अनिल कुमार पाण्डेय*
जनसंचार कई घटक तत्वों की सम्मिलित प्रक्रिया है। जिसके द्वारा एक ही समय पर बड़े एवम् बिखरे हुए जनसमूह के मध्य संचार संबंध स्थापित किया जाता है। अनवरत रुपसे चलने वाली जनसंचार की प्रक्रिया कई चरणों में सम्पन्न होती है। जनमाध्यमों से प्रेषित किसी भी संदेश की सफलता तभी संभव है, जब वह संप्रेषण की प्रक्रिया के सभी चरणों से होकर गुजरे। ये बात अलग है कि संप्रेषण प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में संदेश का स्वरुप परिवर्तित होता रहता है। सामान्यत: जनसंचार का अर्थ सम्मिलित रुप में समाचार पत्र, पत्रिकाओं, रेडियो, दूरदर्शन, चलचित्र से लिया जाता है। जनमाध्यमों ने संचार की दुनिया में एक नवीन क्रांति निर्मित की है। नवीन प्रौद्योगिकी के आने से भाषा में भी परिवर्तन हुए है। परिणामस्वरुप हिन्दी भाषा के क्षेत्र विस्तार के साथ ही हिन्दी भाषा का स्वरुप भी बदला है।
भाषा एक सामाजिक उत्पाद है। किसी भी भाषा का स्वरुप इसके उपयोग करने वाले लोगों के सामाजिक वातावरण पर निर्भर करता है। भाषा समाज की आधारभूत इकाई मनुष्य के आपसी संपर्क को स्थापित करने का साधन है। भारत जैसे विशाल देश में, जो सही मायने में कई देशों का समु’चय प्रतीत होता है में अनेक भाषा-भाषी रहते हैं। ऐसी स्थिति में अनेक भाषाओं की उपस्थिति से विभिन्न भाषा-भाषियों के मध्य संपर्क स्थापित करना मुश्किल हो जाता है। भाषा के निर्माण में किसी भौगोलिक क्षेत्र की संस्कृति, आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान का विशेष योगदान होता है। एक भाषा प्रदेश के व्यक्ति को दूसरे भाषा प्रदेश के व्यक्ति से संपर्क स्थापित करने के लिए उसकी भाषा की जानकारी का होना आवश्यक है। ऐसे में संबंधित व्यक्ति की भाषा जानने के लिए अनुवाद का सहारा लेना पड़ता है। अनुवाद को पुन: कथन, भाषातंर, उल्था, तर्जुमा इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। वर्तमान में अनुवाद ने अपनी विस्तृत उपयोगिता के चलते एक विधा का रुप ले लिया है। वहीं देश विदेश के कई विश्वविद्यालयों में इस विषय का अध्ययन-अध्यापन कार्य होने लगा है। अनुवाद के महत्व को मनुष्य ने बहुत पहले ही जान लिया था। प्रसिद्ध भाषा विज्ञानी थियोडर सेवरी के अनुसार ‘अनुवाद कार्य प्राय: मौलिक लेखन जितना ही प्राचीन है।’1
अनुवाद कार्य के कारण ही आज सम्पूर्ण विश्व में समरसता का भूगोल तैयार हुआ है। अनुवाद ने सर्वधर्म समभाव की स्थिति को आकार दिया है। वर्तमान में हुए कई जातीय संघर्षों के पीछे के कारण को ढूंढ़ा जाए तो उनमें से एक कारण सभी संघर्षरत जातियों में समान रूप से नजर आता है, वह है एक दूसरे के धार्मिक-सांस्कृतिक विश्वासों, सामाजिक मानदण्डों, विचारधारा इत्यादि की जानकारी का न होना। इस तरह की जानकारी का न होना संवादहीनता से उपजता है, जिसका प्रमुख कारण एक ही भाषा की जानकारी का होना है। यही कारण है कि कई बार भाषायी समस्या के चलते वास्तविक जानकारी भी अफवाह के चलते विकृति का रुप ले लेती है।
जनमाध्यमों में हिन्दी अनुवाद कार्य का क्षेत्र अत्यंत ही मह्त्वपूर्ण है। वर्तमान में जनमाध्यम प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। सुबह का अखबार न मिले तो सुबह अनमनी लगती है। टेलीविजन-रेडियो पर कार्यक्रम देखे या सुने बिना लोगों का मनोरंजन ही नहीं होता। इसके अलावा वस्तु, उत्पाद एवम् सेवाओं की जानकारी प्राप्त होने के साथ ही सामाजिक जागरुकता बढ़ाने का कार्य भी जनमाध्यम ही करते आ रहे हैं। उपरोक्त वर्णित कारणों से जनमाध्यमों का महत्व दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। वर्तमान में प्रिंट मीडिया