जनता को लुभाने का सशक्त माध्यम हैं – चुनावी नारे

डॉ. अख्तर आलम*

चुनाव में नारों का अपना अलग और महत्वपूर्ण स्थान रहता है। नारा जितना ज्यादा तीखा होता है उसकी धार भी उतना ही ज्यादा तेज होती है। नेताओं के लिए चुनावी नारे जनता को लुभाने वाला ऐसा लालीपाप होता है जिसकी ध्वनि मीठी और धार तीखी होती है। किसी भी पार्टी की फिलॉसफी को उनके नारो से समझा जा सकता है। विरोधी दलो पर आक्रामक ढ़ंग से हमले से लेकर अपनी बात कहने का इससे सटीक दूसरा माध्यम नहीं है। हर चुनाव से पहले हर राजनीतिक पार्टियां ऐसे नारे गढ़ती हैं जो उन्हें गद्दी तक पहुंचाने में मदद करे।

चुनावी नारे हमारे लोकतंत्र के निर्णायक औजार हुआ करते हैं। राजनीतिक दल इन्हीं के जरिए एक दूसरे पर वार करते हैं। आजादी के शुरूआती दिनों में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के समर्थकों ने उस दौर में एक नारा दिया- ‘नेहरू के हाथ मजबूत करो’। हालांकि यह एक साधारण सा नारा ने लोगों को नेहरू के साथ जोड़ दिया। आजादी के बाद अस्तित्व में आयी सीपीआई ने भी एक नारा दिया- ‘लाल किले पर लाल निशान, मांग रहा है हिन्दुस्तान’।  हालांकि यह एक क्रान्तिकारी नारा था फिर भी लोगों ने इस नारे का साथ दिया।

साठ के दशक में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ हुआ करती थी। जिसका चुनाव चिन्ह था ‘दीपक’। जनसंघ के सिपाहियों ने उस समय नारे लगाते थें- ‘जली झोपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल’। इसका करारा जवाब कांग्रेस पार्टी ने इस तरह दिया था- ‘इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं’। इसके बाद जनसंघ ने एक और नार दिया- ‘हर हाथ को काम, हर खेत को पानी, हर घर में दीपक, जनसंघ की निशानी’। इसी दशक में समाजवादियों एवं साम्यवादियों की तरफ से भी एक नारा उछाला गया- ‘धन और धरती बँट के रहेगी, भूखी जनता चुप रहेगी’। इसी के साथ ही इसी पार्टी ने एक और नारा दिया- ‘चुनावों में खुला दाखिला, सस्ती शिक्षा लोकतंत्र की यही परीक्षा’। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने भी देश की राजनीति को बहुत से ऐसे नारे दिये जो आज भी याद किये जाते हैं। ‘ससोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौं में साठ’। इस नारे ने पिछड़ी जातियों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई थी। गोंरक्षा आंदोलन के दौरान जनसंघ का यह नारा सभी की जुबां पर बढ़ चढ़ कर बोल रहा था- ‘गाय हमारी माता है, देश धर्म का नाता है।

सन् 1967 में छात्र आंदोलनों से जुड़े विद्यार्थियों ने भी ऐसे नारे ईजाद किए जो बेहद तीखे थें- ‘जेल के फाटक टूटेगें, साथी हमारे छुटेगें। इस नारे से छात्र आंदोलन तेज हुए और पुलिस को छात्रों के समाने हार माननी पड़ी थी। दैनिक समस्याओं से जुड़े कई मुद्दे भी नारों का रूप लेते रहे हैं। मसलन बेरोजगारी, गरीबी और मंहगाई जैसे मुद्दे भी चुनावी नारों के सशक्त हथियार रहे हैं। ऐसे ही नारों में शामिल थें- ‘रोजी-रोटी दे ना सकी जो वह सरकार निकम्मी है, जो सरकार निकम्मी है वह सरकार बदलनी है। सन् 1967 में जब देश के दस राज्यों  में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो एक नारा अस्तित्व में आया- ‘मधु लिमये बोल रहा है, इंदिरा शासन डोल रहा है।

