्य विज्ञापन ये विधायें आज पारम्परिक कहलाने लगी हैं। जैसे-जैसे लोगों की आवश्यकताएं बढ़ रही हैं वैसे-वैसे टेलीविजन पर विज्ञापन प्रसारित करने के तरीके बदलते जा रहे हैं। इन्ही नये तरीकों में से एक है-टेली शोपिंग। टेलीविजन के माध्यम से विज्ञापन करके अपने बाजार को बढ़ाना आज काफी आसान हो गया है। किसी भी स्टोर या दुकान पर उत्पाद बेचना एक परम्परागत तरीकों में गिना जाने लगा है। वर्तमान में अनेक कम्पनियों द्वारा टेलीविजन को अपने उत्पाद के विक्रय और वितरण के माध्यम के रूप प्रयोग किया जा रहा है। टेलिशोपिंग के अस्तित्व में आने के बाद बहुत सारी कम्पनियां अपने उत्पादों के प्रोत्साहन के लिये इसे प्रयोग कर रही हैं। मंनोरंजन का चैनल हो या फिर कोई समाचार चैनल हर एक टेलिशोपिंग के सलोट्स को प्रसारित करके अपना मुनाफा बढ़ा रहा है। इसी चलन को देखते हुए टीवी 18 समूह के होम शोपिंग जैसे चैनल अस्तित्व में आये हैं। टेलीविजन की घर तक सशक्त पहुंच होने की वजह से टेलिशोपिंग पर विलासिता के उत्पादों के साथ-साथ आम जरूरत के उत्पादों का विपणन भी किया जाने लगा है।
हालांकि टेलिशोपिंग के माध्यम से देशी और विदेशी उत्पाद हमारे देश में उपलब्ध होने लगे हैं लेकिन उत्पादों की गुणवता और उनकी विश्वसनीयता को लेकर अभी संदेह उपभोक्ताओं में बना हुआ है। जैसे-जैसे टेलिशोपिंग की अवधारणा परिपक्व हो रही है वैसे-वैसे कुछ ऐसे उत्पादों का विपणन भी शुरू हो गया है जिनसे देश अन्धविश्वास को बढ़ावा मिल रहा है। चाहे धन लक्ष्मी यन्त्र हो या नज़र से बचाने वाले उत्पाद उनका विपणन उपभोक्ताओं में गलत भावनाओं का प्रचार कर रहे हैं। तुरन्त वजन घटाने वाले उत्पाद हो या तुरन्त गोरा करने वाले प्रसाधन ये भी कुछ ऐसे उत्पाद हैं जो दर्शकों में भ्रम की स्थिति पैदा करते हैं। टेलिविजन पर प्रसारित होने वाले टेलिशोपिंग कार्यक्रमों में विज्ञापन की आचार संहिता का पालन किया जाना बेहद जरूरी है। हालांकि यह शोध का विषय है कि ये कार्यक्रम आचार संहिता का कितना प्रयोग करते हैं। इसी विषय को ध्यान में रखते हुए यह शोध पत्र प्रस्तुत किया जा रहा है।
शोध विधि-
प्रस्तुत शोध-पत्र में टेलीविजन पर प्रसारित टेलि शोपिंग विज्ञापनों के बारे में अध्ययन किया गया है। इन विज्ञापनों में आचार संहिता का कितना पालन किया जाता है इसका विश्लेषण करने के लिये सिम्योटिक विश्लेषण विधि का प्रयोग किया गया है। इस विधि के माध्यम से टेलिशोपिंग के दृश्य-श्रेव्य विज्ञापनों का विभिन्न पहलुओं से विश्लेषण किया गया है। ज्यादातर टेलीविजन चैनलों पर खासकर मंनोरंजन चैनलों पर आज टेलिशोपिंग के स्लोट्स दिखाये जा रहे हैं। इन स्लोट्स का विश्लेषण करने के लिये 5 स्लोट्स लिये गये हैं जिनकी प्रत्येक की अवधि 15 मिनट है। इन विज्ञापनों में खासकर उत्पादों की प्रकृति, उनको प्रस्तुत करने की विषयवस्तु, विज्ञापनों में दिखाये जाने वाले पात्र, संवाद और विज्ञापनों के दौरान दिये जाने वाले प्रस्तावों का विश्लेषण किया गया है।
आंकडा प्रस्तुतिकरण –
टेलिशोपिंग कार्यक्रमों में आचार संहिता का कितना पालन किया जाता है। इस विषय पर आंकड़ों का संकलन किया गया है। सिम्योटिक विश्लेषण के द्वारा निम्नलिखित पहलुओं के विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
उत्पाद –
कार्यक्रमों का विश्लेशण करने पर यह सामने आया कि ज्यादातर सलोट्स में विलासिता के कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। इस प्रकार के उत्पाद उपभोक्ताओं को इस प्रकार आकर्षित करते हैं जिससे वे बिना जरूरत के भी उन्हे खरीदने की सोचने लगते हैं। इसी के साथ कुछ ऐसे उत्पादों का विपणन टेलिशोपिंग के माध्यम से किया जाता है जो कि उपभोक्ताओं में अन्धविश्वास को बढ़ावा देते हैं। धन लक्ष्मी यंत्र और नजर से बचाने वाले उत्पादों के प्रसार में विज्ञापन आचार संहिता सरासर उल्लंघन किया जाता है। इन उत्पादों को ऐसे प्रसारित किया जाता है जैसे ये उपभोक्ता की आर्थिक समस्याओं को तुरन्त दूर कर देंगे।
विषयवस्तु –