के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी अनुवाद कार्य के सहारे ही भाषा आदान-प्रदान के साथ मिले-जुले रुप में इस्तेमाल हो रही है। आज जनमाध्यम अनुवाद विधा के बिना अधूरे हैं। समाचार पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो तथा टेलीविजन न्यूज़ चैनलों को सभी समाचार हिन्दी में ही प्राप्त नहीं होते, वहीं टेलीविजन न्यूज चैनलों को देश-विदेश की सूचनाएं अधिकांशत: अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध हो पाती हैं। इसके अलावा विभिन्न प्रांतों से आने वाली खबरें भी प्रांत विशेष की भाषा में होती हैं। ऐसे में हिन्दी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में समाचार प्रस्तुत करने के लिए प्राप्त समाचार का अनुवाद करना आवश्यक हो जाता है। ऐसा नहीं है कि सभी समाचार अंग्रेजी में ही प्राप्त होते हैं। देश में हिन्दी में समाचार भेजने वाली एजेंसियों भी हैं, बावजूद इसके अधिकांश समाचार अंग्रेजी में ही प्राप्त होते हैं। यही वजह है कि आज के समय में हिन्दी भाषा में अनुवाद कार्य जनमाध्यमों की अनिवार्य आवश्यकता बन गया है।
पत्रकारिता के प्रारंभिक दौर के सभी अखबार अंग्रेजी में ही छपते थे। उस समय अंग्रेजी को विशिष्ट भाषा का दर्जा प्राप्त था। पठन-पाठन के साथ ही ज्यादातर राजकीय कार्य अंग्रेजी में ही सम्पन्न होते थे। हालांकि आजादी के बाद परिस्थितियों में परिवर्तन आया और अखबारों का प्रकाशन हिन्दी सहित अन्य प्रादेशिक भाषाओं में होने लगा, परिणामस्वरुप इस क्षेत्र में अनुवाद का महत्व बढऩे लगा। नब्बे के दशक के बाद आयी उदारीकरण की बयार ने बहुत कुछ बदला है, जिससे हमारे जनमाध्यम भी अछूते नहीं रहे हैं। उदारीकरण से बदली परिस्थितियों के चलते जनमाध्यमों का भी परिदृश्य बदल गया है। पारंपरिक माध्यम तक सीमित रहने वाला हमारे जनमाध्यम आज कई रंग, रुप, आकार-प्रकार में हमारे सामने हैं। वर्तमान में टेलीविजन चैनलों की संख्या तकरीबन एक हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है। वहीं पत्र-पत्रिकाओं की संख्या भी लाखों में पहुंच रही है। जिनमें जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आनंद बाजार पत्रिका समूह का रविवार, राजस्थान पत्रिका, अमर उजाला, पंजाब केसरी, दैनिक स्वदेश, नई दुनिया, दैनिक ट्रिब्यून, प्रभात खबर समेत इण्डिया टुडे, आउट लुक, अहा! जिन्दगी, शुक्रवार, नवनीत, हंस, साहित्य अमृत, नया ज्ञानोदय, तहलका, लोक स्वामी तथा संडे इंडियन जैसी राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाएं प्रमुख रुप से शामिल हैं। उपरोक्त वर्णित पत्र- पत्रिकाएं कई ऐसे प्रकाशन समूह से हैं, जो कि अंग्रेजी भाषा में पत्र-पत्रिकाएं निकालने के साथ ही कई अन्य भारतीय भाषाओं में समाचार पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित करते हैं। ऐसे में हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं को मिलने वाली अधिकांश सामग्री का अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा से अनुदित होना लाजिमी है। लिहाजा पत्र-पत्रिकाओं को विभिन्न भाषा-भाषियों के मध्य व्यापक विस्तार देने तथा उनकी विषयवस्तु को उन्हीं की भाषा में उपलब्ध कराने में सक्षम होने के कारण ही अनुवाद कार्य आज समाचार पत्र-पत्रिकाओं की अनिवार्य आवश्यकता बन गया है।