सन् 1974 आते-आते जब इंदिरा गांधी का रसूख कुछ कम हो रहा था तो उसी समय संजय गांधी ने मारूति कार का कारखाना खोला। उस समय देश बेकारी की गम्भीर समस्या से जूझ रहा था, ऐसे में अटल बिहारी वाजपेयी ने नारा दिया था- ‘बेटा कार बनाता है, माँ बेकार बनाती है। इसी समय हेमवंती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। समाजवादियों ने नारा दिया- ‘नाम बहुगुणा, भ्रष्टाचार सौ गुणा। 1974 में ही जब बिहार में जेपी आंदोलन शुरू हुआ तो उन्होंने आम जन को झकझोर कर रख दिया था। राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा बन गया- ‘सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास तुम्हारा है। इसके अलावा उनकी ही कविता थी- ‘सिहांसन खाली करो जनता आती है। ये पक्तियां इमरजेंसी के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक  बनी और नारों की तरह इस्तेमाल हुआ।

नारे अपने समय के समाज की सार्थक अभिव्यक्ति होती हैं। नारों के जरिए उस वक्त के समाज और राजनीतिज्ञों को अच्छी तरह से समझा एवं परखा जा सकता है। अगर इमरजेंसी के बाद, दीवारों पर लिखे नारे इतिहास में न हो तो आप उस वक्त के हालात से कैसे रू-ब-रू हो सकते हैं। इमरजेंसी में नसबंदीके नाम पर हुआ उत्पीडऩ कौन नहीं जानता। उस समय रायबरेली के एक उपमंत्री हुआ करते थे ‘रामदेव यादव। इमरजेंसी के हटते ही लोगों का गुस्सा कांग्रेस पर फूट पड़ा। रामदेव यादव रायबरेली की एक विधानसभा से चुनाव लडऩे पहुंचे तो जनता ने दीवारों पर लिखा- ‘जब कटत रहे कामदेव तो कहां रहे तुम रामदेव। अकेला यही नारा पूरे इमरजेंसी के समय की हकीकत को बयां करती है। आपातकाल के समय समाजवादियों ने एक और नारा गढ़ा था-‘अंधकार में तीन प्रकाश गांधी, लोहिया, जयप्रकाश।  इमरजेंसी और संजय गांधी के समय यह नारे खूब चलते थें -‘जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हरबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाए मेरा मर्द गया नसबंदी में। समाजवादियों ने एक और नारा दिया – ‘जगजीवन राम की आई आंधी, उड़ जाएगी इंदिरा गांधी, आकाश में कहे नेहरू पुकार, मत कर बेटी अत्याचार। इसी समय एक चुनावी नारा आया -‘इंदिरा हटाओ, देश बचाओं । इस नारे पर कटाक्ष करते हुए इंदिरा गांधी ने करारा जवाब दिया कि – ‘वो कहते हैं इंदिरा हटाओं, मैं कहती हूँ गरीबी हटाओ। आपातकाल के बाद राजनीतिक नारों का जबरदस्त जोर दिखायी दिया। इस दौरान तो ऐसे तीखे नारे लग रहे थें  जो आमजन को झकझोर दे रहे थें –

‘सन् सतहत्तर की ललकार, दिल्ली में जनता सरकार।

‘फांसी का फंदा टूटेगा, जार्ज हमारा छुटेगा।

‘नसबंदी के तीन दलाल इंदिरा, संजय, बंशीलाल।

इन नारों ने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ लोगों में आक्रोश भर दिया था।