विज्ञापन की विषयवस्तु उसकी विश्वसनीयता को निश्चित करती है। टेलिशोपिंग में दिखाये जाने वाले विज्ञापनों की विषयवस्तु ज्यादा विश्वसनीय नहीं होती उसमें इस प्रकार की पटकथा का प्रयोग किया जाता है ताकि उपभोक्ता उसके प्रत्येक शब्द को सच माने लेकिन पटकथा किन्ही भी तथ्यों पर आधारित नहीं होती। कई बार तो तथ्यों को तोड़ मरोड़कर भी प्रस्तुत किया जाता है। किसी उत्पाद के फायदे बताने के लिये उसके लाभार्थी को जब दिखाया जाता है तो वह उसके बारे में बहुत बढ़ा चढ़ा कर बताता है जिनमें किसी भी तथ्य को सत्यापित नहीं किया जाता। यह आचार संहिता का उल्लंघन है। इसके अलावा विज्ञापन में जो दृश्य दिखाये जाते हैं उनमें भी आचार संहिता का उल्लंघन होता है। जैसे किसी दृश्य में ऐसे व्यक्ति को जो बहुत मोटा है उसका बहुत नजदीक से चित्र लिया जाता है जिससे वह और ज्यादा मोटा दिखने लगता है लेकिन जब उसे कम वजन का दिखाना हो तो उसका दूर से लिया गया चित्र दिखा दिया जाता है जो उसे वास्तविक वजन से कम का दिखाता है। यह स्थिती दर्शकों में भटकाव पैदा करने वाली और तथ्यों को छुपाने वाली होती है।
मॉडलस्-
ज्यादातर विलासिता के उत्पादों का विश्लेषण किया जाये तो उसमें विदेशी मॉडलस और एंकर के द्वारा उत्पादों का प्रचार किया जाता है जो कि भारतीय परिदृश्य में जरूरी नहीं है। ऐसे मॉडल्स का प्रयोग जो स्थानीय भाषा का प्रयोग भी नहीं कर पाती उसको दिखाना आचार संहिता का उल्लंघन है क्योंकि ऐसे मॉडल्स रंग रूप में सुन्दर होते है जो कि वर्ण से भेदभाव की श्रेणी में आता है। इस प्रकार के विज्ञापनों में भारतीय दर्शकों को विदेशी मॉडलस जैसे बनने के लिये उकसाया जाता है।
शारीरिक भाषा-
बहुत से टेलिशोपिंग विज्ञापनों में एंकर व पात्रों की शारीरिक भाषा आचार संहिता का उल्लंघन करती है। वजन घटाने या फिर फिटनेस से जुड़े उत्पादों में पात्रों की शारीरिक भाषा बहुत बार अश्लीलता की श्रेणी में आ जाती है। वे उस उत्पाद को इस प्रकार विज्ञापित करते जिसको देखकर यह लगता है कि इस उत्पाद के प्रयोग के बाद उपभोक्ता बहुत ज्यादा सेक्सी दिखने लग जायेगा। ऐसे उत्पादों को विज्ञापित करते समय टेलिशोपिंग में शरीर के ऐसे हिस्सों को केन्द्रित करके शॉटस लिये जाते हैं जिससे अश्लीलता का प्रसार होता है। हालांकि ऐसे शॉटस और एंगल्स की कोई जरूरत नहीं होती।
संवाद-
टेलिशोपिंग के विज्ञापनों में संवाद का विश्लेषण किया जाये तो उनमें भी बहुत बार आचार संहिता का उल्लंघन किया जाता है। पहली बात तो बहुत से विज्ञापनों में संवादों का किसी दूसरी भाषा से अनुवाद किया जाता है जिससे उनके वास्तविक संवादों का सत्यापन किया जाना संभव नहीं है। इसी के साथ संवादों में किसी भी बात को इस प्रकार बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है जिससे उसके तथ्य विकृत हो जाते हैं। किसी भी तथ्य को सरल तरीके से प्रसारित करने की वजाय ऐसे उतेजक तरीके से पेश किया जाता है कि उसमें भ्रम की स्थिती पैदा हो जाती है।
निष्कर्ष-
टेलीविजन के माध्यम प्रसारित होने से बिना रिटेल स्टोर या दुकान के सीधे गोदाम से उत्पादों के वितरण की सुविधा देने वाली टेलिशोपिंग प्रत्येक चैनल पर देखी जा रही है और दर्शकों के बहुत बड़े वर्ग को प्रभावित करती है। हालांकि यह दर्शकों के लिये भी सुविधाजनक है कि वे घर बैठे ही किसी भी उत्पाद को आसानी से खरीद सकते हैं लेकिन बहुत से पहलु ऐसे हैं जिन वजहों से इन कार्यक्रमों की नैतिक रूप से आलोचना की जाती है। ज्यादातर कार्यक्रमों में ऐसे उत्पादों का विपणन किया जाता है जो आम जरूरत के उत्पाद ना होकर विलासिता या सौंदर्य से जुडे हुए हैं। इनके प्रसारण में भी ऐसे तथ्यों को प्रसारित किया जाता है जो कि विश्वसनीय नहीं होते। इसके अलावा टेलिशोपिंग में ज्यादातर विदेशी पात्रों के द्वारा प्रस्तुतिकरण किया जाता है जो अपने मादक अदाओं के माध्यम से दर्शकों आकर्षित करने का प्रयास करते हैं और इसी कारण वे अश्लीलता के दायरे में आ जाते है। संवादों में भी तथ्यों की वजाय लच्छेदार बातों का ऐसा वातावरण तैयार किया जाता है जिससे दर्शकों में भ्रम की स्थिती पैदा होती है। पात्रों की भाारीरिक भाषा सरल न होकर मदमोहक दिखाई जाती है जोकि आचार संहिता का उल्लंघन है।
संदर्भ ग्रन्थ सूची
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