जनमाध्यमों में हिन्दी भाषा के अनुवाद कार्य को प्रतिशत की दृष्टि से देखा जाय तो प्रिंट मीडिया की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती। हिन्दी के समाचार पत्रों में समाचारों का एक बड़ा प्रतिशत अंग्रेजी से हिन्दी में अनुदित होता है। जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हिन्दी अनुवाद कार्य प्रिंट माध्यमों की तुलना में कम होता है। समाचार चैनलों की विषय सामग्री आवश्यतानुसार हिन्दी से अंग्रेजी तथा अंग्रेजी से हिन्दी तथा अन्य प्रादेशिक भाषाओं में अनुदित की जाती है। उदाहरण के तौर पर हिन्दी न्यूज़ चैनल ‘एनडीटीवी इंडिया’ की अधिकांश विषयवस्तु समूह के अंग्रेजी चैनल ‘एनडीटीवी 24×7’ से ही हिन्दी में अनुदित होती है। वहीं कई चैनलों में हिन्दी की विषय सामग्री अंग्रेजी में भी अनुदित होती है। इसका प्रमुख कारण हिन्दी क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का व्यापक कवरेज है। टीवी टुडे नेटवर्क का अंग्रेजी चैनल ‘हेडलाइंस टुडे’ समूह के ही हिन्दी चैनल ‘आजतक’ की अनुवाद निर्भरता से चलता है। हिन्दी के 24 घण्टे चलने वाले समाचार चैनलों के बढ़ते कवरेज के चलते कई बार अंग्रेजी चैनल भी पूर्णरुप से हिन्दी चैनलों की विषयवस्तु पर निर्भर रहते हैं। ‘आजतक’ और ‘एनडीटीवी इंडिया’ द्वारा सुनामी त्रासदी के दौरान किया गया कवरेज इसी का एक उदाहरण है। सुनामी त्रासदी के अतिरिक्त चाहे करगिल की लड़ाई का कवरेज हो या फिर वर्ष 2003 का खाड़ी युद्ध, इन दोनों ही घटनाक्रमों के समय हिन्दी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी स्वतंत्र छवि निर्मित की थी। वहीं रेडियो के माध्यम से शैक्षिक सामग्री प्रसारित करते समय भी अनुवाद का सहारा लिया जाता है, क्योंकि मौखिक भाषा में तकनीकी शब्दावलियों और उसके जटिल स्वभाव के कारण कई भाषागत कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।
हिन्दी न्यूज़ चैनलों तथा हिन्दी दैनिकों सहित पत्रिकाओं में अनुवाद कार्य पर यह निर्भरता अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में संबंधित ब्यूरो एवम् संवाददाताओं की संख्या अत्यंत कम होने के कारण है। देश में हिन्दी के प्रतिष्ठित समाचार चैनलों एवम् पत्र-पत्रिकाओं के संवाददाता देश के बड़े शहरों को छोड़ अन्य शहरों में नजऱ ही नहीं आते। वहीं इनके संवाददाता विदेशों में भी नियुक्त नहीं होते हैं। अगर हैं भी तो गिने चुने शहरों में ही हैं। ऐसी स्थिति मे जनमाध्यमों को विदेशी न्यूज़ एजेंसी, विदेशी न्यूज़ चैनल, इंटरनेट इत्यादि पर निर्भर रहना पड़ता है। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) की हिन्दी सेवा ‘भाषा’ और यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ इंडिया (यूएनआई) की ‘यूनिवार्ता’ हिन्दी भाषी राज्यों के समाचारों को कवर करती है लेकिन शेष कवरेज अंग्रेजी एजेंसियों की खबरों के हिन्दी अनुवाद पर ही निर्भर रहता है। वहीं तकनीकी क्षेत्र विशेषकर रक्षा, अर्थव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय मामले जैसे विशेष तकनीकी विषयों के समाचार अंग्रेजी में ही उपलब्ध होते हैं। इसके अलावा देश के कई बड़े शहरों में अंग्रेजी का बोलबाला है। सारे सरकारी, गैर सरकारी, औद्योगिक, व्यापारिक एवम् शैक्षणिक कार्य मूल रुप से अंग्रेजी में ही सम्पन्न होते हैं। प्रेस विज्ञप्तियां, प्रेस नोट, प्रेस कांफ्रेंस इत्यादि भी अंग्रेजी में ही संपन्न होने के कारण हिन्दी समाचार चैनलों, पत्र-पत्रिकाओं की निर्भरता अंग्रेजी से हिन्दी के अनुवाद पर स्वत: ही बढ़ जाती है। उपरोक्त वर्णित कारणों से ही हिन्दी के अनुवाद कार्य का महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। इसका कारण प्रत्यक्ष और परोक्ष व्यवसायिक गतिविधियां हैं। इस स्थिति को देखते हुए आसानी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में हिन्दी अनुवाद कार्य का क्षेत्र अत्यंत ही विस्तृत होगा साथ ही इसमें रोजगार मिलने की संभावना वर्तमान से कहीं ज्यादा होगी।
संदर्भ :
- अनुवाद कला- डॉ. भोलानाथ तिवारी, पृ.स. 9