कांग्रेस के राजनीतिक नारे –

सन् 1980 के चुनाव में रायबरेली में इंदिरा को हराने में भी नारों की एक अहम भूमिका थी, लेकिन चिकमंगलूर से उपचुनाव भी उन्होंने नारों के सहारे ही जीता था -‘एक शेरनी सौ लगूंर, चिकमंगलूर-चिकमंगलूर। 1980 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी का नारा था – ‘इंदिरा जी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर। इसी दौरान कांग्रेस पार्टी ने सरकार की स्थिरता को मुद्दा बनाते हुए नारा दिया -‘चुनिए उन्हें जो सरकार चला सकें। जनता पार्टी की सरकार में मंहगाई चरम पर थी, जिसको कांग्रेस ने मुद्दा बनाया और नारा दिया – ‘देखो भाई मोरारजी का खेल, दस रुपये हो गया कडुवा तेल। 1980 में कांग्रेस पार्टी ने फिर एक नारा दिया -‘जात पर न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर। इसी दौरान कांग्रेस का एक और नारा अस्तित्व में आया -‘आधी रोटी खायेंगे, इंदिरा जी को जीतवायेगें । सन् 1984 में इंदिरा जी की हत्या के बाद इस नारे ने कांग्रेस पार्टी के प्रति सहानुभूति की लहर पैदा कर दी। वह नारा था -‘जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा। सन् 1985 में राजीव गांधी जब पहला चुनाव लड़े तो उनकी सभाओं में जुटी भीड़ एक तरफ हाथ उठाती थी तो दूसरी तरफ यह नारा गूंजता था -‘उठे करोड़ो हाथ है, राजीव जी के साथ है। राजीव गांधी के समय एक और नारे लगाये गये -‘पानी में और आंधी में विश्वास है राजीव गांधी में। 1989 के चुनाव में जनता दल की सरकार ने वीपी सिंह के लिए एक नारा दिया -‘राजा नहीं फकीर है देश की तकदीर है। इसके जवाब में कांग्रेस ने नारा दिया- ‘फकीर नहीं राजा है, सी आई ए का बाजा है। जब चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने तो उनकी सरकार चार महीने ही चल सकी, जिससे देश को मध्यावधि चुनाव से गुजरना पड़ा। इस पर कांग्रेस ने कटाक्ष करते हुए कहा कि -‘अलग यह खिचड़ी-अलग यह ताल देखिए, सरकार देखिए ताल नहीं है मेल नही है, राजनीति कोई खेल नहीं है। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद -‘राजीव तेरा यह बलिदान, याद करेगा हिन्दुस्तान, के नारे से कांग्रेस के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ गया। सन् 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने नारा दिया था -‘कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ।

इस नारे में कांग्रेस की विचारधारा को आमजन तक पहुँचाने का सशक्त माध्यम था। सन् 2009 के लोकसभा चुनाव में स्लमडांग के नारे ‘जय हो का कांग्रेस ने अपना लिया और भारी सफलता भी मिली।

बीजेपी के राजनीतिक नारे –

     सन् 1989-90 में राम मंदिर मुद्दा चरम पर था तथा इसी का फायदा लेते हुए भाजपा ने नारा दिया- ‘रामलला हम आयेंगे मंदिर वहीं बनायेंगे। सन् 1999 के लोकसभा चुनाव में नारा दिया – ‘बारी-बारी सबकी बारी, अबकी बारी अटल बिहारी को सफलता मिली। सन् 2004 के लोकसभा चुनाव में ‘शाइनिंग इंडिया टाँय- टाँय फिस साबित हुआ। सन् 2007 उ.प्र. के विधानसभा चुनाव में दिया नारा ‘भयमुक्त समाजभी फेल साबित हुआ।

बसपा के राजनीतिक नारे –

बसपा ने अपनी विचारधारा के अनुसार अपने राजनीति की शुरूआत इस नारे से की -‘तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार। 1993 में बसपा और सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा और भाजपा पर निशाना साधा -‘मिले मुलायम-काशीराम हवा में उड़ गये जय श्री राम। 1996 के मध्यावधि चुनाव में बसपा ने -‘ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया चोर बाकि सब डीएस फोर के साथ 67 सीट जीती। 2002 के चुनाव में बसपा कुछ लचीली हुई और उसने नारा दिया -‘ब्राह्म्ण साफ, ठाकुर हाफ, बनिया माफ। इस चुनाव में बसपा ने ठाकुर और बनिया जाति को भी टिकट दिया और 98 सीटों पर जीत हासिल हुई। 2007 में बसपा ने ब्राह्म्णों को अपने साथ जोडऩे के लिए नारा दिया -‘हाथी नहीं गणेश है, ब्राह्मण, विष्णु महेश है। इस चुनाव में बसपा ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। साल 2007 के चुनाव में बसपा ने उत्तर प्रदेश में गुण्डागर्दी को मुद्दा बनाते हुए सपा सरकार का इस तरह ललकारा था –  ‘चड़ गुंडों की छाती पर बटन दबा हाथी पर। 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जब चुनाव आयोग ने हाथी को ढकने का काम किया तो मायावती ने इसे स्लोगन में बदल दिया। बीएसपी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए नारा दिया – ‘जिंदा हाथी लाख का, मरा हाथी सवा लाख का। 2012 में बसपा ने यह भी नारा दिया – ‘बटन दबेगा हाथी पर बाकि सब बैसाखी पर।

सपा के राजनीतिक नारे :

1989 के उत्तर प्रदेश के चुनाव में-‘जिसका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है के नारों के साथ सपा मैदान में उतरी और सत्ता पर काबिज हुई। 2002 में भी इसी नारे के साथ 403 में से 145 सीटें मिली। 2007 में सपा का स्लोगन था- ‘यूपी में है दम, क्योंकि यहाँ जुर्म है कम पूरी तरह नाकाम साबित हुआ। इस नारे का प्रचार महानायक अमिताभ बगान ने किया था। 2012 में-‘उम्मीद की साइकिल के साथ अखिलेश ने कमान संभाली और सत्ता में वापसी की।

2014 के लोकसभा चुनावों में राजनीतिक नारों का खेल :

2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी – ‘नई सोच, नई उम्मीद के साथ मैदान में उतरे हैं। 2013 में चार राज्यों के चुनाव में राहुल गांधी का कहना था कि -‘यदि प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार हो तो और क्या-क्या हो सकता है? सोचिए जरा। 2014 के लोकसभा  चुनाव में राहुल गांधी का कहना है-‘मैं नहीं, हम। सपा का मत है -‘मन से हैं मुलायम, और इरादे लोहा हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नारा दिया है- ‘हर-हर मोदी, घर-घर मोदी। जिसका जवाब देते हुए सपा ने नारा दिया है-  ‘थर-थर मोदी, डर-डर मोदी। पहले चुनावों का प्रचार वॉल यानी दीवारों पर किया जाता था मगर आज इसकी जगह (सोशल साइट पर) फेसबुक वॉल ने ले ली है। हाल ही में फेसबुक जैसी सोशल साइट पर कुछ इस तरह के नारे चलन में हैं .

‘ट्विंकल-ट्विंकल लिटिल स्टार, अबकी बार मोदी सरकार।

‘करेंगे पंचर केजरी की वैगनआर, अबकी बार मोदी सरकार।

‘सफेद है सीमेंट काला है तार, अबकी बार मोदी सरकार।

इसका जवाब आप पार्टी वालों ने इस तरह से दिया-

‘पूरे गुजरात को बना दिया अंबानी, अडानी का व्यापार, वो क्या खाक देगा अ’छी सरकार, सोच लो अगर आ गई अबकी बार मोदी सरकार ।

निष्कर्ष –

इस तरह चुनावी नारों ने जनता को राजनीतिक रूप से शिक्षित एवं जागरूक करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इन सभी नारों में एक तरह की ललकार होती है मगर इस ललकार के पीछे एक विचार भी होता है। दरअसल ये नारे गढऩे वाले लोग जनता की नब्ज को पहचानते हैं और जानते है कि समाज को कैसे उद्देलित किया जाये। यही वजह है कि उनकी एक आवाज से जनता स्वतरू खीची चली आती है।

संदर्भ  –

  1. http://www.pravakta.com/own-slides-is-the-power-of-political-slogans
  2. http://bargad.org/2012/07/17/sfi-kmi/
  3. http://www.indiatvnews.com/articles/hemantsharma/loktantra-ke-utsav-me-ye-kesha-sannata-18.html
  4. http://www.facebook.com/RCJOKE/post/514916501934376
  5. http://kissago.blogspot.in/2007/10/blog-post20.html
  6. http://navbharattimes.indiatimes.com/india/national-india/males-were-also-consecrated-the-varaey/articleshow/23735460.cms
  7. http://azado.me/five-states-assambely-election2013
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